मची है ब्रज में होरी आज
जमुना जल सों हौज भराए
केसर अतर गुलाब मिलाए
उत गुपियन नें लट्ठ उठाए
खूब सज्यौ है साज
मची है ब्रज में होरी आज
इत सों आए किसन मुरारी
हाथ लिएं रंगन पिचकारी
उत भागीं वृषभानु दुलारी
रसिकन की सरताज
मची है ब्रज में होरी आज
ब्रज वौ ही त्यौहार वही है
पर कां वैसी प्रीत रही है
सब नें यै ही बात कही है
डूबत 'लाज' जहाज
भली यै कैसी होरी आज
आदरणीय सर,
जवाब देंहटाएंआपके हाइकुओं पर आधारित हाइगा हिन्दी-हाइगा ब्लॉग पर प्रकाशित हैं|अवलोकन करने की कृपा करें|लिंक नीचे है|
http://hindihaiga.blogspot.com/
सादर
ऋता शेखर 'मधु'
अच्छी लगी रचना ..आज की होरी... शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंऋता जी नमस्कार
जवाब देंहटाएंमैंने देखा, वह नवीन चतुर्वेदी मैं नहीं हूँ. और नहीं वो हाइकु मेरे हैं.
वे कोइ और लगते हैं.
यहाँ पधारने के लिए बहुत बहुत आभार