त्रिलोक सिंह ठकुरेला के कुण्डलिया छन्द

 


कविता जीवन सत्व हैकविता है रसधार ।

अलंकार,रस,छंद में, भाव खड़े साकार ।।

भाव खड़े साकार, कल्पना जाग्रत  होती ।

कर देते धनवान, शब्द के उत्तम  मोती । 

'ठकुरेला' कविराय, हरे तम जैसे सविता ।

मेटें सब अज्ञान, ज्ञान-सागर सी कविता ।।

 

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कठपुतली सी जिन्दगी, डोर प्रकृति के हाथ ।

जाने कैसी गति रहे, जाने किसका साथ ।।

जाने किसका साथ, थिरकना, हँसना, गाना ।

कभी गमों का दौर, अचानक सुख आ जाना ।

'ठकुरेला' कविराय, प्रेम से बाँधे सुतली ।

हिलमिल सबके संग, बिताये दिन कठपुतली ।।

 

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जीवन सबसे श्रेष्ठ है, उससे बढ़कर देश ।

जो अर्पित हो देश पर, जीवन वही विशेष ।।

जीवन वही विशेष, अमरता वह पा जाता ।

यह संसार सदैव, उसी का गौरव गाता 

'ठकुरेला' कविराय, देशहित जिनका तन-मन ।

वंदनीय वे लोग , धन्य है उनका जीवन ।।

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