दो ही पल के दर्द में..हम हो गये निढाल
तू कैसे हँसता रहा..दुख में सालों-साल
तू कैसे हँसता रहा..दुख में सालों-साल
जब विपदा की रैन में..छोड़ गये सब साथ
मुझको सहलाते रहे..जाने किसके हाथ
मुझको सहलाते रहे..जाने किसके हाथ
चादर से बाहर हुए..जब से अपने पाँव
कंधों-कंधों धूप है..घुटनों-घुटनों छाँव
कंधों-कंधों धूप है..घुटनों-घुटनों छाँव
युग बदले, बदले नहीं-निर्धन के हालात
आज तलक भी ढाक के..वही तीन हैं पात
आज तलक भी ढाक के..वही तीन हैं पात
मुख दमके आह्लाद में..कभी दुःख में माँद
जाने किसके इश्क़ में..दीवाना है चाँद
जाने किसके इश्क़ में..दीवाना है चाँद
इस दिल की दीवानगी..करे तमाशा ख़ूब
मैं दर्पण के सामने..दर्पण में महबूब
मैं दर्पण के सामने..दर्पण में महबूब
इक उजली इक साँवली..लेकिन गुण अनुरूप
ओस निशा दोनों सखी..छुपें देखकर धूप
ओस निशा दोनों सखी..छुपें देखकर धूप
तीक्ष्ण बाण-सा भेदती..कई दिलों के मर्म
यूँ कहने को है ग़ज़ल..कमल-नाभ सी नर्म
यूँ कहने को है ग़ज़ल..कमल-नाभ सी नर्म
सकुचाये बोझिल नयन..सहमी-सिमटी चाल
लाज-हया ने डाल दी.यौवन को वरमाल
लाज-हया ने डाल दी.यौवन को वरमाल
:- आदिक भारती
आदिक साहब! ग़ज़ब के दोहे हैं..... मज़ा आया पोस्ट कर के। आप से दूसरी किश्त की फरमाइश अभी से की जा रही है। आशा है आप निराश नहीं करेंगे।
सही है ..
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति !!
अद्भुत...बिल्कुल अलग हट कर दोहे!!
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंआशा
संगे-ख़ार मनक्कस बसर पै घसे तीर..,
जवाब देंहटाएंकजे-अब्र ब-रफ़्तार नज़र पै कसे तीर..,
कजअदा दिलरुबा किस अदा से चलाए..,
चाक करके चीर के जीगर पै धँसे तीर.....
संगे-ख़ार= एक तरह का कडा पत्थर
संगे-मनक्कश= तराश कर
सगे-बसर= बसरी में पाया जानेवाला एक पत्थर
कजे-अब्र = तिर्यक भृकुटी
कजे-रफ़्तार= कुटिल गति से चलने वाले
कज-अदा= बेमुरव्वत, बेवफ़ा
बहुत ही सुन्दर..
जवाब देंहटाएंwah ! maza aa gaya padh kar...bahut sundar prastuti
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