जैसा कि पिछली पोस्ट में इंगित किया था, अब वातायन की पोस्ट्स भी यहीं ठाले-बैठे पर हीआएंगी। पुरानी पोस्ट्स की लिंक्स वातायन के पेज पर दी गई हैं।
इस नए क्रम में सबसे पहले पढ़ते हैं भाई मयंक अवस्थी जी की दो ग़ज़लें। वातायन पर मयंक जी की एक ग़ज़ल पहले भी आ चुकी है। 25 जून 1967 को हरदोई में जन्मे मयंक भाई वर्तमान में रिजर्व बैंक, नागपुर में सहायक प्रबन्धक के पद पर आसीन हैं। अदब के हलक़ों में इन की बातों को संज़ीदगी से लिया जाता है। इन की एक और विशेषता है कि यदि आप इन्हें नींद से उठा के पूछ लें तो भी आप को 25-50 शेर तो धारा प्रवाह सुना ही देंगे, अपने नहीं, दूसरों के। पुराने शायरों के साथ-साथ नए शायरों के भी कई सारे शेर इन्हें मुंह जुबानी याद रहते हैं। मुझे ताज़्ज़ुब हुआ जब साहित्यिक कुनबे के शायद सब से छोटे सदस्य मेरे जैसे व्यक्ति के भी शेर इन्होने फर्राटे के साथ सुना डाले मुझे, वो भी गाड़ी ड्राइव करते हुए। आइये पढ़ते हैं इन की ग़ज़लें:-
खुशफहमियों में चूर ,अदाओं के साथ –साथ
भुनगे भी उड़ रहे हैं हवाओं के साथ –साथ
पंडित के पास वेद लिये मौलवी क़ुरान
बीमारियाँ लगी हैं दवाओं के साथ –साथ
वो ज़िन्दगी थी इसलिये हमने निभा दिया
उस बेवफा का संग वफ़ाओं के साथ –साथ
इस हादसों के शहर में सबकी निगाह में
खामोशियाँ बसी हैं सदाओं के साथ –साथ
उड़ती है आज सर पे वही रास्ते की धूल
जो कल थी रहग़ुज़ार में पाँओं के साथ –साथ
जज़बात खो गये मेरे आँसू भी सो गये
बच्चों को नींद आ गयी माँओ के साथ-साथ
भुनगे भी उड़ रहे हैं हवाओं के साथ –साथ
पंडित के पास वेद लिये मौलवी क़ुरान
बीमारियाँ लगी हैं दवाओं के साथ –साथ
वो ज़िन्दगी थी इसलिये हमने निभा दिया
उस बेवफा का संग वफ़ाओं के साथ –साथ
इस हादसों के शहर में सबकी निगाह में
खामोशियाँ बसी हैं सदाओं के साथ –साथ
उड़ती है आज सर पे वही रास्ते की धूल
जो कल थी रहग़ुज़ार में पाँओं के साथ –साथ
जज़बात खो गये मेरे आँसू भी सो गये
बच्चों को नींद आ गयी माँओ के साथ-साथ
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बैठे हो जिसके ख़ौफ से छुपकर मचान पर
वो शेर चढ रहा है सभी की ज़बान पर
वापस गिरेगा तीर तुम्हारी कमान पर
ऐ दोस्त थूकना न कभी आसमान पर
इक अजनबी ज़बान तुम्हारी ग़ज़ल में है
किसकी है नेम –प्लेट तुम्हारे मकान पर
दिल से उतर के शक्ल पे बैठा हुआ है कौन
क़ाबिज़ हुआ है कौन तुम्हारे जहान पर
अब आइने में एक हथौड़ा है पत्त्थरों
बेहतर हो आप ब्रेक लगा लें ज़बान पर
तिश्नालबों ने आँख झुका ली है शर्म से
अब है नदी का जिस्म कुछ ऐसी उठान पर
सिकुड़ा हुआ था दश्त सहमता था कोहसार
जब इश्क का जुनूँ था किसी नौजवान पर
टी –शर्ट डट रहे हो बुढापे में ऐ मयंक
क्यूँ रंग पोतते हो पुराने मकान पर
वो शेर चढ रहा है सभी की ज़बान पर
वापस गिरेगा तीर तुम्हारी कमान पर
ऐ दोस्त थूकना न कभी आसमान पर
इक अजनबी ज़बान तुम्हारी ग़ज़ल में है
किसकी है नेम –प्लेट तुम्हारे मकान पर
दिल से उतर के शक्ल पे बैठा हुआ है कौन
क़ाबिज़ हुआ है कौन तुम्हारे जहान पर
अब आइने में एक हथौड़ा है पत्त्थरों
बेहतर हो आप ब्रेक लगा लें ज़बान पर
तिश्नालबों ने आँख झुका ली है शर्म से
अब है नदी का जिस्म कुछ ऐसी उठान पर
सिकुड़ा हुआ था दश्त सहमता था कोहसार
जब इश्क का जुनूँ था किसी नौजवान पर
टी –शर्ट डट रहे हो बुढापे में ऐ मयंक
क्यूँ रंग पोतते हो पुराने मकान पर
:- मयंक अवस्थी
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बहुत ही खूबसूरत ||
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई ||
सुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंइस हादसों के शहर में सबकी निगाह में
जवाब देंहटाएंखामोशियाँ बसी हैं सदाओं के साथ –साथ
सच में हम आज एक दुविधा की, उलझन की ज़िन्दगी जी रहे हैं।
मयंकजी ने बड़ा तगड़ा लिखा है। परिचय का आभार।
जवाब देंहटाएंबैठे हो जिसके ख़ौफ से छुपकर मचान पर
जवाब देंहटाएंवो शेर चढ रहा है सभी की ज़बान पर
भाई.............वाह...मयंक जी....शुक्रिया नवीन जी..
मयंक जी को बधाई।
जवाब देंहटाएंACHCHHEE GAZAL KE LIYE BADHAAEE .
जवाब देंहटाएंबैठे हो जिसके ख़ौफ से छुपकर मचान पर
जवाब देंहटाएंवो शेर चढ रहा है सभी की ज़बान पर
वाह...बहुत ही सुंदर
बहुत बधाई मयंक जी
आभार नवीन जी
पंडित के पास वेद लिये मौलवी क़ुरान
जवाब देंहटाएंबीमारियाँ लगी हैं दवाओं के साथ –साथ
मयंक जी का परिचय व उनकी लाजवाब गज़ल से रूबरू कराने के लिए दिल से आभार स्वीकारें
टी –शर्ट डट रहे हो बुढापे में ऐ मयंक
जवाब देंहटाएंक्यूँ रंग पोतते हो पुराने मकान पर\
bahut sunder lajavab gazal
mayank ji ki itni gahri gazlen padhvane ka shukriya
saader
rachana
kyabaat hai!!!! bade hi asani se badi badi bate kaha di aapne.....bahut hi badhiya
जवाब देंहटाएंबहुत बढि़या ।
जवाब देंहटाएंमयंक अवस्थी जी की ग़ज़लें ध्यान खींचती हैं …
जवाब देंहटाएंपहली बार पढ़ा
आपका शुक्रिया नवीन जी एक श्रेष्ठ ग़ज़लकार से तआर्रुफ़ कराने के लिए !
bahut sundar gazlen.
जवाब देंहटाएंshukriya navin ji ...
वो ज़िन्दगी थी इसलिये हमने निभा दिया
जवाब देंहटाएंउस बेवफा का संग वफ़ाओं के साथ –साथ
नवीन जी मयंक जी की गजलों की अपनी ही बयार और रवानगी है .नए अंदाज़ की अभिनव गज़लें हैं ये हर अशआर आधुंक भाव बोध से संसिक्त है .व्यंग्य बाण चलाए है .
बैठे हो जिसके ख़ौफ से छुपकर मचान पर
जवाब देंहटाएंवो शेर चढ रहा है सभी की ज़बान पर
वापस गिरेगा तीर तुम्हारी कमान पर
ऐ दोस्त थूकना न कभी आसमान पर ...
.....लाज़वाब...बेहतरीन गज़ल..
ब्लाग के सभी आदरणीय सदस्यों का मैं ह्रदय से आभारी हूँ --मुझे proxy server के कारण socialnetworks acess की सुविधा नहीं थी -इस कारण मै आप लोगों को ई-मेल से उत्तर देता था --मालूम नहीं कि आप तक मेरा आभार पहुँचा या नहीं --लेकिन अब अनुमति मिलने पर लिख रहा हूँ --विलम्ब केलिये क्षमा करें --
जवाब देंहटाएंरविकर जी !!मैं अतिशय अनुग्रहीत हूँ !!! गज़ल पसन्द करने का बहुत बहुत आभार !!
अनुपमा जी !! आभार !! अपके शब्दों ने उत्साहवर्धन किया !!
मनोज कुमार साहब !! आभार ! यह गज़ल काफी पहले कुछ पत्रिकाओं में प्रकाशित हुयी थी नवीन भाई ने इसे आप लोगों तक पहुँचाया --उनका उपकार है !
प्रवीन साहब !! बहुत बहुत आभार !!
राजेश साहब !! बहुत बहुत आभार !! हम और आप तो पुराने मित्र हैं !!
अजित जी !! कृतज्ञ हूँ आपके शब्दों केलिये और उत्साहवर्धन के लिये !!
यशवंत माथुर साहब !! इस पोस्ट को विस्तार देने के लिये मैं आपका आभारी हूँ !!
धन्यवाद प्राण शर्मा साहब !!
संजय मिश्रा हबीब साहब !! बहुत बहुत आभार !! हौसला अफज़ई के लिये !!
रचना दीक्षित जी !! आपके शब्दों ने संबल दिया !! आभार !!
मेरा साहित्य !!! मेरा प्रणाम स्वीकार करें !!!
अना !! आपका नाम मेरा बहुत प्रिय शब्द है !! do sher --
बचपन में इस दरख़्त पे कैसा सितम हुआ
जो शाख इसके माँ थी वहाँ से कलम हुआ
मुँसिफ हों या गवाह मनायेंगे अपनी ख़ैर
गर फैसला अना सेमेरी कुछ भी कम हुआ --मयंक
सदा !! अतिशय आभारी हूँ ।
जवाब देंहटाएंसुरेन्द्र सिह झंझट साहब !! ह्रदय से आभार !!
कैलाश सी शर्मा साहब !! बहुत बहुत शुक्रिया शर्मा साहब !!
veerubhai वीरुभाई जी !! आपके शब्दों ने विश्वास और ऊर्जा प्रदान की --कृतज्ञ हूँ !!
जवाब देंहटाएंराजेन्द्र स्वर्णकार जी !! बहुत आभार !! गज़लें पढने और स्वीकृति प्रदान करने के लिये !
जवाब देंहटाएं