अपना घर सारी दुनिया से हट कर है|
हर वो दिल, जो तंग नहीं, अपना घर है|१|
माँ-बेटे इक सँग नज़्ज़ारे देख रहे|
हर घर की बैठक में इक 'जलसाघर' है|२|
जिसने हमको बारीकी से पहचाना|
अक़बर उस का नाम नहीं, वो बाबर है|३|
बिन रोये माँ भी कब दूध पिलाती है|
वो जज़्बा दिखला, जो तेरे अन्दर है|४|
उस से पूछो महफ़िल की रंगत को तुम|
महफ़िल में, जो बंदा - आया पी कर है|५|
'स्वाती' - 'सीप' नहीं मिलते सबको, वर्ना|
पानी का तो क़तरा-क़तरा गौहर है|६|
सदियों से जो त्रस्त रहा, दमनीय रहा|
दुनिया में अब वो ही सब से ऊपर है|७|
मेरी बातें सुन कर उसने ये पूछा|
क्या तू भी पगला-दीवाना-शायर है|८|
पहले घर, घर होते थे; दफ्तर, दफ्तर|
अब दफ्तर-दफ्तर घर, घर-घर दफ्तर है|९|
्पानी का तो क़तरा क़तरा गौहर है।
ReplyDeleteअब दफ़्तर-दफ़्तर घर, घर-घर दफ़्तर है।
ख़ूबसूरत पंक्ति , अच्छी अभिव्यक्ति मुबारकबाद्।
हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया संजय जी| स्नेह बनाए रखिएगा|
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 15 -12 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज... सपनों से है प्यार मुझे . .
वाह क्या बात है ... बेहद उम्दा प्रस्तुति ... बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
ReplyDeleteनवीन भाई ... आज आप से बात कर काफी ख़ुशी हुयी ... मैं अओके ब्लॉग का सदस्य बन गया हूँ ... अब तो आना जाना लगा रहेगा !
अओके = आपके
ReplyDeleteहर वो दिल, जो तंग नहीं, अपना घर है.... वाह!
ReplyDeleteवाह! आदरणीय नवीन जी... बहुत सुन्दर ग़ज़ल है....
सादर....
उस से पूछो महफ़िल की रंगत को तुम|
ReplyDeleteमहफ़िल में, जो बंदा - आया पी कर है|५|
वाह क्या बात कही है सर!
सादर
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteमेरी बातें सुन सब मुझे से कहते हैं|
ReplyDeleteक्या तू भी पगला-दीवाना-शायर है|८|
...bahut badiya sughad rachna...
बहुत खूब लाजबाब रचना ,....
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
सब कुछ जनता जान गई ,इनके कर्म उजागर है
चुल्लू भर जनता के हिस्से,इनके हिस्से सागर है,
छल का सूरज डूबेगा , नई रौशनी आयेगी
अंधियारे बाटें है तुमने, जनता सबक सिखायेगी,
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