फागुन फिन बगराय
राकेश तिवारी
फागुन फिन बगराय गा, सेमल उडि मड़राय,
घाम गुलाबी अब लगै, सेंकत देंह जुड़ाय,
अलस तोड़ काया जगै, मनवा यवैं उड़ाय.
बहै फगुनहट मदिर मन, भूलन लागैं आप,
दूर बजै जब ढोल-ढफ, भीतर मारैं थाप.
झूमत डोलत जग चलै, मारै फगुआ घोल,
लाल गुलाबी रँग सने, गोर-सँवर सब लोग.
मधुर मद-भरा परब यहु, बुड़की मारौ बूड़,
बाल-युवा खेला करैं, जशन मनावैं बूढ़.
सुन्दर समयानुकूल रचना....बहुत बहुत बधाई...होली की शुभकामनाएं....
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंहोली की बहुत२ बधाई शुभकामनाए...
RECENT POST...काव्यान्जलि ...रंग रंगीली होली आई,
फागुनी दोहों ने मन को फागुन -फागुन कर दिया।
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