ज्यूँ सहरा में रेत है, पानी में है मीन।
तेरे मन में मैं रहूँ, कह भी दे आमीन।।
करता रहता है सदा, मन तेरा ही जाप।
कान लगाकर सुन कभी, साँसों की पदचाप।।
अपना ले या फूँक दे, ओ रे मेरे पीर!
अब तेरे ही नाम है, इस दिल की जागीर।।
उस पल में कैसा अजब, जादू था मनमीत।
जिसमें मैं संगीत था, तू प्यारा-सा गीत।।
भाव हज़ारों हैं मगर, शब्द नहीं हैं चार।।
दिल से दिल की बात का, कैसे हो इज़हार।
तितली जी ने आज फिर, चूम लिया है फूल।
यानी शर्तें प्यार की, फिर से हुई क़ुबूल।।
जब गिरती है पेड़ पर, चमकीली-सी धूप।
खिल-खिल उठता है तभी, हर पत्ती का रूप।।
यार ख़ुदा के वास्ते, यह भी कर इक रोज़।
बेटे की सब ख़ूबियाँ, बेटी में भी खोज।।
कितने बौने हो गये, कायनात के हाथ।
माँ, बीवी, बेटी, बहन, खड़ी हुईं जब साथ।।
बारिश बारिश ही नहीं, है कुदरत का प्यार।
सावन में तुम देखना, पेड़ों का आकार।।
रखवालों की सोच में, आयी जबसे खोट।
तबसे पर्वत झेलते, रोज़ नए विस्फोट।।
गाएँ छाया खोजतीं, पंछी ढूँढे नीड़।
हम अपने में मस्त हैं, कब समझेंगे पीड़।।
सोच रहा हूँ देखकर, मैं नदियों का हाल।
क्या भीतर से हम सभी, इतने हैं कंगाल।।
बेटे ने दहलीज़ के, बाहर रक्खे पाँव।
सूना-सूना हो गया, माँ के मन का गाँव।।
भीतर भी इक जंग हैं, बाहर भी है जंग।
और नहीं आते मुझे, लड़ने वाले ढंग।।
दो हिस्सों में बँट गया, जब-जब इक परिवार।
तब धरती की देह को, बोझ लगी दीवार।।
नदिया, जंगल, रास्ते, पर्वत, सागर, झील।
चलता जाता है सफ़र, बनती जाती रील।।
बातों-बातों में मुझे, कहकर भाईजान।
गरज पड़ी तो कर गया, रिश्ते का सम्मान।।
बच्चे को जब लग गयी, दुनिया की कुछ आँच।
चुटकी में करने लगा, दो और दो को पाँच।।
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