9 अक्तूबर 2011

खड़ी दिवाली दरवाजे पर - नवीन

Diwali

सावन बीता भादों बीता
क्वार मास भी जाए रीता
खड़ी दिवाली दरवाजे पर
सजना तुम कब आओगे घर

दिल, दीपक सा जलता पल-छिन
राह तकूँ तारीखें गिन गिन
जल्दी आऊँगा दोबारा
सन्देशा था यही तुम्हारा

माँग सेन्दुरी तुम्हें पुकारे
कङ्गन फिरते मारे मारे
हो गईं पलकें बोझिल मेरी
प्रियतम अब तुम करो न देरी

देखो सजना जल्दी आना
चटख रङ्ग की मेंहदी लाना
नई साड़ियाँ ली हैं मैंने
उन पर पहनूँगी मैं गहने

कितनी बातें साथ तुम्हारे
करनी मुझको साँझ सकारे
दिल का हाल सुनाऊँगी मैं
तुमको भी दुलाराऊँगी मैं

भर कर रबड़ी वाला कुल्ला
तुम्हें खिलाऊँगी रसगुल्ला
खीर-पकौड़ी जो बोलोगे
पाओगे, जब मुँह खोलोगे

तुम्हें बोलने दूँगी ना मैं
होंठ खोलने दूँगी ना मैं
कितना मुझे सताते हो तुम
साल गए घर आते हो तुम

बात सिर्फ मेरी ही ना है
बच्चों का भी यह कहना है
गाँव आज पहले से उन्नत
क्यूँ न यहीं पर करिए मेहनत

यहाँ काम है और पैसा भी
लाओगे तुम जो जैसा भी
जीवन यापन हम कर लेंगे
सागर - अँजुरी में भर लेंगे

यहाँ ज़िन्दगी भी है सुखकर
साथ रहेंगे, हम सब मिल कर
पौंछ पसीना, कष्ट हरूँगी
फिर न कभी कम्प्लेन करूँगी

:- नवीन सी. चतुर्वेदी

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