दोहे
जलें दीप हर द्वार पर, मिटे अंधेरी रैन|
सब को इस दीपावली, मिले शान्ति, सुख, चैन|१|
पाकिट में पैसे भरे, आँखों में दुःख-दर्द|
बिना फेमिली ज़िंदगी, ज्यूँ सजनी, बिन मर्द|२|
अनुभव, ज्ञान, उपाधियां, रिश्ते, नफरत, प्रीत।
बिन मर्ज़ी मिलते नहीं, यही सदा की रीत ।३।
अनुभव, ज्ञान, उपाधियां, रिश्ते, नफरत, प्रीत।
बिन मर्ज़ी मिलते नहीं, यही सदा की रीत ।३।
सोरठे
ऐसा हुआ कमाल, बाँहें बल खाने लगीं|
पूछ न दिल का हाल, अब के करवा चौथ में|१|
'करवा-चन्द्र' निढाल, करता रहा अतीत से|
'शरद-चन्द्र' तत्काल, बहन भाई का प्यार है|२|
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
कल 31/10/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
अनुभव, ज्ञान, उपाधियां, रिश्ते, नफरत, प्रीत।
जवाब देंहटाएंबिन मर्ज़ी मिलते नहीं, यही सदा की रीत
बहुत सही कहा आपने
वाह! सुन्दर...
जवाब देंहटाएंसादर...
लजवाब करते दोहे ....
जवाब देंहटाएंसुंदर दोहे लिखते है आप,बढिया पोस्ट.....
जवाब देंहटाएंअनुभव, ज्ञान, उपाधियां, रिश्ते, नफरत, प्रीत।
जवाब देंहटाएंबिन मर्ज़ी मिलते नहीं, यही सदा की रीत ।३।
वाह!
सुन्दर दोहा अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकार...
जवाब देंहटाएंजीवन पुष्प
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