करवा चौथ

बदलता संसार
बदलता व्यवहार
बदलते सरोकार
बदलते संस्कार
बदलते लोग
बदलते योग
बदलते समीकरण
बदलते अनुकरण

बदलता सब कुछ
पर नहीं बदलता
नारी का सुहाग के प्रति समर्पण
साल दर साल निभाती है वो रिवाज
जिसे करवा चौथ के नाम से
जानता है सारा समाज

इस बाबत
बहुत कुछ शब्दों में
बहुत कुछ कहने से अच्छा होगा
हम समझें - स्वीकारें
उस के अस्तित्व को
उस के नारित्व को
उस के खुद के सरोकारों को
उस के गिर्द घिरी दीवारों को

जिस के बिना
इस दुनिया की कल्पना ही व्यर्थ है
दे कर भी
क्या देंगे
हम उसे

हे ईश्वर हमें इतना तो समर्थ कर
कि हम
दे सकें
उसे
उस के हिस्से की ज़मीन
उस के हिस्से की अनुभूतियाँ
उस के हिस्से की साँसें
उस के हिस्से की सोच
उस के हिस्से की अभिव्यक्ति
आसक्ति से कहीं आगे बढ़ कर......................

इंडिया ओस्ट्रेलिया दूसरा वन ड़े

टेस्ट मॅच सीरीज़ में, दिन जो देखे डार्क|
पोंटिंग को कर के विदा, औसिस लाए क्लार्क||
औसिस लाए क्लार्क, शार्क बन के वो आया|
धोनी ने उसको भी हुलरा कर सुलटाया|
अपनी धरती पे मनमानी करने वालो|
विश्व चषक से पहले अपनी नाक बचा लो||

आज के रावण


विजया-दशमी की शुभ-कामनाएँ 

अत्याचार अनीति कौ, लङ्काधीस प्रतीक|
मनुआ जाहि जराइ कें, करें बिबस्था नीक||
करें बिबस्था नीक, सीख सब सुन लो भाई|
नए दसानन  -  भ्रिस्टाचार, कुमति, मँहगाई;
छल, बिघटन, बेकारी, छद्म-बिकास, नराधम|
"मिल कें आगें बढ़ें, दाह कौ श्रेय ल़हें हम"|

एक अकेलो है चना! कैसें फोड़े भाड़?
सीधी सी तो बात है, तिल को करौ न ताड़||
तिल को करौ न ताड़, भाड़ में जाय भाड़ भलि|
जिन खुद बनें, बनाएँ न ही हम औरन कों 'बलि'|
खुद की नीअत साफ रखें, आबस्यकता कम|
"चलौ आज या परिवर्तन कौ श्रेय ल़हें हम"|

वो है भगवान इन्सान के रूप में

सब के दिल में रहे, सबको सजदा करे, 
वो है भगवान इन्सान के रूप में|
जो बिना स्वार्थ खुशियाँ लुटाया करे, 
वो है भगवान इन्सान के रूप में||

अपने माँ-बाप का, बीबी-औलाद का, 
ख्याल रखते हैं सब, इसमें क्या है नया|
दूसरे लोगों की भी जो सेवा करे, 
वो है भगवान इन्सान के रूप में||

ये ही दुनिया का दस्तूर है दोस्तो, 
काबिलों को ही दिल से लगाते सभी,
हौसला हर किसी को जो बख्शा करे, 
वो है भगवान इन्सान के रूप में||

दायरों से न जिसका सरोकार हो, 
मामलों की न परवा करे जो कभी|
मुस्कुराहट के मोती पिरोता रहे, 
वो है भगवान इन्सान के रूप में||

छंद 'हरिगीतिका' - माँ सदा बच्चों के अनुकूल

माँ आप सत हो, शक्ति दात्री , सुख-समृद्धि प्रदायिनी |
माँ इस धरा पर आप विद्या-वित्त-बल वरदायिनी |
माँ आप जड़-चेतन, चराचर, शुभ-अशुभ का मूल हो |
हर हाल में माँ आप निज संतान के अनुकूल हो ||

हरिगीतिका छन्द का विधान:-
चार चरण वाला छन्द
हर पंक्ति दो भागों में विभक्त
पहले भाग में १६ मात्रा
दूसरे भाग में १२ मात्रा
हर पंक्ति [पंक्ति के दूसरे भाग] के अंत में लघु और गुरु वर्ण / अक्षर अपेक्षित

नव-कुण्डलिया - टेस्ट में इंडिया द्वारा ओस्ट्रेलिया का क्लीन स्वीप

दीवाली के पूर्व ही , चलो जलाएँ दीप|
बोल रहा हर इंडियन, वॉट ए क्लीन स्वीप||
वॉट ए क्लीन स्वीप, डीप मीनिंग है इस का|
उसे पछाड़ा, दुनिया में 'हौआ' है जिस का|
'भारत के वीरो' देखो तुम भूल न जाना|
वन-डे में भी अपने जौहर को दिखलाना||

घनाक्षरी कवित्त - ब्रजभाषा में कवित्त - राजा होय चोर तो?

समाधान औसधि है - रोग के निवारन कों,
पे औसधि के रोग कों, औसधि कहा दीजिए?

धर्म की सुरच्छा हेतु नीति हैं अनेक किन्तु,
नीति की अनीतिता पे नीति कौन छीजिये?

भने 'कविदास' जो पे ब्याधी होइ सान्त, तो पे,
भर भर घूँट खूब बिस कों हू पीजिये!

चोर करे चोरी तो सुनावे सज़ा राजा, किन्तु,
राजा होय चोर, तो हवाल कौने कीजिए?

सावन के झूला का छन्द

ब्रजभाषा, घनाक्षरी छन्द

JHULA, RADHA KRISHN


 परम पुनीत, नीक, देह बगिया के बीच,
जोबन कौ ब्रिच्छ, कन-कन रस भीनों है|


ब्रिच्छ पै सनेह साख, साखन पै प्रीत-पात,
पातन कों छुऐ वात आनँद नवीनों है|


छोह की 'नवीन' डोर, फन्द नैन सैनन के,
झूलन के हेतु पाट हिरदे कों कीनों है।


देर न लगाओ अब झूलन पधारो बेगि,
राधिका लली नें श्याम झूला डार लीनों है||

ब्रजभाषा - दुर्मिल सवैया - अनुप्रास अलंकार

बिरहाकुल बीथि-बजारन बीच बढ़े बहुधा बिन बात किए|
मन में मनमोहन मूरत मंजुल, मादकता मधु-राग हिए|
पहचान पुरातन प्रीतम प्रीत, परी पगलाय प्रवीन प्रिए|
सजनी सब सुंदर साज़-सिँगार सहेज सजी सजना के लिए||

१४ हजारी सचिन तेंदुलकर

झुठला कर सरे मिथक, औ अनुमान तमाम|
फोर्टीन थौजेंड हो गए, तेंदुलकर के नाम||
तेंदुलकर के नाम, राम जी उन को राखें|
किरकिट प्रेमी उन के करतब के फल चाखें|
सब के प्यारे, और दुलारे सचिन हमारे|
चर्चा फिर से उनकी होगी द्वारे द्वारे||

कलम के सिपाही - श्री मुंशी प्रेमचंद

क़लम के जादूगर!
अच्छा है,
आज आप नहीं हो|

अगर होते,
तो, बहुत दुखी होते|

आप ने तो कहा था -
कि, खलनायक तभी मरना चाहिए,
जब,
पाठक चीख चीख कर बोले,
- मार - मार - मार इस कमीने को|

पर,
आज कल तो,
खलनायक क्या?
नायक-नायिकाओं को भी,
जब चाहे ,
तब,
मार दिया जाता है|

फिर जिंदा कर दिया जाता है|

और फिर मार दिया जाता है|

और फिर,
जनता से पूछने का नाटक होता है-
कि अब,
इसे मरा रखा जाए?
या जिंदा किया जाए?

सच,
आप की कमी,
सदा खलेगी -
हर उस इंसान को,
जिसे -
मुहब्बत है,
साहित्य से,
सपनों से,
स्वप्नद्रष्टाओं,
समाज से,
पर समाज के तथाकथित सुधारकों से नहीं|

हे कलम के सिपाही,
आज के दिन -
आपका सब से छोटा बालक,
आप के चरणों में -
अपने श्रद्धा सुमन,
सादर समर्पित करता है|


अपना घर सारी दुनिया से हट कर है - नवीन

अपना घर सारी दुनिया से हट कर है|
हर वो दिल, जो तंग नहीं, अपना घर है|१|

माँ-बेटे इक सँग नज़्ज़ारे देख रहे|
हर घर की बैठक में इक 'जलसाघर' है|२|

जिसने हमको बारीकी से पहचाना|
अक़बर उस का नाम नहीं, वो बाबर है|३|

बिन रोये माँ भी कब दूध पिलाती है|
वो जज़्बा दिखला, जो तेरे अन्दर है|४|

उस से पूछो महफ़िल की रंगत को तुम|
महफ़िल में, जो बंदा - आया पी कर है|५|

'स्वाती' - 'सीप' नहीं मिलते सबको, वर्ना|
पानी का तो क़तरा-क़तरा गौहर है|६|

सदियों से जो त्रस्त रहा, दमनीय रहा|
दुनिया में अब वो ही सब से ऊपर है|७|

मेरी बातें सुन कर उसने ये पूछा|
क्या तू भी पगला-दीवाना-शायर है|८|

पहले घर, घर होते थे; दफ्तर, दफ्तर|
अब दफ्तर-दफ्तर घर, घर-घर दफ्तर है|९|

मेरी बाँहों मैं आज तलक, तेरे हुस्न की ख़ुशबू बाकी है - नवीन

कुछ गालों की, कुछ होठों की, 
साँसों की और हया की है
मेरी बाँहों मैं आज तलक, 
तेरे हुस्न की ख़ुशबू बाकी है 
 
तिरछी नज़रें, क़ातिल चितवन, 
उस पर आँखों का अलसाना
तेरा इसमें कुछ दोष नहीं, 
पलकों ने रस्म अदा की है 
 
गोरी काया चमकीली सी, 
लगती है रंग रँगीली सी
  दिलवाली छैल छबीली सी, 
तेरी हर बात बला की है 
 
फूलों सा नरम, मखमल सा गरम, 
शरबत सा मधुर, मेघों सा मदिर
तेरा यौवन मधुशाला है, 
मेरी अभिलाषा साकी है

खाने को नहीं मिले तो फरमाया अंगूर हैं खट्टे

किसका हम करें यकीं दोनों इक थैली के चट्टे बट्टे
खाने को नहीं मिले तो फरमाया अंगूर हैं खट्टे 
 
उल्लू तो केवल रात को ही नजरों को पैनी करता है
हर वक्त तुमहें हर जगह पे मिल जायेंगे उल्लू के पठ्ठे 
 
मजहब हो या फिर राजनीति, ठेकेदारों को पहिचानो
धन से बोझल, मन से कोमल, तन से होंगे हट्टे कट्टे 
 
जनता के तारनहार, बङे मासूम, बङे दरिया दिल हैं
तर जायेंगी सातों पीढी, लिख डाले हैं इतने पट्टे 
 
जनता की खातिर, जनता के अरमानों पर, जनता से ही
जनता के हाथों, जन सेवक सब, खेल रहे खुल कर सट्टे

खेत का भविष्य

खेतों को काट के इमारतें
बनती ही जा रही हैं
जहाँ देखो -
बेइन्तेहा
तनती ही जा रही हैं

चिन्ता होती है
अगर कोन्क्रीट के ये जंगल
युंही फैलते जायेंगे
तो एक दिन
हम अपनी आने वली पीढी को
म्यूजियम में ले के जायेंगे
और बतायेंगे
देखो देखो
वो जो मिट्टी का मैदान
दूर दूर तक
फैला हुआ दिखता है
एक जमाने में
वो खेत कहलाता था
फसल उगाता था
वसुधैव कुटुम्बकम का
पाठ सिखलाता था
हिनदुस्तान को दुनिया में
सबसे अलग दिखलाता था

देखो आज ये किस तरह
हमको चिढा रहा है
फिलहाल
म्यूजियम की
टिकटें
बिकवा रहा है


ऊंट एक योजनाकार

यूं तो ऊंट
एक बुद्धिमान योजनाकार है

जो रेगिस्तान की गरमी से
बचने के लिये
अपने पेट की पोटली में
पानी भर के रखता है

और जब उसे प्यास लगती है
तो किसी को पता भी नहीं चलता
कि वो प्यासा है
और वो
चुपचाप
पानी पी लेता है

मगर
जब उसे कहीं पानी नहीं दिखता

और
उसके पेट की पोटली का पानी भी
खत्म हो जाता है

तो
वो किसी को बता भी नहीं पाता
कि वो प्यासा है

और बस युँही
मर जाता है

बस इसी कारण से
वो
एक बेहतरीन
योजनाकार
नहीं कहलाता

न जी पाते तसल्ली से, सुकूं से मर नहीं पाते

न जी पाते तसल्ली से, सुकूं से मर नहीं पाते
बहुत कुछ करना चाहते हैं हम, पर कर नहीं पाते

मध्य वर्गीय अपना नाम, सपने देखना है काम
न नीचे हैं - न ऊपर हैं, अधर में लटकते भर हैं
तुफानों की रवानी हैं, सफीनों की कहानी हैं
मुद्दों की बिना हैं हम, मगर मुद्दा बिना हैं हम
अमीरों की हिकारत हैं, गरीबों की अदावत हैं
सहाबों की हुकूमत हैं, हुक्मरानों की दौलत हैं
खुदा की बंदगी हैं हम, जहाँ की गंदगी हैं हम
हबीबों का सिला हैं हम, रकीबों का गिला हैं हम
फकीरों की दुआ हैं हम, नसीबों का जुआ हैं हम
हर इक हम काम करते हैं, सुबहोशाम करते हैं
न कर पाते हैं तो बस हौसला भर कर नहीं पाते
बहुत कुछ करना चाहते हैं हम, पर कर नहीं पाते

किसी की आजमाइश हैं, कुदरत की नुमाइश हैं
मजहबों की धरोहर हैं, सल्तनतों की मोहर हैं
काज का वास्ता हैं हम, राज का रास्ता हैं हम
टुकङों में बँटे हैं हम, उफ कितने छँटे हैं हम
सभी की एक सी पहिचान, फिर भी अलग हर इन्सान
कब हम सत्य समझेंगे, हालातों को परखेंगे
जिस दिन एक हो कर हम, निकल आये कदम - ब - कदम
बदल जायेगी ये दुनिया, निखर आयेगी ये दुनिया
बहुत मनसूब करते हैं, इरादे खूब करते हैं
न कर पाते हैं तो बस फैसला भर कर नहीं पाते
बहुत कुछ करना चाहते हैं हम, पर कर नहीं पाते