उलझनों में गुम हुआ फिरता है दर-दर आइना ।
झूठ को लेकिन लगे है अब भी ख़ंजर आइना ।।
शाम तक खुद को सलामत पा के अब हैरान है।
पत्थरों के शह्र में घूमा था दिन भर आइना ।।
मैंने पल भर झूठ-सच पर तब्सिरा क्या कर दिया।
रख गए हैं लोग मेरे घर के बाहर आइना ।।
तब्सिरा - आलोचना / समीक्षा
अपना अपना फ़ैसला है, अपना अपना हौसला।
कोई पत्थर बन के खुश है कोई बन कर आइना ।।
कोई पत्थर बन के खुश है कोई बन कर आइना ।।
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ख़ूब भटका है दर-ब-दर कोई।
ले के लौटा है तब हुनर कोई ।।
अब पशेमाँ नहीं बशर कोई ।
ख़ाक होगी नई सहर कोई ।।
पशेमाँ - शर्मिन्दा
सहर - सुबह
हिचकियाँ बन्द ही नहीं होतीं।
सोचता होगा किस क़दर कोई ।।
ग़मज़दा देखकर परिंदों को।
ख़ुश कहाँ रह सका शजर कोई ।।
शजर - पेड़
धुन्ध ने ऐसी साजिशें रच दीं।
फिर न खिल पाई दोपहर कोई ।।
कोई ख़ुशियों में ख़ुश नहीं होता।
ग़म से रहता है बेख़बर कोई ।।
पाँव को मंज़िलों की क़ैद न दे।
बख़्श दे मुझको फिर सफ़र कोई।।
ग़म की कुछ इन्तेहा नहीं होती।
फेर लेता है जब नज़र कोई ।।
सामने है तवील तन्हा सफ़र।
सामने है तवील तन्हा सफ़र।
मुन्तज़िर है न मुन्तज़र कोई।।
तवील, तनहा सफ़र - लम्बी अकेली यात्रा
मुन्तज़िर - प्रतीक्षा करने वाला
मुन्तज़र - जिस की प्रतीक्षा की जा रही हो, वह व्यक्ति
बेहयाई की हद भी है 'वीनस'।
तुझपे होता नहीं असर कोई ।।
आपने लिखा....
जवाब देंहटाएंहमने पढ़ा....
और लोग भी पढ़ें;
इसलिए शनिवार 04/05/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है .
धन्यवाद!
दिल आज़ार ना करो संगसार ना करो..,
जवाब देंहटाएंकहाँ कब जुड़ा है फिर यूँ टूट कर आइना.....
बहुत ही सुन्दर गज़लें,आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया गजल कहीं वीनस भाई..
जवाब देंहटाएंदिल को छू गईं
बहुत ही सुन्दर गज़लें,
जवाब देंहटाएंसारी गज़लें एक से बढ़कर एक
जवाब देंहटाएंसुन्दर गज़लें .....हाँ पहली ग़ज़ल का पहला शेर अर्थवत्ता में असम्वद्ध है ..
जवाब देंहटाएंलाजवाब!
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