नवगीत - १ - यमुना कहे पुकार
यमुना कहे पुकार
तुमरे बिन हे नटवर नागर
कौन करे उद्धार
छोटे-मध्यम उद्यम, सबका -
दूषण यमुना में बहता
बाँध बना है जब से, तब से
पानी भी थम के रहता
पंक पटा है
तट से तल तक
दूषित है जल धार
तुमरे बिन ...................
पल-छिन दूभर होता जाता
जल के जीवों का जीवन
मन में श्रद्धा अतिशय, लेकिन-
पान करें ना वैष्णव जन
अरबों खरबों के आबंटन
नेता गए डकार
तुमरे बिन .....................
नवगीत - २- मजदूरी का मोल
मजदूरी का मोल
यहाँ अधिक, पर
वहाँ लगे कम
ये कैसा है झोल
ओ भैया ये कैसा है झोल
कस्बों में रिक्शे वाले
पाँवों से रिक्शे हाँक रहे
सर पे तपती धूप
बदन के हर हिस्से से
स्वेद बहे
ढो कर हम को एक मील
दस-बीस रुपल्ली मात्र गहे
गमछे से फिर पौंछ पसीना
मुँह से मीठे बोल कहे
उस पर हम
तन कर उस से
बोलें बस कड़वे बोल
ओ भैया ये कैसा है झोल.............
शहरों के ऑटो - टेक्सी वालों के
नखरे क्या बोलें
मन में हो तो आवें
मन में ना हो तो - फट ना बोलें
लें समान की अलग मजूरी
जो चाहें जैसा बोलें
उस पर हम डरते डरते
उनको ड्राईवर भैया बोलें
जो मांगें
खामोशी से
दे देते हैं दिल खोल
ओ भैया ये कैसा है झोल
नवगीत - ३ - छंदों के मतवाले हम
छंदों के मतवाले हम
है प्यार हमें भाषाओं से
प्रारूपों के रखवाले हम
कहना सुनना
चिंतन सुमिरन
पढ़ना लिखना
अपना जीवन
तुलसी की धरती पर जन्मे
कबिरा के घरवाले हम
छंदों के मतवाले हम ..................
बिम्ब हमारी
ख़ास धरोहर
जोर हमारा
परिवर्तन पर
साहित की सेवा करने को
बैठे - लंगर डाले हम
छंदों के मतवाले हम ....................
नवगीत - ४ - चल चलें इक राह नूतन
चल चलें इक राह नूतन
भय न किंचित
हो जहाँ पर
पल्लवित सुख
हो निरंतर
अब लगाएं
हम वहीँ पर
बन्धु - निज आसन
द्वेष - ईर्ष्या
को न प्रश्रय
दुर्गुणों की
हो पराजय
हो जहाँ बस
प्रेम की जय
खिल उठे तन मन
यमुना कहे पुकार
तुमरे बिन हे नटवर नागर
कौन करे उद्धार
छोटे-मध्यम उद्यम, सबका -
दूषण यमुना में बहता
बाँध बना है जब से, तब से
पानी भी थम के रहता
पंक पटा है
तट से तल तक
दूषित है जल धार
तुमरे बिन ...................
पल-छिन दूभर होता जाता
जल के जीवों का जीवन
मन में श्रद्धा अतिशय, लेकिन-
पान करें ना वैष्णव जन
अरबों खरबों के आबंटन
नेता गए डकार
तुमरे बिन .....................
नवगीत - २- मजदूरी का मोल
मजदूरी का मोल
यहाँ अधिक, पर
वहाँ लगे कम
ये कैसा है झोल
ओ भैया ये कैसा है झोल
कस्बों में रिक्शे वाले
पाँवों से रिक्शे हाँक रहे
सर पे तपती धूप
बदन के हर हिस्से से
स्वेद बहे
ढो कर हम को एक मील
दस-बीस रुपल्ली मात्र गहे
गमछे से फिर पौंछ पसीना
मुँह से मीठे बोल कहे
उस पर हम
तन कर उस से
बोलें बस कड़वे बोल
ओ भैया ये कैसा है झोल.............
शहरों के ऑटो - टेक्सी वालों के
नखरे क्या बोलें
मन में हो तो आवें
मन में ना हो तो - फट ना बोलें
लें समान की अलग मजूरी
जो चाहें जैसा बोलें
उस पर हम डरते डरते
उनको ड्राईवर भैया बोलें
जो मांगें
खामोशी से
दे देते हैं दिल खोल
ओ भैया ये कैसा है झोल
नवगीत - ३ - छंदों के मतवाले हम
छंदों के मतवाले हम
है प्यार हमें भाषाओं से
प्रारूपों के रखवाले हम
कहना सुनना
चिंतन सुमिरन
पढ़ना लिखना
अपना जीवन
तुलसी की धरती पर जन्मे
कबिरा के घरवाले हम
छंदों के मतवाले हम ..................
बिम्ब हमारी
ख़ास धरोहर
जोर हमारा
परिवर्तन पर
साहित की सेवा करने को
बैठे - लंगर डाले हम
छंदों के मतवाले हम ....................
नवगीत - ४ - चल चलें इक राह नूतन
चल चलें इक राह नूतन
भय न किंचित
हो जहाँ पर
पल्लवित सुख
हो निरंतर
अब लगाएं
हम वहीँ पर
बन्धु - निज आसन
द्वेष - ईर्ष्या
को न प्रश्रय
दुर्गुणों की
हो पराजय
हो जहाँ बस
प्रेम की जय
खिल उठे तन मन
चारों नवगीत प्रवाहमयी।
जवाब देंहटाएंवाह भाईसाब !! चारों नवगीत पढ़कर बहुत ख़ुशी हुई | पहले दो नव गीत विशेष तौर पे ह्रदय से जुड़े | आपको बहुत बहुत बधाई ||
जवाब देंहटाएंअच्छे नव गीत के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
शुक्रवार को आपकी रचना "चर्चा-मंच" पर है ||
जवाब देंहटाएंआइये ----
http://charchamanch.blogspot.com/
सुन्दर नवगीत भाई नवीन जी बधाई
जवाब देंहटाएं