हंस
रेत चुगने लगे,
बिना नीर का ताल।
मछुआरे
खाने लगे , काट- काट कर जाल॥
जिसकी
जैसी साधना ,
उसके वैसे भाग।
तितली
कड़वी नीम पर ,
बैठी पिये पराग॥
सपनों
के बाज़ार में ,
आँसू का क्या मोल।
यह
पत्थर दिल गाँव है ,
यहाँ ज़ख़्म मत खोल॥
हरसिंगार
की चाह में ,
हम हो गये बबूल।
शापित
हाथों में हुआ ,
मोती आकर धूल॥
अलग-अलग हर ख़्वाब का,
अलग- अलग महसूल।
एक
भाव बिकते नहीं सेमल और बबूल॥
राजपथों
पर रौशनी , बाकी नगर उदास।
उम्र
क़ैद है चाँद को ,
सूरज को वनवास॥
घर
का कचरा हो गये ,
अब बूढ़े माँ- बाप।
बेटे
इंचीटेप से उम्र रहे हैं नाप॥
Good information sir ji
जवाब देंहटाएंThanks