सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन
इस आयोजन की सेकंड लास्ट ये आज की पोस्ट एक विशेष पोस्ट है। मंच के वरिष्ठ मार्गदर्शक आचार्य सलिल जी के परामर्श बल्कि उन की आज्ञा के अनुसार ही उन के छंद और उन छंदों पर सुधार वाले सुझाव दोनों एक साथ प्रस्तुत किए जा रहे हैं। सलिल जी का मानना है कि इस से छंदों से प्रेम करने वाले लोगों को बहुत सहायता मिलेगी। पाठकों से भी निवेदन है कि वे अपनी स्पष्ट राय इन छंदों पर रखने की कृपा करें।
संजीव वर्मा 'सलिल' |
आचार्य जी द्वारा भेजे गए छंद
उत्सव मनोहर द्वार पर हैं, प्यार से मनुहारिए।
पथ भोर-भूला गहे संध्या, विहँसकर अनुरागिए।।
सबसे गले मिल स्नेहमय, जग सुखद-सुगढ़ बनाइए।
नेकी विहँसकर कीजिए, फिर स्वर्ग भू पर लाइए।१।
हिल-मिल मनायें पर्व सारे, बाँटकर सुख-दुःख सभी।
जलसा लगे उतरे धरा पर, स्वर्ग लेकर सुर अभी।।
सुर स्नेह के छेड़ें अनवरत, लय सधे सद्भाव की।
रच भावमय हरिगीतिका, कर बात नहीं अभाव की।२।
त्यौहार पर दिल मिल खिलें तो, बज उठें शहनाइयाँ।
मड़ई मेले फेसटिवल या हाट की पहुनाइयाँ।।
सरहज मिले, साली मिले या संग हों भौजाइयाँ।
संयम-नियम से हँसें-बोलें, हो नहीं रुस्वाइयाँ।३।
कस ले कसौटी पर 'सलिल', खुद आप निज प्रतिमान को।
देखे परीक्षाकर, परखकर, गलतियाँ अनुमान को।।
एक्जामिनेशन, टेस्टिंग या जाँच भी कर ले कभी।
कविता रहे कविता, यही है, इम्तिहां लेना अभी।४।
अनुरोध विनती निवेदन है व्यर्थ मत टकराइए।
हर इल्तिजा इसरार सुनिए, अर्ज मत ठुकराइए।।
कर वंदना या प्रार्थना हों अजित उत्तम युक्ति है।
रिक्वेस्ट है इतनी कि भारत-भक्ति में ही मुक्ति है।५।
सुधार के बाद आचार्य जी के छंद
उत्सव मनोहर द्वार पर हैं, प्यार से मनुहारिये।
भूला पथिक जब शाम लौटे, बस उसे पुचकारिये।।
सुखमय, सुगढ़ संसार के हित, स्नेह-सर बन जाइये।
खुद स्वर्ग भू पर पग रखेगा, नेकियाँ अपनाइये।१।
हिल-मिल मनायें पर्व सारे, बाँटकर सुख-दुःख सभी।
ज्यों देवता जलसा लिए खुद, भूमि पर उतरे अभी।।
सुर अनवरत छेड़ो सनेही, बात हो समभाव की।
हरिगीतिकाएं कह रही हैं, लय सधे सदभाव की।२।
त्यौहार पर दिल, मिल खिलें तो, बज उठें शहनाइयाँ।
मड़ई व मेले फ़ेस्टिवल या, हाट की पहुनाइयाँ।।
सरहज मिले, साली मिले या, संग हों भौजाइयाँ।
हँस बोलिए संयम-नियम सँग, हों नहीं रुसवाइयाँ।३।
कस लें कसौटी पर 'सलिल', खुद - आज निज प्रतिमान को।
देखें परीक्षाकर, परखकर, गलतियाँ, अनुमान को।।
एक्जामिनेशन, टेसटिँग या, जाँच भी कर ले कभी।
कविता रहे कविता, यही है, इम्तिहां लेना अभी।४।
इस चौथे छंद को एक इस प्रकार भी सोचा गया :-
अब खुद कसौटी पर सलिल के, काव्य का प्रतिमान है ।
देखें परीक्षाकर, परखकर, क्या सही अनुमान है ।।
एक्जामिनेशन, टेसटिँग या, जाँच तुम कर लीजिये।
ये इम्तिहाँ हम दे चुके हैं - आप नंबर दीजिये।४।
अनुरोध है विनती, निवेदन, व्यर्थ मत टकराइये।
हर इल्तिज़ा, इसरार सुनिए, अर्ज़ मत ठुकराइये।।
कर वंदना सह प्रार्थना ही, मात्र उत्तम युक्ति है।
सम्पूर्ण भारत-भक्ति में ही, सत्य-सार्थक मुक्ति है।५।
आचार्य जी की आज्ञा के अनुसार उन के छंदों में उन के शब्दों के अनुसार चीर-फाड़ की है। सम्भव है पाठक वृंद कुछ और भी सुझाव दें, परंतु लय को ले कर यदि किसी को कुछ कहना हो तो पहले कृपया पिछली पोस्ट में दी गई मेरी टिप्पणी पर एक बार गौर अवशय कर लें।
आचार्य जी ने इन छंदों में जो काव्य प्रयोग किए हैं, जिस तरह इन छंदों को अलंकृत किया है उस का विश्लेषण मुझसे बेहतर आप लोग करेंगे।
आ. सलिल जी, जो कि वर्षों से अंतर्जाल पर और व्यावहारिक जीवन में हिन्दी तथा ख़ासकर छंद सेवा को समर्पित हैं, उन का यह क़दम निश्चय ही मेरे लिए तथा मेरे जैसे अन्य विद्यार्थियों के लिए भी एक अच्छा सबक है। मैंने डरते डरते इन छंदों पर काम किया है, और अब मैं खुद भी पाठक माई-बाप की अदालत में हाज़िर हूँ। किसी वरिष्ठ के काम पर फिर से काम करना, विचारों को यथावत रखते हुए शिल्प का भी अधिकतम सम्मान करना - ये मेरे लिए बहुत बड़ी चुनौती थी - आप लोग ही बताएँगे कि मैं पास हुआ या फेल!
आप इन छंदों का आनंद लें, अपने विचार व्यक्त करें और हम तैयारी करते हैं समापन पोस्ट की।
जय माँ शारदे!
आचार्य जी की भाषा सुगढ ,कव्यात्मक चेतना से ओतप्रोत है --इन छ्न्दों का आन्तरिक संगीत श्रव्य है और कर्णप्रिय है --अधिकारी भाव से कहे गये छ्न्द हैं और -परिवर्तित छ्न्दों ने भी बहुआयामी काव्य क्षमता का पुष्ट परिचय दिया है -- भाषा में प्रयोग भी कवि की रचना प्रक्रिया के वृहत्तर क्षितिज का संकेत दे रहे हैं । आचार्य जी का नाम काव्य जगत में सुपरिचित और आदरणीय है और अंतर्जाल पर विविध आयामों में उनकी सार्थक और समर्थ उपस्थिति के सभी लोग साक्षी हैं --हरिगीतिका समस्या पूर्ति की इस पोस्ट में उनके छन्द अपनी विशिष्टता , सामाजिक सन्देशों और काव्य सामर्थ्य जैसी विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं -- सहयोग और उल्लेखनीय योगदान के लिये उनका आभार !!!! सभी छ्न्द सराहनीय हैं !!
जवाब देंहटाएंयह पोस्टलेखक के द्वारा निकाल दी गई है.
जवाब देंहटाएंएक सम्पूर्ण छंद का आनंद दिला रही यह रचना इतनी अच्छी लगी की शब्द ही नहीं मिल रहे हैं सराहना के लिए |
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे छंद |
आशा
आचार्य जी के लिए क्या कहा जाय। ऐसा कौन सा छंद है जिसमें उन्होंने महारथ न हासिल की हो। उन्होंने जो छंद भेजे हैं वो सारे अपने आप में संपूर्ण हैं और बदलाव के बाद ऐसा लग रहा है जैसे किसी खूबसूरत स्त्री को खूबसूरत गहने पहना दिए गए हों। आचार्य जी और नवीन जी दोनों को कोटिशः साधुवाद। ये महायज्ञ यूँ ही अनवरत चलता रहे।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन छंद ..और ज्ञानवर्धक पोस्ट .. हिंदी के रचनाधर्मियों के लिए आपके ब्लॉग में विशेष मिलता है..और जानकारों को पुनरवलोकन करने का मौका मिलता है... सलील जी का इस क्षेत्र में जवाब नहीं... नवीन जी आप को धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत क्षमाप्रार्थी हूं कि आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'जी द्वारा रचित हरिगीतिकाओं की इस महत्वपूर्ण पोस्ट पर समयाभाव और विपरीत परिस्थितियों के कारण पढ़ लेने के उपरांत कुछ भी कहना यथासमय नहीं हो पाया …
जवाब देंहटाएंयह आचार्य श्री का बड़प्पन है कि छंदों से प्रेम करने वाले लोगों को सहायता मिलने के भाव से उन्होंने नवीन जी को छंदों में आवश्यकतानुसार सुधार और सुझाव का दायित्व सौंपा …
प्रणाम है आचार्य जी !
क्योंकि अवसर निकल चुका है , इन पर विस्तार से कहने का अब कोई औचित्य नहीं । समयाभाव अभी भी है …
नवीन जी का कौशल छुपा हुआ नहीं ।
छंदबद्ध काव्य-हितार्थ ऐसे आयोजन सदैव स्वागत योग्य हैं !