15 अगस्त 2025

 

नमस्कार, 

विभिन्न भाषाओं की स्वीकार्य, सम्भाव्य एवं रुचिकर विविध विधाओं के प्रकाशन के लिए समर्पित वेबपोर्टल साहित्यम के सद्याद्यतन में निम्नलिखित कृतियों का समावेश किया गया है. 

ग़ज़ल - ख़्वाब जैसा ही इक रतजगा हो गया - प्रज्ञा शर्मा

  

ख़्वाब जैसा ही इक रतजगा हो गया 

मैं तेरी हो गई तू मेरा हो गया

अवधी निर्गुण - पूनम विश्वकर्मा

  

वन-वन भटकत प्रेम चिरइया

नहीं कटत वनवास रे,

पिय से मिलन की आस रे मोहे,

मोहे पिय से मिलन की आस रे।

ग़ज़ल - लगता है जी रहे हैं जैसे किसी क़फ़स में - देवमणि पाण्डेय


लगता है जी रहे हैं जैसे  किसी क़फ़स में 

इक पल भी जिंदगी का अपने नहीं है बस में

कहानी - भूख - रचना निर्मल

 मोबाइल की छोटी सी स्क्रीन और अनलिमिटेड डाटा के रूप में चालीस साल की रीमा के हाथ मशहूर होने का नायाब तरीका लग गया था। वो कहीं भी किसी भी जगह यानि पार्कसड़कबाज़ार,माॅलमेट्रोरेस्टरां घर के किसी कोने में खड़ी हो कर कुछ भी स्टाइल से बोलकरअपने यूट्यूब चैनल,इंस्टा या फेसबुक पर पोस्ट कर देती थी। 

बस... सिलसिला शुरू हो जाता था लाइक देखने का और कमैंट्स पर थैंक्यू कहने का । कहीं भी होउसके कान नोटिफिकेशन की टुन पर लगे रहते थे । खुद से ही कहती थी," "वाऊ,रीमा यू

कविता - मैं दुखी हूँ - सन्ध्या यादव

 

मैं  दुखी हूँ...

मैं बहुत दुखी हूँ...

पर उतनी नहीं ,

जितनी वो माँ है

जिसकी बेटी के अधमरे शरीर को

गुंडे घर में फेंक गये चार दिन बाद,

व्यंग्य - आ बैल मुझे मार - अर्चना चतुर्वेदी

 यदि आप आ बैल मुझे मार टाइप कहावत का वास्तविक अनुभव लेना चाहते हैं और गलती से या खुशनसीबी से आप साहित्य की दुनिया में भी हैं तो आप चाचा मामा पिता पत्नी जिससे भी आपको प्रेम हो तुरंत उनके नाम से एक पुरस्कार शुरू कर दें , यदि आपको सिर्फ खुद से प्रेम हो और खुद को महान भी समझते हैं तो अपने मरने का इंतजार करने की जरूरत नही आप अपने नाम से ही पुरस्कार शुरू कर दें आपकी महानता में चार चाँद लगाने का कार्य दूसरे कर ही देंगे ।

व्यंग्य - साहित्य का रेंगता कीड़ा - मुकेश असीमित

  

चैम्बर में बैठा अपने पीछे की अभी तक खाली पडी अलमारी को देख रहा हूँ ,आलमारी में शीशे लगवा लिए ,बस इंतज़ार है तो कुछ दो चार पुरुस्कारों का जो भूले भटके से कोई मेरी झोली में भी डाल दे! 

देखोपुरस्कार की सब जगह पूछ है। बिना पुरुस्कृत लेखक समाज में तिरस्कृत सा डोलता है। पत्र पत्रिकाओं के प्रकाशक भी उन्ही लेखकों