किसका हम करें यकीं दोनों इक थैली के चट्टे बट्टे
खाने को नहीं मिले तो फरमाया अंगूर हैं खट्टे उल्लू तो केवल रात को ही नजरों को पैनी करता है
हर वक्त तुमहें हर जगह पे मिल जायेंगे उल्लू के पठ्ठे मजहब हो या फिर राजनीति, ठेकेदारों को पहिचानो
धन से बोझल, मन से कोमल, तन से होंगे हट्टे कट्टे जनता के तारनहार, बङे मासूम, बङे दरिया दिल हैं
तर जायेंगी सातों पीढी, लिख डाले हैं इतने पट्टे जनता की खातिर, जनता के अरमानों पर, जनता से ही
जनता के हाथों, जन सेवक सब, खेल रहे खुल कर सट्टे
खाने को नहीं मिले तो फरमाया अंगूर हैं खट्टे उल्लू तो केवल रात को ही नजरों को पैनी करता है
हर वक्त तुमहें हर जगह पे मिल जायेंगे उल्लू के पठ्ठे मजहब हो या फिर राजनीति, ठेकेदारों को पहिचानो
धन से बोझल, मन से कोमल, तन से होंगे हट्टे कट्टे जनता के तारनहार, बङे मासूम, बङे दरिया दिल हैं
तर जायेंगी सातों पीढी, लिख डाले हैं इतने पट्टे जनता की खातिर, जनता के अरमानों पर, जनता से ही
जनता के हाथों, जन सेवक सब, खेल रहे खुल कर सट्टे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें