अपना घर सारी दुनिया से हट कर है|
हर वो दिल, जो तंग नहीं, अपना घर है|१|
माँ-बेटे इक सँग नज़्ज़ारे देख रहे|
हर घर की बैठक में इक 'जलसाघर' है|२|
जिसने हमको बारीकी से पहचाना|
अक़बर उस का नाम नहीं, वो बाबर है|३|
बिन रोये माँ भी कब दूध पिलाती है|
वो जज़्बा दिखला, जो तेरे अन्दर है|४|
उस से पूछो महफ़िल की रंगत को तुम|
महफ़िल में, जो बंदा - आया पी कर है|५|
'स्वाती' - 'सीप' नहीं मिलते सबको, वर्ना|
पानी का तो क़तरा-क़तरा गौहर है|६|
सदियों से जो त्रस्त रहा, दमनीय रहा|
दुनिया में अब वो ही सब से ऊपर है|७|
मेरी बातें सुन कर उसने ये पूछा|
क्या तू भी पगला-दीवाना-शायर है|८|
पहले घर, घर होते थे; दफ्तर, दफ्तर|
अब दफ्तर-दफ्तर घर, घर-घर दफ्तर है|९|
्पानी का तो क़तरा क़तरा गौहर है।
जवाब देंहटाएंअब दफ़्तर-दफ़्तर घर, घर-घर दफ़्तर है।
ख़ूबसूरत पंक्ति , अच्छी अभिव्यक्ति मुबारकबाद्।
हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया संजय जी| स्नेह बनाए रखिएगा|
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है ... बेहद उम्दा प्रस्तुति ... बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंनवीन भाई ... आज आप से बात कर काफी ख़ुशी हुयी ... मैं अओके ब्लॉग का सदस्य बन गया हूँ ... अब तो आना जाना लगा रहेगा !
अओके = आपके
जवाब देंहटाएंहर वो दिल, जो तंग नहीं, अपना घर है.... वाह!
जवाब देंहटाएंवाह! आदरणीय नवीन जी... बहुत सुन्दर ग़ज़ल है....
सादर....
उस से पूछो महफ़िल की रंगत को तुम|
जवाब देंहटाएंमहफ़िल में, जो बंदा - आया पी कर है|५|
वाह क्या बात कही है सर!
सादर
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंमेरी बातें सुन सब मुझे से कहते हैं|
जवाब देंहटाएंक्या तू भी पगला-दीवाना-शायर है|८|
...bahut badiya sughad rachna...
बहुत खूब लाजबाब रचना ,....
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
सब कुछ जनता जान गई ,इनके कर्म उजागर है
चुल्लू भर जनता के हिस्से,इनके हिस्से सागर है,
छल का सूरज डूबेगा , नई रौशनी आयेगी
अंधियारे बाटें है तुमने, जनता सबक सिखायेगी,
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