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कुछ दोहे-सोरठे - नवीन

दोहे 

जलें दीप हर द्वार पर, मिटे अंधेरी रैन|
सब को इस दीपावली, मिले शान्ति, सुख, चैन|१|

पाकिट में पैसे भरे, आँखों में दुःख-दर्द|
बिना फेमिली ज़िंदगी, ज्यूँ सजनी, बिन मर्द|२|

अनुभव, ज्ञान, उपाधियां, रिश्ते, नफरत, प्रीत।
बिन मर्ज़ी मिलते नहीं, यही सदा की रीत ।३।



सोरठे 

ऐसा हुआ कमाल, बाँहें बल खाने लगीं|
पूछ न दिल का हाल, अब के करवा चौथ में|१| 

'करवा-चन्द्र'  निढाल, करता रहा अतीत से|
'शरद-चन्द्र' तत्काल, बहन भाई का प्यार है|२|

:- नवीन सी. चतुर्वेदी 

करवा चौथ

बदलता संसार
बदलता व्यवहार
बदलते सरोकार
बदलते संस्कार
बदलते लोग
बदलते योग
बदलते समीकरण
बदलते अनुकरण

बदलता सब कुछ
पर नहीं बदलता
नारी का सुहाग के प्रति समर्पण
साल दर साल निभाती है वो रिवाज
जिसे करवा चौथ के नाम से
जानता है सारा समाज

इस बाबत
बहुत कुछ शब्दों में
बहुत कुछ कहने से अच्छा होगा
हम समझें - स्वीकारें
उस के अस्तित्व को
उस के नारित्व को
उस के खुद के सरोकारों को
उस के गिर्द घिरी दीवारों को

जिस के बिना
इस दुनिया की कल्पना ही व्यर्थ है
दे कर भी
क्या देंगे
हम उसे

हे ईश्वर हमें इतना तो समर्थ कर
कि हम
दे सकें
उसे
उस के हिस्से की ज़मीन
उस के हिस्से की अनुभूतियाँ
उस के हिस्से की साँसें
उस के हिस्से की सोच
उस के हिस्से की अभिव्यक्ति
आसक्ति से कहीं आगे बढ़ कर......................