गीत - राग हैं कुछ गुनगुनाने शेष अब तक - अशोक अग्रवाल 'नूर'

 

 राग हैं कुछ गुनगुनाने शेष अब तक

कुछ प्रणय के गीत गाने शेष अब तक

 

देहनिःसंदेह  अब अवसान  पर  है 

भावना अब भी मगर उत्थान  पर है

भाग्य ने सान्निध्य का अवसर दिया कब

दृष्टि  फिर  भी आपके  प्रतिमान  पर है

 

स्वप्न अनगिन  हैं सजाने  शेष अब तक

कुछ प्रणय के  गीत गाने  शेष अब तक

 

ग्रीष्मपतझरशीत  के भी आये मौसम

तुम बरसते  ही  रहे  मन में झमाझम

माहदिनसप्ताहबरसों में ढले, पर,

प्रेम-पावस प्रिय तुम्हारा कब हुआ कम

 

शुष्क हैं कुछ पल अजाने  शेष अब तक

कुछ  प्रणय के गीत गाने शेष अब तक

 

तुम प्रणय गीतों का  मेरे  व्याकरण हो

भावनाओं का  तुम्हीं अंतःकरण हो

तृप्त मुझको कर रहा जो  क्षण प्रतिक्षण

नेह  का  निर्बाध  बहता  निर्झरण  हो

 

क्यों नयन हैं  फिर लजाने  शेष अब तक

कुछ  प्रणय के  गीत गाने  शेष अब तक

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी करने के लिए 3 विकल्प हैं.
1. गूगल खाते के साथ - इसके लिए आप को इस विकल्प को चुनने के बाद अपने लॉग इन आय डी पास वर्ड के साथ लॉग इन कर के टिप्पणी करने पर टिप्पणी के साथ आप का नाम और फोटो भी दिखाई पड़ेगा.
2. अनाम (एनोनिमस) - इस विकल्प का चयन करने पर आप की टिप्पणी बिना नाम और फोटो के साथ प्रकाशित हो जायेगी. आप चाहें तो टिप्पणी के अन्त में अपना नाम लिख सकते हैं.
3. नाम / URL - इस विकल्प के चयन करने पर आप से आप का नाम पूछा जायेगा. आप अपना नाम लिख दें (URL अनिवार्य नहीं है) उस के बाद टिप्पणी लिख कर पोस्ट (प्रकाशित) कर दें. आपका लिखा हुआ आपके नाम के साथ दिखाई पड़ेगा.

विविध भारतीय भाषाओं / बोलियों की विभिन्न विधाओं की सेवा के लिए हो रहे इस उपक्रम में आपका सहयोग वांछित है. सादर.