सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन
मंच के सभी कुटुम्बियों को एक दूसरे की तरफ़ से
दीप अवलि |
की हार्दिक शुभकामनाएँ
हरिगीतिका छंद पर आधारित इस आयोजन में आज हम हास्य आधारित छंद पढेंगे| क्यूँ भाई, हास्य रस सिर्फ होली पर ही होता है क्या? दिवाली पर भी तो हँस सकते हैं हम.....................
दिलफेंक थे शौक़ीन आशिक, मनचला कहते जिसे|
दिल में समा जाती वही, हम - देखते तकते जिसे||
दिल में समा जाती वही, हम - देखते तकते जिसे||
जब पाठशाला में गये थे , प्रथम कक्षा के लिये|
इक दिलरुबा के संग बैठे , हाथ हाथों में दिये|१|
इक दिलरुबा के संग बैठे , हाथ हाथों में दिये|१|
अनुरोध है विनती सभी से, बात ये सच मानिये|
दिल ने हमें कितना सताया , आप सब भी जानिये||
जब आठवीं में आ गये, इक, नाजनीं दिल में धँसी|
हम हो गये लट्टू, तभी से, जान आफत में फँसी|२|
हम हो गये लट्टू, तभी से, जान आफत में फँसी|२|
जाना पड़ा उसको मगर वो, शहर यारो छोड़के|
जाने विधाता को मिला क्या, दिल हमारा तोड़के||
गर तू नहीं तो और भी हैं, बात ये मशहूर है|
दिल को सहारा चाहिये, जो - आदतन मजबूर है|३|
दिल को सहारा चाहिये, जो - आदतन मजबूर है|३|
यूँ हर परीक्षा पार कर, हम, आ गये कोलेज में|
हर नाज़नीं की जन्म पत्री, दर्ज थी नोलेज में||
पर हाय री किस्मत, कहानी - किसलिए ऐसी गढ़ी|
नज़रें लड़ीं जिससे, वही, भैया बता के चल पडी|४|
नज़रें लड़ीं जिससे, वही, भैया बता के चल पडी|४|
फ़िर छा गया जैसे अँधेरा, राह भी वीरान थी|
बस ये इबादत कर रहा था, मुश्किलों में जान थी||
भटकन करो ये ख़त्म, प्रभु जी, ताकि मौज-बहार हो|
मिल जाय वो जिससे कि जीवन हर घडी त्यौहार हो|५|
मिल जाय वो जिससे कि जीवन हर घडी त्यौहार हो|५|
शेखर भाई ये तो आप की ही नहीं, और भी बहुतों की कहानी है| बड़ा दिल टूटता है जब दिलरुबा भैया बोल देती है, सच न आये तो डिटेल में शेषधर तिवारी जी से पूछ लेना| हास्य के रंगों को बिखेर कर आप ने दिल खुश कर दिया, और इस पर्व को और भी खुशनुमा बना दिया| जय हो|
साहित्य वारिधि डा. शंकर लाल 'सुधाकर' जी के पौत्र शेखर चतुर्वेदी के ये छंद साबित करते हैं कि छंद एक फोर्मेट होता है और कवि उस प्रारूप का इस्तेमाल अपनी पसंद के विषय पर अपने हिसाब से बखूबी कर सकता है| शेखर ने इन छंदों में समस्या पूर्ति के दिए गए तीनों शब्दों का सदुपयोग भी जबरदस्त तरीक़े से किया है| ऎसी बातें सहज ही प्रभावित करती हैं|
बहुत जल्द ही हम श्रृंगार रस वाले छंद भी पढेंगे और ज़मीनी पारिवारिक मसलों को बतियाते छंद भी| तो आप पढियेगा इन छंदों को, दिल खोल के उत्साह वर्धन करिएगा इस कल के दिलफेंक आशिक बट आज के सुहृद गृहस्थ का और हम एज यूज्युअल तैयारी करते हैं अगली पोस्ट की|
जय माँ शारदे!
आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
जवाब देंहटाएंसादर
वाह ... शेखर जी की हास्य रस ने तो आनंद घोल दिया दिवाली के रंगों में ...
जवाब देंहटाएंनवीन जी आपको और समस्त परिवार को दीपावली की मंगल कामनाएं
दिवाली पर इस रोचक प्रस्तुति के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंnice mitra very good - Madhuram
जवाब देंहटाएंसुंदर छंद ...शेखर जी को बधाई ...
जवाब देंहटाएं"ज्योति-पर्व पर हंसी-खुशी की, खूब चलें फुलझडियाँ |
मिटें कलुष-तम खिलें हर तरफ,प्रसन्नता की लड़ियाँ |
सुख-समृद्धि मिले जीवन में,तन-मन स्वस्थ सबल हो |
शुभ-कामना श्याम' देते हैं , जीवन सरल सुफल हो ||"
मित्र शेखर - आप पर दादा जी का पूर्ण आशीर्वाद है और ये रचना इस बात का प्रमाण है - आप एसए ही लिखते रहे यही कामना हम आज के पवन पर्व पर प्रभु से करते हैं - सभी मित्रो को शुभ दीवाली - मधुरम चतुर्वेदी
जवाब देंहटाएंदीपावली के अवसर पर इन छंदों को प्रस्तुत कर इस उत्सव में चार चाँद लगा दिए आपने। इस सुंदर हास्य कविता के लिए शेखर जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंयह पोस्टलेखक के द्वारा निकाल दी गई है.
जवाब देंहटाएंशेखर चतुर्वेदीजी की छंद रचना का नटखटपन बरबस ही स्मित-स्मित-सुन्दर मुखारविन्द का कारण बना है. ..
जवाब देंहटाएंनवीनभाई, कुछ बातें यूनिवर्सल हुआ करती हैं. उनका होना अक्सर के साथ होता रहता हैं. पुरा काल से.. !
पुरा काल से यह ’दुर्घटना’ कइयों के हृदय की टीस का कारण होती रही है. देखिये न --
केशव के संग अस करी, अरिहु ना जस कराय,
चंद्रवदन मृगलोचनी, बाबा कहि-कहि जाय !!!
बाबा केशवदास क्या पीड़ित नहीं थे ! ..हा हा हा हा ...
दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएँ.
--सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)
आपको और समस्त परिवार को दीपावली की मंगल कामनाएं......
जवाब देंहटाएंफिर-फिर अटकना फिर भटकना ज़िन्दगी की रीत है.
जवाब देंहटाएंविरही के स्वर में ही घुले कविता मधुर संगीत है..
जो मिल लिए तो हो गया किस्सा ही सारा ख़त्म फिर-
आगे बढ़ेगी बात कैसे? हार में भी जीत है..
बहुत ही सुन्दर रचना है शेखर जी, किसी भी कविता मैं कवि का भाव उसमें जान लाता है, और यही वो आकर्षण है जो सभी के साथ उसे भी अपनी तरफ खिचता है जो उसकी विषयवस्तु की गहराई को ना भी समझे लेकिन सहज ही गुनगुना सके.......
जवाब देंहटाएंविनोदपरक सुन्दर भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआपको दीपावली,भाईदूज एवं नववर्ष की ढेरों शुभकामनाएं !
बहुत ही सुन्दर रचना है शेखर जी की ! त्यौहार के उल्लास और आनंद को कई गुणा और बढ़ा गयी ! आप सभी को प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना बधाई शेखर जी |
जवाब देंहटाएंदीपावली के शुभ अवसर पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
आशा
वाह ..क्या कहना !
जवाब देंहटाएंशेखर जी, बहुत शानदार छंद की सर्जना की है आपने। बधाई और शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसुन्दर छन्दों के लिये शेखर जी को बधाई। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंSabhi Ka Tahe dil se Aabhar !
जवाब देंहटाएंKabhi Yahan bhi aayen :
http://sahitya-varidhi-sudhakar.blogspot.com
हास्य से इस शिष्ट पुट ने तथा सीधी सादी भाषा शिली ने आपकी रचनायों में चार चाँद लगा दिए हैं, मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें शेखर भाई !
जवाब देंहटाएंजब आठवीं में आ गये, इक, नाजनीं दिल में धँसी|
जवाब देंहटाएंहम हो गये लट्टू, तभी से, जान आफत में फँसी|२|
श्रंगार रस, हास्य की उमंग में पगा हुआ है और पूरी रचना क्या है कि कविता भी है और कहानी भी है --बहुत सुन्दर शेखर भाई !! बहुत सुन्दर !! तबीयत खुश हो गयी !! किसी भी मंच पर लोकप्रिय होगी !! एक आम असफल भारतीय प्रेमी की वेदना और एकपक्षीय प्रेम की चुटीली अभिव्यक्ति !! यशस्वी हों !!!