मैं तुझ को बहलाऊँ, तू मुझ को बहला
आज कई दिन बाद मिले हैं फिर से हम
भाई प्लीज़ ज़रा मेरे सर को सहला
पछतावे के अश्क़ बहा कर आँखों से
मैं तुझ को नहलाऊँ तू मुझ को नहला
फालुन फालुन फालुन फालुन फालुन फा
22 22 22 22 22 2
अगर समझता है अपना तो हक़ जतला
भटक रहा है तू, तो मैं भी तनहा हूँ
बोल कहाँ मिलना है चल तू ही बतला
बोल कहाँ मिलना है चल तू ही बतला
डाँट-डपट कुछ भी कर, लेकिन मेरे भाई
अपने बीच में दुनियादारी को मत ला
दावा है तुझ को भी तर कर देंगे अश्क़
एक बार तो ख़ुद से मेरा ज़िक्र चला
अपने बीच में दुनियादारी को मत ला
दावा है तुझ को भी तर कर देंगे अश्क़
एक बार तो ख़ुद से मेरा ज़िक्र चला
भाई प्लीज़ ज़रा मेरे सर को सहला
पछतावे के अश्क़ बहा कर आँखों से
मैं तुझ को नहलाऊँ तू मुझ को नहला
जी करता है फिर से खेलें खेल 'नवीन'
आँख-मिचौनी वाला वो पहला-पहला
फालुन फालुन फालुन फालुन फालुन फा
22 22 22 22 22 2
गिले, शिकायत, शिक़वे, सभी कुबूल मगर|
जवाब देंहटाएंतेरे मेरे बीच, ज़माने को मत ला||
वाह कितनी सुन्दर बात कही है ...भला गिले शिकवे ज़माने के सामने क्यों ... बहुत खूब
बहुत सुन्दर .... बहुत अच्छी गज़ल बन पड़ी है ..
जवाब देंहटाएंतेरी भी पलकें भीग न जाएँ तो कहना|
एक बार तो खुद से मेरा ज़िक्र चला|४|
बहुत खूब
गिले, शिक़ायत, शिक़वे, सर-माथे, लेकिन|
जवाब देंहटाएंअपने- मेरे बीच, ज़माने को मत ला|२|
....बहुत ख़ूबसूरत..
bahut achchhi gazal-badhai
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