11 अक्तूबर 2011

लिए सँदेशा दीवाली का, शरद पूर्णिमा आयी - नवीन

नभ रोशन, अंतर्मन रोशन, आलम है सुखदायी|
लिए सँदेशा दीवाली का, शरद पूर्णिमा आयी||
कुछ गरमी, कुछ सर्दी जैसा, मौसम लगे सुहाना|
यही सार जीवन का प्यारे, सुख-दुःख साथ निभाना|१|

बम्ब-पटाखे, लड्डू-बर्फी, खील-बताशे लाना|
मिल जाए गर हटरी, तो तुम, ला कर उसे सजाना||
नए-नए  कपडे सिलवाना, करना साफ़ सफाई|
घर के बड़े बुजुर्गों के सँग, पर्व मनाना भाई|२|

धनतेरस के दिन कुछ नूतन, घर में ले कर आना|
दीवाली वाले दिन, लक्ष्मी - पूजा थाल सजाना||
हाथ जोड़ फिर लक्ष्मी माँ से, यही माँगना प्यारे|
सारा जग रोशन हो जाए, दूर होंय अँधियारे|३|  

========
सार / ललित छंद

चार चरण का छंद 
प्रत्येक चरण में 16+12=28 मात्रा 
प्रत्येक चरण के अंत में 2 गुरु वर्ण / अक्षर का विधान 
परंतु कालांतर में कुछ कवियों ने इस में छूट ली है

:- नवीन सी. चतुर्वेदी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें