दोहा कहे मुहावरा, सुन-गुन समझो मीत.
इसमें सदियों से बसी, जन-जीवन की रीत..
*
पानी-पानी हो गये, साहस बल मति धीर.
*
चीन्ह-चीन्ह कर दे रहे, नित अपनों को लाभ.
धृतराष्ट्री नेता हुए, इसीलिये निर-आभ..
*
पंथ वाद दल भूलकर, साध रहे निज स्वार्थ.
संसद में बगुला भगत, तज जनहित-परमार्थ..
*
छुरा पीठ में भौंकना, नेता जी का शौक.
लोकतंत्र का श्वान क्यों, काट न लेता भौंक?
*
राजनीति में संत भी, बदल रहे हैं रंग.
मैली नाले सँग हुई, जैसे पावन गंग..
*
दरिया दिल हैं बात के, लेकिन दिल के तंग.
पशोपेश! उनको कहें, हम अनंग या नंग?
*
मिला हाथ से हाथ वे, चला रहे सरकार.
भुला-भुना आदर्श को, पाल रहे सहकार..
*
लिये हाथ में हाथ हैं, खरहा शेर सियार.
मिलते गले चुनाव में, कल झगड़ेंगे यार..
*
गाल बजाते फिर रहे, गली-गली सरकार.
गाल फुलाये जो उन्हें, करें नमन सौ बार..
*
राम नाप जपते रहे,गैरों का खा माल.
राम नाम सत राम बिन, करते राम कमाल..
:- संजीव वर्मा 'सलिल'
वाह!!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रयोग.....
वाह!
जवाब देंहटाएंअद्भुत दोहे...
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंछूंछा चना बाजे घना,राजनीति के माहिं।
जवाब देंहटाएंज्यों सावन घन काजरे बिन बरसे ही जाहिं॥
कछु करनी कछु करमगति कछु पुरिविले पाप।
पहले पाई बाप ने वर्तमान मे आप॥
बहुत अच्छी सोच !