शब्द सागर मैं, स्वर पद्म पर विराजमान,
साजों का करती हैं, शृंगार वीणा वादिनी|
सरगम माध्यम से, लोगों के तन मन मैं,
करती आनन्द का, संचार वीणा वादिनी|
रागों की रिमझिम मैं, थापों की थिरकन पे,
नृत्य नाटिका का हैं, संसार वीणा वादिनी|
सदबुद्धि देती हैं औ, कुमति हर लेती हैं,
करती हैं सब से ही, प्यार वीणा वादिनी||
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