अवधी निर्गुण - पूनम विश्वकर्मा

  

वन-वन भटकत प्रेम चिरइया

नहीं कटत वनवास रे,

पिय से मिलन की आस रे मोहे,

मोहे पिय से मिलन की आस रे।

 

भइल बा जर्जर तन के ठठरिया,

उठत न भारी करम गठरिया,

घुटि-घुटि तड़पत साँस रे,

पिय से मिलन की आस।

 

मोह सखी काहें रोकत जबरी,

प्रियतम प्रीत लगन बेसबरी।

मैली धानी देख चुनरिया,

रूठ न जाए मोर संवरिया।

सोचे मनवा उदास रे।

पिय से मिलन की आस रे।

 

प्रियतम पूछिहंइ विरह के बेला,

खेललू हे गोरी कवन तू खेला?

देखिहंइ बलम जब मैली चुनरिया,

कइसे मिलाइब ओनसे नजरिया

लेहले नयन में पियास रे।

पिय से मिलन की आस रे।

 

वन-वन भटकत प्रेम चिरइया

नहीं कटत वनवास रे,

पिय से मिलन की आस रे मोहे,

मोहे पिय से मिलन की आस रे।

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