नया काम
कहो तो
कौन है जिस को यहाँ वुसअत नहीं मिलती
जिसे फुर्सत
नहीं मिलती उसे सुहबत नहीं मिलती
तेरा ग़म
यूँ है जैसे ख़ुद को चूँटी काटता हूँ मैं
बदन को
टीस मिलती है फ़क़त, हरकत नहीं मिलती
मैं इस
मौक़े को अपने हाथ से कैसे फिसलने दूँ
मुहब्बत
में रक़ीबों को बहुत मुहलत नहीं मिलती
वफ़ा के
आशियाने में सभी के सर सलामत हैं
भले इस
आशियाने की ज़मीं को छत नहीं मिलती
कलेज़ा
चीर कर उस के लहू से रौशनी करना
हमारे
दौर में उस तौर की वहशत नहीं मिलती
न जाने
कब का ये सारा ज़माना मिट चुका होता
अगर इन्सान को इन्सान से इज्ज़त नहीं
मिलती------
हरिक बीमार को उपचार की नेमत नहीं मिलती|
ये दुनिया है, यहाँ सर पे सभी के छत नहीं मिलती|१|
कहीं बच्चे पिता के प्यार, माँ के दूध को तरसें|
कहीं माँ-बाप को, औलाद से इज्ज़त नहीं मिलती|२|
शरीफ़ों की सियासत की विरासत की ये हालत है|
रियायत मिलती है, लेकिन, कभी राहत नहीं मिलती|३|
हमें तो ज़िन्दगी में दोस्त का चेहरा दिखा हरदम|
सिवा इस के, कोई भी दूसरी सूरत नहीं मिलती|४|
तुम्हीं बतलाइये साहब, उसे महफिल कहें कैसे|
जहाँ हर एक आदम जात को इज्ज़त नहीं मिलती|५|
तरक्की किस तरह आये हमारे मुल्क़ में कहिये।
यहाँ मेहनत मशक्क़त को सही क़ीमत नहीं मिलती|६|
जिसे देखो वही मसरूफ़ियत के गीत गाता है|
हमें भी दीन दुनिया से बहुत फुर्सत नहीं मिलती|७|
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222
बहरे हजज मुसम्मन सालिम
इधर बच्चे पिता के प्यार, माँ के दूध को तरसें|
जवाब देंहटाएंउधर माँ-बाप को, औलाद से इज्ज़त नहीं मिलती|२|..
...बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..हरेक शेर लाज़वाब..
इधर बच्चे पिता के प्यार, माँ के दूध को तरसें|
जवाब देंहटाएंउधर माँ-बाप को, औलाद से इज्ज़त नहीं मिलती ...
बहुत लाजवाब नवीन जी ... हर शेर दिल में उतार जाता है ... समाज को आईना दिखाया है आपने ....
Gazal kaa har sher umdaa hai .Badhaaee aur
जवाब देंहटाएंshubh kamna .
तरक्की किस तरह होगी भला उस मुल्क़ की प्यारे
जवाब देंहटाएंपरिश्रम को जहाँ उस की सही क़ीमत नहीं मिलती
देश और समाज में आज जो कुछ घटित हो रहा है उसकी तस्वीर ग़ज़ल की पंक्तियों में उतर आई है।
अच्छे और दुरुस्त शेर.बढ़िया ग़ज़ल है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल है नवीन भाई। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।
जवाब देंहटाएंतरक्की किस तरह होगी भला उस मुल्क़ की प्यारे|
जवाब देंहटाएंपरिश्रम को, जहाँ, उस की सही क़ीमत नहीं मिलती|६|
एक शे’र में आपने देश के हालात की तस्वीर खींच दी है। गागर में सागर।
बेहतरीन, फुर्सत नहीं मिलती।
जवाब देंहटाएंतरक्की किस तरह होगी भला उस मुल्क़ की प्यारे
जवाब देंहटाएंपरिश्रम को, जहाँ, उस की सही क़ीमत नहीं मिलती
बहुत ही उम्दा शेरों से सजी-सँवरी
शानदार ग़ज़ल ...
हर शेर अपनी मिसाल खुद आप हो गया है
बहुत बहुत मुबारकबाद .
तरक्की किस तरह होगी भला उस मुल्क़ की प्यारे|
जवाब देंहटाएंपरिश्रम को, जहाँ, उस की सही क़ीमत नहीं मिलती|
...esi baat ka to rona hai.....
bahut badiya prastuti....
तरक्की किस तरह होगी भला उस मुल्क़ की प्यारे|
जवाब देंहटाएंपरिश्रम को, जहाँ, उस की सही क़ीमत नहीं मिलती|६|
सार्थक अर्थपूर्ण पंक्तियाँ
बहुत बढ़िया गज़ल ..हर शेर बहुत कुछ कहता हुआ
जवाब देंहटाएंVaah..! vaah! Each SHER is very meaningful.
जवाब देंहटाएंजिसे देखो वही मशरूफ़ियत के गीत गाता है|
जवाब देंहटाएंहमें भी दीन दुनिया से अधिक फुर्सत नहीं मिलती|७|
बहुत सुंदर ग़ज़ल है. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये.
इधर बच्चे पिता के प्यार, माँ के दूध को तरसें|
जवाब देंहटाएंउधर माँ-बाप को, औलाद से इज्ज़त नहीं मिलती|२|
....आत्मकेंद्रित समाज में मानवीय रिश्तों के बिखराव को बड़ी खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है आपने. हर शेर जानदार...ग़ज़ल शानदार...बधाई!
---देवेंद्र गौतम
बहुत सुंदर ग़ज़ल है|धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंकैलाश भाई, दिगंबर भाई, प्राण शर्मा जी, महेंद्र भाई, कुँवर कुसुमेश जी, धर्मेन्द्र भाई, मनोज भाई, प्रवीण भाई, दानिश जी, कविता जी, मोनिका जी, संगीता स्वरूप जी, राजीव भाई, रचना जी, देवेन्द्र गौतम जी, पाटली जी एवं हमारी वाणी मंच प्रतिनिधि जी - आप सभी का बहुत बहुत आभार
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