10 अक्तूबर 2010

करती हैं सब से ही, प्यार वीणा वादिनी


शब्द सागर मैं, स्वर पद्म पर विराजमान,
साजों का करती हैं, शृंगार वीणा वादिनी|

सरगम माध्यम से, लोगों के तन मन मैं,
करती आनन्द का, संचार वीणा वादिनी|

रागों की रिमझिम मैं, थापों की थिरकन पे,
नृत्य नाटिका का हैं, संसार वीणा वादिनी|

सदबुद्धि देती हैं औ, कुमति हर लेती हैं,
करती हैं सब से ही, प्यार वीणा वादिनी||

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें