राग हैं कुछ गुनगुनाने शेष अब तक
कुछ प्रणय के गीत गाने शेष अब तक
देह, निःसंदेह अब अवसान पर है
भावना अब भी मगर उत्थान पर है
भाग्य ने सान्निध्य का अवसर दिया कब
दृष्टि फिर भी आपके प्रतिमान पर है
स्वप्न अनगिन हैं सजाने शेष अब तक
कुछ प्रणय के गीत गाने शेष अब तक
ग्रीष्म, पतझर, शीत के भी आये मौसम
तुम बरसते ही रहे मन में झमाझम
माह, दिन, सप्ताह, बरसों में ढले, पर,
प्रेम-पावस प्रिय तुम्हारा कब हुआ कम
शुष्क हैं कुछ पल अजाने शेष अब तक
कुछ प्रणय के गीत गाने शेष अब तक
तुम प्रणय गीतों का मेरे व्याकरण हो
भावनाओं का तुम्हीं अंतःकरण हो
तृप्त मुझको कर रहा जो क्षण प्रतिक्षण
नेह का निर्बाध बहता निर्झरण हो
क्यों नयन हैं फिर लजाने शेष अब तक
कुछ प्रणय के गीत गाने शेष अब तक
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