पावस में नाचता है, तन-मन तक-धिन,
शरद का चंद्र लगे, सबको दुलारा सा|
हेमन्त खिलाये गुड - संग बाजरे की रोटी,
शिशिर में पानी लगे, हिमनद धारा सा|
वसंत की ऋतु है जो, कहें उसे ऋतुराज,
धरती की माँग बीच, लगे ये सितारा सा|
हापुस खिलाने हमें, गरमी आती है पर,
गरमी की लू जमाती - 'लप्पड़' करारा सा||
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ऋतु क्रम इस प्रकार होता है:-
वसंत
ग्रीष्म
वर्षा
शरद
शिशिर
हेमन्
छन्द की अंतिम पंक्ति के मद्देनजर, उपरोक्त छन्द में, ऋतु क्रम निर्वाह को प्राथमिकता नहीं दी गई है|
इस छन्द को आप १६+१५ = ३१ या ८+८+८+७=३१ अक्षर गणना के अनुसार ले सकते हैं|
बहुत ही अच्छा लगा और सीखने को मिला।
जवाब देंहटाएंरितुओं पर अधारित ख़ूबसुरत कविता के लिये बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंनवीन भाई।
सभी ऋतुओं की विशेषताओं और आकर्षण का बहुत सुन्दर चित्रण..
जवाब देंहटाएंआद. नवीन जी,
जवाब देंहटाएंऋतुओं का जीवंत चित्रण करता हुआ घनाक्षरी छन्द पढ़ कर अच्छा लगा !
आभार !
प्रवीण भाई, संजय दानी भाई, कैलाश भाई और ज्ञान चंद्र भाई - आप सभी का बहुत बहुत आभार
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