गलियों गलियों हो रही रंगों की बौछार
बस्ती बस्ती हो गये कितने रंगे सियार
रंग हुए शमशीर से रंग बने पहचान
जीना बेरंगी हुआ अब कितना आसान
पीटो चाहे पीट लो,ये चाहत के ढोल
खोल हटा खुल जायेगी,मढे ढोल की पोल
चटके कई पलाश,लख,बासंती उल्लास
सूना आँगन छोड़ता,चुटकी भर निःश्वास
फागुन छोटा देवरा,फिर फिर छेड़े आय
मनवा बैरी हो गया,तन में अगन लगाय
भाभी बौरायी फिरे,साली भी दे ताल
मीठी मीठी छेड़ से,मनवा हुआ निहाल
इस फागुन की रात में,चाँद रहा भरमाय
चढा करेला नीम पे,करिये कौन उपाय
गेंहू गाभिन गाय सा,चना खनकते दाम
महुआ मादक हो गया,बौराया है आम
:- अश्विनी शर्मा
बस्ती बस्ती हो गये कितने रंगे सियार
रंग हुए शमशीर से रंग बने पहचान
जीना बेरंगी हुआ अब कितना आसान
पीटो चाहे पीट लो,ये चाहत के ढोल
खोल हटा खुल जायेगी,मढे ढोल की पोल
चटके कई पलाश,लख,बासंती उल्लास
सूना आँगन छोड़ता,चुटकी भर निःश्वास
फागुन छोटा देवरा,फिर फिर छेड़े आय
मनवा बैरी हो गया,तन में अगन लगाय
भाभी बौरायी फिरे,साली भी दे ताल
मीठी मीठी छेड़ से,मनवा हुआ निहाल
इस फागुन की रात में,चाँद रहा भरमाय
चढा करेला नीम पे,करिये कौन उपाय
गेंहू गाभिन गाय सा,चना खनकते दाम
महुआ मादक हो गया,बौराया है आम
:- अश्विनी शर्मा
सुन्दर समयानुकूल रचना....बहुत बहुत बधाई...होली की शुभकामनाएं....
जवाब देंहटाएंबढ़िया दोहे ...
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