9 अक्तूबर 2010

चहचहाते थे लड़कपन में परिन्दों की तरह - नवीन



चहचहाते थे लड़कपन में परिन्दों की तरह ।

आजकल राम रटा करते हैं तोतों की तरह ।।

 

अब तो मुश्किल से नज़र भर के कोई तकता है ।

बस टँगे रहते हैं हम चाँद-सितारों की तरह ।।

 

एक झटके में जुदा हो के फ़ना हो गए हैं ।

आबशारों से बिछड़ती हुई बूँदों की तरह ॥

 

छापने वाले भी शिद्दत से नहीं पढ़ते हमें ।

छाप देते हैं उसूलों की किताबों की तरह ॥

 

अच्छे-अच्छों ने कहा कृष्ण की मुरली हैं हम ।

और समझा हमें ढप-ढोल-नगाड़ों की तरह ॥

 

आबशार – झरना


************* 
**********
*******
*****
***
*

पुराना काम : 




अपनी ख़ुशबू तो बिखरनी थी गुलाबों की तरह।
पर बुझा डाला गया हम को चराग़ों की तरह॥

एक झटके में हवाओं ने हमें खींच लिया।
गिरते झरनों से बिछड़ती हुई बूँदों की तरह॥

बोलते सब हैं मगर हम को पढा है किसने।
सिर्फ़ छापा है उसूलों की किताबों की तरह॥

अच्छे-अच्छों ने कहा कृष्ण की मुरली हैं हम।
किन्तु समझा हमें ढप-ढोल-नगाड़ों की तरह॥

यों अगर देखें तो कुछ भी तो न कर पाये हम।
चहचहा भी तो नहीं पाए परिन्दों की तरह॥





******


जिस ने इस दिल को खिलाना था गुलाबों की तरह
उस ने ही दिल को बुझा डाला चिराग़ों की तरह।१।

मैंने देखा है ज़माने को तेरी नज़रों से।
तेरी यादें हैं मेरे दिल में क़िताबों की तरह।२।

मन की धरती पे ख़यालों की उगी घास, उस पर।
तेरा एहसास लगे शबनमी बूंदों की तरह।३।

तेरी ख़ामोशी कभी लगती है सन्नाटे सी।
तो कभी लगती है ढप-ढोल-नगाड़ों की तरह।४।


बहरे रमल मुसम्मन मखबून मुसक्कन
फाएलातुन फ़एलातुन फ़एलातुन फालुन 
२१२२ ११२२ ११२२ २२

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें