“रहगुज़र” – अक़ील नोमानी ( समीक्षा -- मयंक अवस्थी)

“रहगुज़र”  – अक़ील नोमानी                   ( समीक्षा -- मयंक अवस्थी)


अक़ील नोमानी साहब का तअर्रुफ मैं एक ही पंक्ति मे कहना चाहूँगा – जो लोग ग़ज़ल के दुनिया से वाक़िफ नहीं हैं वो अकील नोमानी को जानते हैं और जो लोग गज़ल की दुनिया से वास्ता रखते हैं वो अक़ील नोमानी को मानते हैं । यह नाम इलेक्ट्रानिक मीडिया , मुशायरों और अदबी रिसालों में इतना गूँजता है कि जो लोग शाइरी की बज़्म से ना आशना हैं वो भी उनको जानते हैं । शोर की इस दुनिया में आपकी आवाज़ पहचानी जाती है और शोर इस आवाज़ को सुनने के लिये मुश्ताक और मुंतज़िर रहता है और इज़हार के इम्कान होने पर सिजदे भी करता है । पिछले 30-35 बरसों से एक मोतबर गज़ल के ताइर ने जब देवनागरी के  आसमान में उड़ान भरी तो आसमान उसकी कुव्व्वते –परवाज़ का शाहिद भी हुआ काइल भी  और प्रो वसीम बरेलवी की बात सच हुयी कि उनकी शायरी की रमक उनको नयी सम्तों का ऐतबार बनायेगी – प्रो कौसर मज़हरी कह ही चुके हैं कि उनकी गज़लें उर्दू शाइरी में इज़ाफा तसलीम के जायेंगी – सच यह है कि हम अब हिन्दी और उर्दू के फर्क से उबर चुके हैं –हमारी ज़ुबान हिन्दुस्तानी है और अकील साहब की  हर ग़ज़ल शाइरी की दुनिया का हासिल है । क्यों न हो ?!! सच्ची शाइरी क्यों दिलो ज़ेहन पर तारी हो जाती है ?! इसकी कुछ वाज़िब दलीलें हैं ---

आदमी का पता नहीं कोई - राजेन्द्र स्वर्णकार

   
ठाले बैठे परिवार से अभिन्न रूप से जुड़े हमारे स्नेही राजेन्द्र भाई से लगभग हर ब्लॉगर  परिचित है।  पहली बार उन्होंने  एक ग़ज़ल की मार्फ़त वातायन की सूची को सुशोभित किया है ।स्वागत है बड़े भाई !




ढूँढता हूँ , मिला नहीं कोई
आदमी का पता नहीं कोई

नक़्शे-पा राहे-सख़्त पर न मिले
याँ से होक्या चला नहीं कोई

कल बदल जाएगी हर इक सूरत
देर तक याँ रहा नहीं कोई

आइनों से न यूँ ख़फ़ा होना
सच में उनकी ख़ता नहीं कोई

हर घड़ी जो ख़ुदा ख़ुदा करता
उसका सच में ख़ुदा नहीं कोई

आज इनआम मिल रहे इनको
क़ातिलों को सज़ा नहीं कोई

दिल का काग़ज़ अभी भी कोरा है
नाम उस पर लिखा नहीं कोई

शाइरी से भी दिल लगा देखा
कुछ भी हासिल हुआ नहीं कोई

वो तो राजेन्द्र यूं ही बकता है
उससे होना ख़फ़ा नहीं कोई
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar


बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मखबून
फाएलातुन मुफ़ाएलुन फालुन
2122 1212 22

प्यार में थोड़ी सी कमी, कम नहीं होती - अक़ील नोमानी - मयंक अवस्थी


Aqeel Nomani
“ रहगुज़र” – अक़ील नोमानी ( समीक्षा -- मयंक अवस्थी)

लगता है कहीं प्यार में थोड़ी सी कमी थी
और प्यार में थोड़ी सी कमी, कम नहीं होती -1

यही ज़मीन यही आसमाँ था पहले भी
कहीं मिलेंगे ये दोनो, गुमाँ था पहले भी -2

उजालों के बिना दीदार मुमकिन हो न पायेगा - नवीन

उजालों के बिना दीदार मुमकिन हो न पायेगा ।
अँधेरे हों तो आईना भी हमको क्या दिखायेगा ।१।

हरिक अच्छे-बुरे पहलू को मिल-जुल कर दिखा देंगे ।
मगर तब, जब कोई कुछ आईनों के बीच आयेगा ।२।

हुनरमंदो तुम अपनी पैरवी ख़ुद क्यों नहीं करते ।
वगरना कौन है जो आईनों को हक़ दिलायेगा ।३।

मुसाफ़िर सैर में मशगूल, नाविक नोट गिनने में ।
नदी जब सूख जायेगी, हमें तब होश आयेगा ।४।

अगर लहरों पे रहना है, तो आँखें भी खुली रक्खो ।
ज़रा भी चूक होगी तो समन्दर लील जायेगा ।५।
:- नवीन सी. चतुर्वेदी

बहरे हजज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन

1222 1222 1222 1222

होली पर एक हज़ल [ncc]

रंगोत्सव की शुभकामनायें

होली के मौक़े पर आप सभी को गुदगुदाने के लिये एक हज़ल। ये हज़ल पंकज सुबीर जी द्वारा आयोजित तरही मुशायरे के लिये कही है। 

घड़ी में याँ ठुमकता है घड़ी में वाँ मटकता है
मेरा महबूब है या कोई बे-पैंदे का लोटा है   

वो हथिनी है तो है, पर उस का चेहरा चाँद जैसा है
वो जब साहिल पे चलती है, समंदर भी उछलता है  

होली हाइगा [ncc]

ऋता शेखर मधु जी से प्रेरणा पा कर उन की नकल करते हुये कुछ हाइगा तैयार किये हैं
आशा है आप लोगों को पसंद आयेंगे


हाइगा - 1


होली - फागुन फिन बगराय - राकेश तिवारी

फागुन फिन बगराय 
राकेश तिवारी 

फागुन फिन बगराय गा, सेमल उडि मड़राय,
महुआ गमकै गाम मा, तन उमगन न समाय.  

होली - भाभी बौरायी फिरे,साली भी दे ताल - अश्विनी शर्मा

गलियों गलियों हो रही रंगों की बौछार
बस्ती बस्ती हो गये कितने रंगे सियार

रंग हुए शमशीर से रंग बने पहचान
जीना बेरंगी हुआ अब कितना आसान

होली - स्कूटरिस्ट से बाइकर - मुईन शमसी


’फ़ाइट-ए-ट्रैफ़िक’ के हम परफ़ैक्ट फ़ाइटर हो गए 
पहले थे ’इस्कूटरिस्ट’, अब हम भी ’बाइकर’ हो गए 

होली के दोहे - २७ कवि-कवयित्रियों के १२९ दोहे

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन 
तथा 
होलिका पर्व की अग्रिम शुभकामनायें


शॉर्ट टाइम के अंतर्गत हमारी प्रार्थना स्वीकार करते हुये जिन-जिन रचनाधर्मियों ने ये सुंदर-सुंदर दोहे भेजे हैं, मंच आप सभी का हृदय से आभार व्यक्त करता है। एक बात और, इस पोस्ट में आये दोहों पर कम कम से छान-पटक की है। पूरा समय नहीं दिया जा सका है। इसलिये, यदि कहीं कोई भूल रह गयी हो तो बता कर सुधरवाने की कृपा करें। आज की पोस्ट पर समीक्षा भाई मयंक अवस्थी जी देंगे। एक और खुश-ख़बर है ठाले-बैठे परिवार के लिये; कि अनुभूति वाली पूर्णिमा दीदी ने इन सभी दोहों को उन्हें मेल करने को कहा है - सो बेस्ट ऑफ लक टु ऑल। 

कुमार रवीन्द्र

बदल गई घर-घाट की, देखो तो बू-बास।
बाँच रही हैं डालियाँ, रंगों का इतिहास।१।


उमगे रँग आकाश में, धरती हुई गुलाल।
उषा सुन्दरी घाट पर, बैठी खोले बाल।२।

हुआ बावरा वक्त यह, सुन चैती के बोल।
पहली-पहली छुवन के, भेद रही रितु खोल।३।

बीते बर्फीले समय, हवा गा रही फाग।
देवा एक अनंग है- रहा देह में जाग।४।

पर्व हुआ दिन, किन्तु, है, फिर भी वही सवाल।
'होरी के घर' क्यों भला, अब भी वही अकाल।५।


लोकेश ‘साहिल

होली पर साजन दिखे, छूटा मन का धीर।
गोरी के मन-आँगने, उड़ने लगा अबीर।१।

होली अब के बार की, ऐसी कर दे राम।
गलबहिंया डाले मिलें, ग़ालिब अरु घनश्याम।२।

मुहावरों पर दोहे - आ. सलिल

दोहा कहे मुहावरा, सुन-गुन समझो मीत.
इसमें सदियों से बसी, जन-जीवन की रीत..
*
पानी-पानी हो गये, साहस बल मति धीर.
जब संयम के पल हुए, पानी की प्राचीर..

बहुत कुछ है ये दुनिया - अहमद 'सोज़'

इधर कुछ भी नहीं है
उधर कुछ भी नहीं है

उधर हम जा रहे हैं
जिधर कुछ भी नहीं

उजाला ही न हो जब
नज़र कुछ भी नहीं है

मुसम्मम हो इरादा
सफ़र कुछ भी नहीं है

न हो जलने का सामाँ
शरर कुछ भी नहीं है

फ़क़त एक वाहिमा है
ये डर कुछ भी नहीं है

अगर सूरज न निकले
सहर कुछ भी नहीं है

न हों जिस घर में खुशियाँ
वो घर कुछ भी नहीं है

बहुत कुछ है ये दुनिया
मगर कुछ भी नहीं है

अगर हों बोल मीठे
शकर कुछ भी नहीं है

ये तेरा हुस्नेताबां
क़मर कुछ भी नहीं है

हो दौलत इल्म की तो
गुहर कुछ भी नहीं है

है नाक़द्री यहाँ, अब
हुनर कुछ भी नहीं
 
:- अहमद 'सोज़'

ऋतुराज को आना पड़ा है - ऋता शेखर 'मधु'

फिर वाटिका चहकी खुशी से,खिल उठे परिजात हैं।
मदहोशियाँ फैलीं फ़िजाँ में, शोखियाँ दिन रात हैं।।
बारात भँवरों की सजी है, तितलियों के साथ में।
ऋतुराज को आना पड़ा है, बात है कुछ बात में ।१। 

अष्ट विनायक दर्शन

दिवाली की छुट्टियों में इस बार मित्र मंडली के साथ अष्ट विनायक दर्शन को गए| अष्ट विनायक मंदिरों में फोटो लेने की क़तई मनाही है| इस लिए फोटो सभी गूगल से साभार|





म्हण - वरद विनायक

पाली - बल्लालेश्वर




थेयुर - चिंतामणी

मोरगाम - मयुरेश
सिद्धटेक - सिद्धिविनायक 
राजण गाम - महागणपति
ओझर - विघ्नेश्वर
लेण्‍याद्री - गिरिजात्मक


म्हण में वरद विनायकं, पाली - बल्लालेश|
थेयुर में चिंतामणी, मोरगाम- मयुरेश|| 
मोरगाम - मयुरेश, ह्रदय में श्रद्धा धरिये|
सिद्धटेक  में सिद्धिविनायक दर्शन करिये|
राजणगाम - महागणपति, ओझर - विघ्नेश्वर|
लेण्‍याद्री - गिरिजात्मक, अष्ट विनायक सुन्दर||


दिवाली की छुट्टियों में इस बार मित्र मंडली के साथ अष्ट विनायक दर्शन को गए| अष्ट विनायक मंदिरों में फोटो लेने की क़तई मनाही है| इस लिए फोटो सभी गूगल से साभार|