आई है नव वर्ष की, नई नवेली भोर
।
खिड़की से दिल की मुझे, झाँक रहा
चितचोर ।।
पहुँची हो चौबीस में, लेखन से कुछ
ठेस ।
क्षमा ह्रदय से माँगता, उनसे आज रमेश
।।
किया गलत चौबीस में, जिसने भी जो
काज ।
आशा है नव वर्ष में , आ जायें वे बाज ।।
मदिरा में डूबे रहे , लोग समूची रात ।
अंग्रेजी नव वर्ष की, यह कैसी
शुरुआत ।।
पन्नों मे इतिहास के, लिखा स्वयं का
नाम ।
चला साल चौबीस ये, यादें छोड़ तमाम ।।
ढेरों मिली बधाइयाँ, बेहिसाब संदेश ।
मिली घड़ी की सूइयाँ, ज्यों ही रात
रमेश।।
बदली है तारीख बस, बदले नही विचार ।
नये साल का कर रहे, व्यर्थ सभी सत्कार ।।
नये साल का कीजिये, जोरों से आगाज
।
दीवारों पर टांगिये, नया कलैंडर आज
।।
: रमेश शर्मा
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