फिर वाटिका चहकी खुशी से,खिल उठे परिजात हैं।
मदहोशियाँ फैलीं फ़िजाँ में, शोखियाँ दिन रात हैं।।
मदहोशियाँ फैलीं फ़िजाँ में, शोखियाँ दिन रात हैं।।
मीठी बयारों की छुअन से, पल्लवित हर पात है ।
ना शीत है ना ही तपन है, बौर की शुरुआत है।।
ना शीत है ना ही तपन है, बौर की शुरुआत है।।
मौसम सुहाना कह रहा है, कोकिलों, चहको जरा।
परिधान फूलों के पहनकर, ऐ धरा! महको ज़रा।२।
परिधान फूलों के पहनकर, ऐ धरा! महको ज़रा।२।
हुड़दंग गलियों में मचा है, टोलियों के शोर हैं।
क्या खूब होली का समाँ है, मस्तियाँ हर ओर हैं।।
क्या खूब होली का समाँ है, मस्तियाँ हर ओर हैं।।
पकवान थालों में सजे हैं, मालपूए संग हैं।
नव वर्ष का स्वागत करें हम,फागुनी रस रंग है।३।
नव वर्ष का स्वागत करें हम,फागुनी रस रंग है।३।
:- ऋता शेखर 'मधु'
बहुत सुन्दर वासंती रचना...
जवाब देंहटाएंऋता जी आपको बधाई
और नवीन जी आपका शुक्रिया.
सादर.
वसन्त का स्वागत करती बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंसारी रचनाये पढ़ डाली, एक से बढ़कर एक...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना
जवाब देंहटाएंऋता जी को बहुत बहुत बधाई
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 27-02-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
सुन्दर प्रस्तुति ।।
जवाब देंहटाएंवाह वाह
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाएं...
जवाब देंहटाएंबरात भवरों की सजी है तितलियों के साथ में.
जवाब देंहटाएंसुन्दर कल्पना, बधाई.
ऋता शेखर 'मधु'आपको कोटि कोटि बधाइयाँ --बहुत ही सुन्दर बहुत ही सारगर्भित और बहुत ही विषय के अनुकूल कहा है आपने -- यह एक सम्पूर्ण रचना है -- मयंक
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंफिर वाटिका चहकी खुशी से,खिल उठे परिजात हैं
मदहोशियां फैलीं फ़िजां में, शोखियां दिन रात हैं
क्या बात है !
मीठी बयारों की छुअन से, पल्लवित हर पात है
ना शीत है ना ही तपन है, बौर की शुरुआत है
मौसम सुहाना कह रहा है… कोकिलों! चहको जरा
परिधान फूलों के पहनकर… ऐ धरा! महको ज़रा
आहाऽऽहाऽऽऽ… आनंद आ गया … साधु !
मेरे अतिप्रिय छंद हरिगीतिका में बसंत का इतना सुंदर चित्रण करने के लिए जितनी प्रशंसा करूं कम होगा…
बहुत बहुत बधाई स्वीकार कीजिए ऋता शेखर 'मधु'जी !
सुंदर सृजन के आस्वादन का अवसर उपलब्ध कराने हेतु
…नवीन जी के प्रति भी आभार !
हार्दिक शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार