समस्त साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन
==========================================================
घनाक्षरी छंद के बारे में हम ने एक बात नोट की| पढ़ कर समझने की बजाय जब लोगों ने इस को औडियो क्लिप के जरिये सुना तो तपाक से बोल उठे अरे ये तो वो वाला है, हाँ मैंने सुना है इसे, अरे मैं तो जानता हूँ इसे| इस तरह की बातों को ध्यान में रखते हुए हम घोषणा के वक्त दी गयी औडियो क्लिप्स को एक बार फिर से यहाँ दोहराते हैं:-
तिलक भाई द्वारा गाई गई रचना श्री चिराग जैन जी की है, और कपिल द्वारा गाई गई - मेरी|
==========================================================
चौपाई, दोहा, रोला और कुण्डलिया के बाद जब हमने घनाक्षरी पर चर्चा शुरू की तो मस्तिष्क में पाँचवी समस्या पूर्ति दर्ज हो गई, और इसी कारण त्रुटि वश 'पाँचवी समस्या पूर्ति' लिख भी दिया| पर चूँकि हमने रोला छन्द से सीधी कुण्डलिया पर जम्प मार दी थी, सो ये होनी चाहिए थी चौथी वाली| बाद में पता चला, तो सुधार कर दिया गया है , और आइये श्री गणेश करते हैं घनाक्षरी छन्द पर आयोजित इस चौथी समस्या पूर्ति का|
उम्मीद के मुताबिक़ इस घनाक्षरी छन्द पर भी आप लोगों का रुझान काबिलेतारीफ है| कई सारी प्रविष्ठियां मिली हैं, कुछ पर काम भी चल रहा है| सब से पहली प्रविष्टि मिली सुरेन्द्र भाई की तो इस आयोजन की शुरुआत भी करते हैं उन के साथ ही| खास बात ये कि 'झंझट' शब्द सिर्फ इन के नाम में ही जुड़ा है - बाक़ी इनके छंदों में कोई झंझट नहीं है|

एक नहीं, सभी सास-बहुओं से विनती है,
आपसी लड़ाई में न जिंदगी बिताइए|
बहू और बेटी में न होता कोइ फर्क, आप -
सास हैं! तो मातु जैसी ममता लुटाइए|
बहू जी! सुसौम्यता की भी प्रतीक बन आप
प्रेमगंग धार ससुराल में बहाइये|
तीन पांच और तीन तेरह में फँसकर,
राजनीति का आखाड़ा घर न बनाइये||
[वाह वाह वाह, क्या खूब अनुप्रास की छटा दिखलाई है| और 'प्रेम गंग' वाली बात तो भाई क्या कहने| समस्या पूर्ति की पंक्ति को पूरी तरह सार्थकता प्रदान करता हुआ छन्द]
गोल हैं कपोल दोनों, रंग है गुलाबी जैसे ,
फाग ने गुलाल भींच भींच के लगाया है|
काले-काले कुन्तलों की छवि है निराली कैसी?
बादलों ने जैसे चन्द्र-मुख को छुपाया है|
कारे कजरारे नैन काजल की लीक, तामें-
काम ने धनुष मानो खींच के चढ़ाया है|
देखो बदली की ओट छुपा है बेचारा आज,
देख तेरी सुन्दरता चाँद भी लजाया है||
[भींच भींच के - क्या बात है बन्धु| अलंकारों की छटा यहाँ भी दर्शनीय है| काले काले कुन्तलों - वाह वाह, श्रृंगार रस से सुसज्जित मस्त मस्त छन्द| जियो मित्तर जियो| इस छन्द को पढ़ कर कौन कहेगा कि छंदों में बात को सहजता से कहना दुष्कर होता है| बस जरुरत है इच्छा शक्ति की]
वर और वधू की है जोड़ी ये अजीब देखो,
एक है बबूल जैसा, दूजी रतनार है|
बन्ना पतझर का ज्यों ठूँठ है छुहारा जैसा ,
बन्नो का तो अंग अंग जैसे कचनार है|
जाने भगवान की है कैसी ये अनोखी लीला ,
दोनों पे चढ़ा हुआ जी! प्यार का बुखार है|
बन्नो का है कद साढ़े तीन फुट लम्बा और ,
बन्ने का बदन जैसे क़ुतुब मीनार है||
[ठूँठ है छुहारा जैसा, बाप रे - क्या तुलना की है| कसम से यार, बहुत हँसाया है आप के इस छन्द ने| इस पंक्ति के साथ भी आप ने पूरा न्याय करते हुए अपने कवि होने को सार्थक किया सुरेन्द्र भाई]
आपसी लड़ाई में न जिंदगी बिताइए|
बहू और बेटी में न होता कोइ फर्क, आप -
सास हैं! तो मातु जैसी ममता लुटाइए|
बहू जी! सुसौम्यता की भी प्रतीक बन आप
प्रेमगंग धार ससुराल में बहाइये|
तीन पांच और तीन तेरह में फँसकर,
राजनीति का आखाड़ा घर न बनाइये||
[वाह वाह वाह, क्या खूब अनुप्रास की छटा दिखलाई है| और 'प्रेम गंग' वाली बात तो भाई क्या कहने| समस्या पूर्ति की पंक्ति को पूरी तरह सार्थकता प्रदान करता हुआ छन्द]
गोल हैं कपोल दोनों, रंग है गुलाबी जैसे ,
फाग ने गुलाल भींच भींच के लगाया है|
काले-काले कुन्तलों की छवि है निराली कैसी?
बादलों ने जैसे चन्द्र-मुख को छुपाया है|
कारे कजरारे नैन काजल की लीक, तामें-
काम ने धनुष मानो खींच के चढ़ाया है|
देखो बदली की ओट छुपा है बेचारा आज,
देख तेरी सुन्दरता चाँद भी लजाया है||
[भींच भींच के - क्या बात है बन्धु| अलंकारों की छटा यहाँ भी दर्शनीय है| काले काले कुन्तलों - वाह वाह, श्रृंगार रस से सुसज्जित मस्त मस्त छन्द| जियो मित्तर जियो| इस छन्द को पढ़ कर कौन कहेगा कि छंदों में बात को सहजता से कहना दुष्कर होता है| बस जरुरत है इच्छा शक्ति की]
वर और वधू की है जोड़ी ये अजीब देखो,
एक है बबूल जैसा, दूजी रतनार है|
बन्ना पतझर का ज्यों ठूँठ है छुहारा जैसा ,
बन्नो का तो अंग अंग जैसे कचनार है|
जाने भगवान की है कैसी ये अनोखी लीला ,
दोनों पे चढ़ा हुआ जी! प्यार का बुखार है|
बन्नो का है कद साढ़े तीन फुट लम्बा और ,
बन्ने का बदन जैसे क़ुतुब मीनार है||
[ठूँठ है छुहारा जैसा, बाप रे - क्या तुलना की है| कसम से यार, बहुत हँसाया है आप के इस छन्द ने| इस पंक्ति के साथ भी आप ने पूरा न्याय करते हुए अपने कवि होने को सार्थक किया सुरेन्द्र भाई]
इन्डियन टीम भले ही ओपनिंग की समस्या से जूझे, पर भाई यहाँ तो एक से बढ़ कर एक ओपनिंग बैट्समेन भरे पड़े हैं| बस इसी तरह आप लोग हमें आप के भिन्न भिन्न रूपों के दर्शन कराते जाइयेगा, और हम ऐसे ही मजे लूटते रहें| कविता-ग़ज़ल तो पढ़ने को मिल ही रही थीं हर ओर, अब आप लोगों ने छंदों को ले कर जो कर्मठता दिखाई है, दिल गार्डन गार्डन हो गया है भाई|
इस समस्या पूर्ति का विशेष आकर्षण है विशेष वाली चौथी पंक्ति| उस बारे में कई मित्रों ने पूछा है तो एक बार फिर से बतिया लेते हैं| वो पंक्ति "नार बिन चले ना" छन्द के किसी भी चरण के चतुर्थांश में आ सकती है| सामान्यत: इस का आखिरी चरण के चतुर्थांश में आना सही लग रहा है| नार" शब्द छन्द में एक बार ही आना है, पर छन्द ऐसे लिखना है कि इस शब्द के एक से अधिक अर्थों को संप्रेषित करता हो - कम से कम दो| श्लेष अलंकार के साथ वाले अपने एक दोहे का उदाहरण देता हूँ:-
सीधी चलते राह जो, रहते सदा निशंक|
जो करते विप्लव, उन्हें - "हरि'" का है आतंक||
जो करते विप्लव, उन्हें - "हरि'" का है आतंक||
इस दोहे में प्रयुक्त शब्द 'हरि' के दो अर्थ हैं - एक है नारायण / ईश्वर और दूसरा है बन्दर| अब इस दोहे को पहले आप ईश्वर से सम्बंधित कर के पढ़िए और फिर बन्दर से| यही होता है श्लेष अलंकार का जादू| घनाक्षरी छन्द में इस प्रकार का प्रयोग बड़ा ही आनंद देगा| कठिन है पर असंभव नहीं| इस छन्द को लिखने का आनंद - लिखने वाला - लिखने के बाद ही महसूस कर सकेगा|
आप सुरेन्द्र भाई के खूबसूरत छंदों का आनंद लीजिएगा तब तक हम तैयारी करते हैं अगली किश्त की|
जय माँ शारदे!