Aqeel Nomani |
“ रहगुज़र” – अक़ील नोमानी ( समीक्षा -- मयंक अवस्थी)
लगता है कहीं प्यार में थोड़ी सी कमी थी
और प्यार में थोड़ी सी कमी, कम नहीं होती -1
यही ज़मीन यही आसमाँ था पहले भी
कहीं मिलेंगे ये दोनो, गुमाँ था पहले भी -2
न आये लब पे तो कागज़ पे लिख दिया जाये
किसी खयाल को मायूस क्यों किया जाये - 3
खुद हवा आई है चल के तो चलो बुझ जायें
इक तमन्ना ही निकल जायेगी बेचारी की - 4
इक तमन्ना ही निकल जायेगी बेचारी की - 4
गया तो चादरे –ज़ुल्मात छोड़ जायेगा
हर आफताब कोई रात छोड़ जायेगा - 5
यहाँ के लोग चरागों के साये में खुश हैं
अजब नहीं कि यहाँ रोशनी नहीं आये -6
हवस जीने की है और मर रहे हैं
कि सब जालिम से सौदा कर रहे हैं -7
सब हैं संगीनी – ए हांलात से वाकिफ लेकिन
कोई तैयार नहीं सामने आने के लिये -8
पाएदारी क्या कि लफ़्ज़ों के असर से गिर गये
कुछ मकाँ सैलाब की झूठी ख़बर से गिर गये -9
जिन्हें कश्ती डुबोने का सलीका भी नही है
अक़ील उन नाखुदाओं से खुदा महफूज़ रखे -10
खुद चारागर हमारे लिये मौत बन गये
मशहूर ये किया कि मरज़ लाइलाज था -11
रहबरो के कदमो में मंज़िलें नहीं होती
जिसके पास जाओगे रास्ता बता देगा -12
हमें भी सरबुलन्दी का बहुत अहसास रहता है
किसी दहलीज़ पर जिस रोज़ से सर छोड़ आये हैं -13
आरज़ी हों तो उजालों से अन्धेरे अच्छे
तुम उजालों के लिये घर न जलाओ यारों -14
और कुछ तर्केतअल्लुक का बहाना ढूँढो
मेरे इखलास पे तुहमत न लगाओ यारों -15
फर्क कुछ ख़ास नहीं था मेरे हमदर्दों में
कुछ ने मायूस किया मुछ ने दिल- आज़ारी की-16
डूबना ही मेरा मुकद्दर है
ऐ मेरे नाख़ुदा खुदा हाफिज़ -17
रौनक थी शहर भर की हमारे पड़ोस में
लेकिन हमारे घर में उदासी का राज था -18
उसको भी दोस्तों ने दिये तल्ख़ तज़रुबे
वो शख्स भी हमारी तरह खुशमिजाज़ था -19
छेड़ता था सिर्फ जो दुखती रगें
वो हमारा बेतकल्लुफ यार था -20
आँसुओं पर ही मेरे इतनी इनायत क्यों है
तेरा दामन तो सितारों से भी भर जायेगा-21
अहसास की पुरवाइयाँ आवाज़ का मौसम
कब से नहीं देखा है इस अन्दाज़ का मौसम -22
गमों के दौर में राहत का इक लम्हा भी काफी है
हमें तुम मुस्कराकर देख लो, इतना ही काफी है -23
दस्तूरे हुस्नो-इश्क बदल जाना चाहिये
होंठों पे तेरे नाम मिरा आना चाहिये -24
सिमट के एक ही छतरी मे आ गये दौनों
यकीन बन गयी अक़्सर उमीद बारिश में -25
मुम्किन है किसी रोज़ अयादत के बहाने
बीमार से मिलने कोई बीमार भी आये -26
जो कहता था हमारा सरफिरा दिल हम भी कहते थे
कभी तनहाइयों को तेरी महफिल हम भी कहते थे -27
कोई दामन कि मैला हो के भी मैला नहीं होता
किसी दामन पे बदनामी का इक छींटा भी काफी है -28
ये आँखें भीग जाती हैं कभी जब मुस्कुराते हैं
बहुत सरकश है आँसू हम भी इनसे हार जाते हैं -29
ये और बात कि तादाद मे ज़ियादा हैं
मगर तुमारे चिराग़ों में रोशनी कम है -30
ढेर सारी मुहब्बतों के साथ
मयंक अवस्थी
खूबसूरत!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंहर शेर लाजवाब ..
न आये लब पे तो कागज़ पे लिख दिया जाये
किसी खयाल को मायूस क्यों किया जाये
आँसुओं पर ही मेरे इतनी इनायत क्यों है
तेरा दामन तो सितारों से भी भर जायेगा-
इनका तो मुकाबला नहीं...
शुक्रिया.
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंइस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ!
अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंकुछ अति कठिन उर्दू शब्दों के अर्थ चाहिए थे |
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली प्रस्तुति ||
बहुत उम्द: वेराइटी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया,बेहतरीन करारी अच्छी प्रस्तुति,..
जवाब देंहटाएंनवरात्र के ४दिन की आपको बहुत बहुत सुभकामनाये माँ आपके सपनो को साकार करे
आप ने अपना कीमती वकत निकल के मेरे ब्लॉग पे आये इस के लिए तहे दिल से मैं आपका शुकर गुजर हु आपका बहुत बहुत धन्यवाद्
मेरी एक नई मेरा बचपन
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: मेरा बचपन:
http://vangaydinesh.blogspot.in/2012/03/blog-post_23.html
दिनेश पारीक
बेहतरीन प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंक्या बात ! क्या बात ! क्या बात !
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक !
बहुत उम्दा प्रस्तुति !!!!