उजालों के बिना दीदार मुमकिन हो न पायेगा ।
अँधेरे हों तो आईना भी हमको क्या दिखायेगा ।१।
हरिक अच्छे-बुरे पहलू को मिल-जुल कर दिखा देंगे ।
मगर तब, जब कोई कुछ आईनों के बीच आयेगा ।२।
हुनरमंदो तुम अपनी पैरवी ख़ुद क्यों नहीं करते ।
वगरना कौन है जो आईनों को हक़ दिलायेगा ।३।
मुसाफ़िर सैर में मशगूल, नाविक नोट गिनने
में ।
नदी जब सूख जायेगी, हमें तब होश
आयेगा ।४।
अगर लहरों पे रहना है, तो आँखें भी
खुली रक्खो ।
ज़रा भी चूक होगी तो समन्दर लील जायेगा ।५।
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे हजज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222
बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंAcharya Sanjiv verma 'Salil'
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जवाब देंहटाएं♥
उजालों के बिना दीदार मुमकिन हो न पायेगा
अंधेरे हों तो आईना भी हमको क्या दिखायेगा
नवीन जी
बहुत ख़ूबसूरत मतला है…
यह शे'र भी बहुत पसंद आया -
हुनरमंदो तुम अपनी पैरवी ख़ुद क्यों नहीं करते
वगरना कौन है जो आइनों को हक़ दिलायेगा
मुबारकबाद !
~*~नवरात्रि और नव संवत्सर की बधाइयां शुभकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
अगर लहरों पे रहना है, तो आँखें भी खुली रक्खो।
जवाब देंहटाएंज़रा सी चूक होगी और समन्दर लील जायेगा।५।
अच्छा है...
हुनरमंदो तुम अपनी पैरवी ख़ुद क्यों नहीं करते
जवाब देंहटाएंवगरना कौन है जो आईनों को हक़ दिलायेगा
अगर लहरों पे रहना है, तो आँखें भी खुली रक्खो
ज़रा सी चूक होगी और समन्दर लील जायेगा।
भाई नवीन जी बहुत खूबसूरत शेरों से सजी ग़ज़ल पढ़वाने के लिये बहुत बहुत आभार. ये दो शेर तो बहुत ज़्यादा पसन्द आये.बधाई!