शान-ए-शायरी
हज़रत मिर्ज़ा ग़ालिब की ज़मीन ‘दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है” पर एक जदीद कोशिश:-
यह
न गाओ कि हो चुका क्या है।
यह
बताओ कि हो रहा क्या है॥
ख़ुद
भगीरथ भी सोचते होंगे।
क्या
किया था मगर हुआ क्या है
आप
कहते हैं तंग थीं गलियाँ।
शाहराहों
से भी मिला क्या है॥
झोंपड़े
ही बतायेंगे खुल कर।
आज
कल मुल्क में हवा क्या है॥
बह्स-बाज़ों
को कौन समझाये।
अब
का तब से मुक़ाबला क्या है॥
हम
फ़क़ीरों को तुम बताओगे।
बन्दगी
क्या है और ख़ुदा क्या है॥
गर
क़दीमी बचा नहीं सकती।
तो
इलाज और दूसरा क्या है॥
दिल
तो बच्चा है सो मचल बैठा।
कौन
समझाये फ़लसफ़ा क्या है॥
क्लास
में पूछता है इक बच्चा।
सर!
मआनी ‘फ़िजूल’ का क्या है॥
झुक
के बोला क़लम,
इरेज़र से।
यार
तुझको मुग़ालता क्या है॥
:-
नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे
खफ़ीफ मुसद्दस मखबून
फाएलातुन
मुफ़ाएलुन फालुन
2122
1212 22