ग़ज़ल - अब तजरबा भी कर लिया पढ़ ली किताब भी - तनोज दाधीचि

  


अब तजरबा भी कर लिया पढ़ ली किताब भी 

सब कुछ समझ गया हूँ हक़ीक़त भी ख़्वाब भी

 

मैंने बना के सबसे रखी काम के हैं सब

मुझको चराग़ जानता है आफ़ताब भी

 

मैंने कहा था तुझसे ज़रा इन्तिज़ार कर

अब देख हो गया हूँ ना मैं कामयाब भी

 

जब दूर तुम हुए तो क़लम को उठा लिया

वरना तो दोस्त लाए थे मेरे शराब भी

 

जो लोग मानते नहीं शाइर 'तनोजको 

अब इस ग़ज़ल से मिल गया उनको जवाब भी

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