अब इख़्तियार में मौजें न ये रवानी है
मैं बह रहा हूँ कि मेरा वजूद पानी है
इख़्तियार - अधिकार, मौजें - लहरें,
रवानी
- बहाव, वजूद - अस्तित्व
मैं और मेरी तरह तू भी इक हक़ीक़त है
फिर उस के बाद जो बचता है वो कहानी है
तेरे वजूद में कुछ है जो इस ज़मीं का नहीं
तेरे ख़याल की रंगत भी आसमानी है
ज़रा भी दख़्ल नहीं इस में इन हवाओं का
हमें तो मस्लहतन अपनी ख़ाक उड़ानी है
दख़्ल - हस्तक्षेप, मस्लहतन - [किसी] कारण वश
ये ख़्वाब-गाह ये आँखें ये मेरा इश्क़-ए-क़दीम
हर एक चीज़ मेरी ज़ात में पुरानी है
ख़्वाब-गाह - शयन-कक्ष [Bedroom], इश्क़-ए-क़दीम - पुरातन
प्रेम, ज़ात - नस्ल के सन्दर्भ में
वो एक दिन जो तुझे सोचने में गुजरा था
तमाम उम्र उसी दिन की तर्जुमानी है
तर्जुमानी - अनुवाद
:- अभिषेक शुक्ला
मुफ़ाएलुन फ़एलातुन मुफ़ाएलुन फालुन
1212 1122 1212 22
बहरे मुजतस मुसमन मखबून महजूफ
बहुत बेहतरीन सुंदर गजल ,,,साझा करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंRECENT POST : बेटियाँ,
वाह! बहुत सुन्दर....लाज़वाब
जवाब देंहटाएंनवीन सर- पढ़ाने के लिए दनयावाद
अहा, बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंअरे वाह मज़ा आ गया अभिषेक को पढकर. शुक्रिया नवीन जी अभिषेक से परिचय कराने के लिये.
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