10 अक्तूबर 2010

न जी पाते तसल्ली से, सुकूं से मर नहीं पाते

न जी पाते तसल्ली से, सुकूं से मर नहीं पाते
बहुत कुछ करना चाहते हैं हम, पर कर नहीं पाते

मध्य वर्गीय अपना नाम, सपने देखना है काम
न नीचे हैं - न ऊपर हैं, अधर में लटकते भर हैं
तुफानों की रवानी हैं, सफीनों की कहानी हैं
मुद्दों की बिना हैं हम, मगर मुद्दा बिना हैं हम
अमीरों की हिकारत हैं, गरीबों की अदावत हैं
सहाबों की हुकूमत हैं, हुक्मरानों की दौलत हैं
खुदा की बंदगी हैं हम, जहाँ की गंदगी हैं हम
हबीबों का सिला हैं हम, रकीबों का गिला हैं हम
फकीरों की दुआ हैं हम, नसीबों का जुआ हैं हम
हर इक हम काम करते हैं, सुबहोशाम करते हैं
न कर पाते हैं तो बस हौसला भर कर नहीं पाते
बहुत कुछ करना चाहते हैं हम, पर कर नहीं पाते

किसी की आजमाइश हैं, कुदरत की नुमाइश हैं
मजहबों की धरोहर हैं, सल्तनतों की मोहर हैं
काज का वास्ता हैं हम, राज का रास्ता हैं हम
टुकङों में बँटे हैं हम, उफ कितने छँटे हैं हम
सभी की एक सी पहिचान, फिर भी अलग हर इन्सान
कब हम सत्य समझेंगे, हालातों को परखेंगे
जिस दिन एक हो कर हम, निकल आये कदम - ब - कदम
बदल जायेगी ये दुनिया, निखर आयेगी ये दुनिया
बहुत मनसूब करते हैं, इरादे खूब करते हैं
न कर पाते हैं तो बस फैसला भर कर नहीं पाते
बहुत कुछ करना चाहते हैं हम, पर कर नहीं पाते

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