३ घनाक्षरी / कवित्त छन्द

समस्या पूर्ति मंच द्वारा आयोजित घनाक्षरी छंद सम्बंधित समस्या पूर्ति के लिए लिखे गए तीन घनाक्षरी छंद 


हिंदी 

माना कि विकास, बीज - से ही होता है मगर
इस का प्रयोग किए- बिना, बीज फले ना|

इस में मिठास हो तो, अमृत समान लगे
खारापन हो अगर, फिर दाल गले ना|

इस का प्रवाह भला कौन रोक पाया बोलो
इस का महत्व भैया टाले से भी टले ना|

चाहे इसे पानी कहो, चाहे इसे ज्ञान कहो
सार तो यही है यार 'नार' बिन चले ना||


समस्या पूर्ति मंच पर की घनाक्षरी छंद वाली समापन पोस्ट में प्रकाशित मेरे दो छन्द 

गुजराती

ઢોકળાં-ખમણ, ભૂંસું, ચેવડા મસાલેદાર,
ફાફડા, ઘારી, જલેબી-ગાંઠિયા પ્રસિદ્ધ છે.

પેંડા તો મલાઈદાર, ઘેરદાર ઘાંઘરો, ને-
કાઠિયાવાડી પાટલા-સાતિયા પ્રસિદ્ધ છે.

કૉક જગ્યા માયાવતી, સોનિયા, જયલલિતા,
કૉક જગ્યા ટાટા વાણી રાડિયા પ્રસિદ્ધ છે.

પણ આખી દુનિયા માં જેમનું પ્રતાપ, ઍ તો,
ગુજરાતી ગરવા ને ડાંડિયા પ્રસિદ્ધ છૅ

देवनागरी लिपि के साथ

ढोकला-खमणभुसूचेवडा मसालेदार,
फाफडाधारीजलेबी-गांठिया प्रसिद्ध छे|

पेंडा तो मलाईदारघेरदार घांघरोने-
काठियावाडी पाटला-सातिया प्रसिद्ध छे|

कोक जग्या मायावतीसोनियाजय-ललिता,
कोक जग्या टाटा वाणी राडिया प्रसिद्ध छे 

पण आखी दुनिया मां जेमनुं प्रताप तो,
गुजराती गरवा ने डांडिया प्रसिद्ध छे||

[इस गुजराती छंद में मदद स्वरूप भाई पंकज त्रिवेदी जी का आभार]


मराठी

भारतात दुसरा शहेर आहे कोण असा,
जागृत चौवीस तास ज्याची पहिचान हो 

कुठल्याही भागातूनआला इथे जे इसम,
इकडच्या कायमी तो झाला इनसान हो 

देशातील सर्वाधिक राजस्व च्या मानकरी 
जगातील रुचिकर कारोबारी स्थान हो|

छोटी-मोठी घटना बिघाड काय करणार,
मी मुंबईकरमाझा मुंबई महान हो||

सरलार्थ

भारत में ऐसा दुसरा कौन सा शहर है
जिसे कभी  सोने वाले शहर की पहिचान हासिल हो  

किसी भी कोने से यहाँ जो भी इन्सान आता है
वो हमेशा के लिये यहाँ का हो जाता है  

देश में सब से ज्यादा राजस्व भरने का गौरव हासिल है इसे  
दुनिया का पसन्दीदा कारोबारी स्थान है

छोटी-मोटी घटना क्या बिगाड लेंगी  
मैं मुंबईकर हूंमेरा शहर मुंबई महान है

पैरोडी - मैं तुमको ये पोस्ट पढ़ाऊँ - मेरी मर्ज़ी

विशेष सूचना - ये पोस्ट सब से पहले मेरे ऊपर लागू होती है ....................... 

टिप्पणी किस को नहीं चाहिए, सब को ही चाहिए| मुझे भी चाहिए| जो ना-ना करते हैं उन्हें भी चाहिए भाई| टिप्पणी धर्म निभाने के लिए कई बार हम में से कई सारे लोग केजुअल टिप्पणियाँ भी करते रहते हैं, ये एक ऐसा सच है - जिसे कम से कम मैं तो झुठला नहीं सकता| पर दुख होता है जब हमारे द्वारा मेहनत और लगन से बनाई गई पोस्ट्स पर कोई केजुअल से भी आगे बढ़ कर अ-सन्दर्भित कमेंट चिपका जाता है| संभव है कभी मुझ से भी ये हो गया होवे| भाई मैं भी तो इंसान ही हूँ ना| 

'सकारात्मक विकेंद्रित विचार विनिमय' की कामयाबी की राह में ऐसी टिप्पणियाँ प्रोत्साहन कम और हतोत्साहन अधिक करती हैं| ब्लॉगिंग का आज पर्याय नहीं है| ब्लॉगिंग आज देश व्यापी मूवमेंट्स का आधार भी बनने लगी है| ब्लॉगिंग ने गली-कूचों में, अनिर्दिष्ट भविष्य के लिए अभिशप्त हो चुके - कई सारे रचनाधर्मियों को एक मंच उपलब्ध कराया है| यहाँ कई सारे अच्छे ब्लॉगर हैं, ये न होते तो आज आप मेरी इस पोस्ट को न पढ़ रहे होते| नये ब्लॉगर्स के उत्साह वर्धन से रत्ती भर भी इनकार नहीं है| अपने ब्लॉग पर दूसरों को बुलाने योग्य बनाने के लिए घुमक्कडी से भी लेश मात्र तक परहेज नहीं है - पर हाँ, इतनी कसक अवश्य है, भाई टिप्पणी कम से कम सन्दर्भ के साथ तो दो, अदरवाइज आप जैसा अच्छा पाठक पाना भी हमारे लिए कोई कम उपलब्धि थोड़े ही ना है............ 

हर दिन दर्ज़नों पोस्ट पर टिप्पणी करने वाले हम सभी के लिए सारी पोस्ट्स डीटेल में पढ़ना, उन पर चिंतन करना और अपने विचार व्यक्त करना वैसे भी मुश्किल तो होता ही है| जहाँ तक मेरा सवाल है, एक बार टिप्पणी करने के बाद मैं शायद ही पलट कर देखता हूँ कि उस पोस्ट पर आगे क्या विचार विमर्श हुआ है| फिर तो ये तो ऐसा हुआ, होठों को कुछ चौड़ाई प्रदान करते हुए गर्दन हिला कर राह चलते किसी से हाय हेलो कर दी| क्या इस लिए कर रहे हैं हम ये सब? मैं क्यूँ अपेक्षा रखता हूँ कि मुझे भी टिपण्णी शतक वीर के नाम से जाना जाए? इस का उत्तर मुझे ही ढूँढना होगा|

ऐसे विचार कई बार आते हैं मन में, आप में से कई के साथ इस तरह की बातें भी हुई हैं, फ़ोन पर, चेट के माध्यम से भी| मनोज भाई से बात करते हुए आज अचानक मूड हुआ कि चलो इस पर एक हास्य कविता [पेरोडी टाइप] पेश की जाए| और लीजिए हाजिर है ये पेरोडी आप को  गुदगुदाने के लिए| अब इस के कमेन्ट में ये न लिखना "समाज का दर्पण दिखाता................... ये गंभीर..................... आलेख...................... मेरे दिल............................. को छू ........................................... गया..........................|

ब्लॉग वर्ल्ड का नया खिलाड़ी हूँ मैं मेरे यार
मेरे दिल में जो आए वो लिखता हूँ हर बार
पढ़ना लिखना मैं ना जानूँ, ये न मुझे स्वीकार
घूम घूम कर करता हूँ टिप्पणियों की बौछार

............मेरी मर्ज़ी............

कविता को मैं गीत बता दूँ मेरी मर्ज़ी
गीत को पोएट्री बतला दूँ  मेरी मर्ज़ी
ग़ज़ल को अच्छी नज़्म बता दूँ मेरी मर्ज़ी
ग़ज़ल के बदले गीत पढ़ा दूँ मेरी मर्ज़ी
टिप्पणियाँ की गरज अगर तो कर लो ये स्वीकार
घूम घूम कर करता हूँ टिप्पणियों की बौछार


कुंडलिया को रबर बता दूँ मेरी मर्ज़ी
छन्दों को मुक्तक बतला दूँ मेरी मर्ज़ी
हास्य कृति, गंभीर बता दूँ मेरी मर्ज़ी
व्यंग्य को फुलझड़ियाँ बतला दूँ मेरी मर्ज़ी
ग़ूढ विषय में दिख सकते हैं कोमल भाव अपार
घूम घूम कर करता हूँ टिप्पणियों की बौछार

लंबे-लंबे लेख पढ़ूँ, ये बस में ना मेरे
कौन पढ़े इतिहास और भूगोलों के ढेरे
पढ़ लेता दो पाठ तो फिर डॉक्टर ना बन जाता
डॉक्टर बन जाता तो काहे कविता चिपकाता
इत्ती सी ये बात समझ पाते ना मेरे यार 
घूम घूम कर करता हूँ टिप्पणियों की बौछार


अब इत्ती बड़ी पोस्ट पढ़ के भी किसी ने अ-संदर्भित टिपण्णी दी, तो 
तो 
तो 
तो 
तो 
क्या कर सकता हूँ मैं............... झेलना ही पड़ेगा भाई| आप के बिना इस ब्लॉग का कोई अर्थ जो नहीं है भाई!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

विशेष अनुरोध:- इसे व्यक्तिगत स्तर पर लेने की सख्त मनाही है, जो मित्र ऐसा करते हुए पाए जायेंगे, हमारी अगली पोस्ट में आदर सहित स्थान पायेंगे| और जो दोस्त इसे पढ़ कर कम से कम मन ही मन मुस्कुराएंगे, हमारा दिल जीत ले जायेंगे|

इस पोस्ट के प्रेरणा श्रोत मनोज भाई हैं, ये पोस्ट सभी संभावित सकारात्मक / नकारत्मक टिप्पणियों के साथ उन को समर्पित| मनोज भाई इस का भार मैं अकेले कैसे सहन कर पाऊँगा  :))))))))))))))))))))

कुण्डलिया छन्द - सरोकारों के सौदे

अक्सर ऐसे भी दिखें, कुछ modern परिवार|
मिल जुल कर ज्यों चल रही, गठबंधन सरकार||
गठबंधन सरकार, सरोकारों के सौदे|
अपने-अपने भिन्न, सभी के पास मसौदे|
नित्य नया सा खेल, खेलते हैं ले-दे कर|
दिखते संग, परंतु, दूर होते हैं अक्सर||

रस - छन्द - अलंकार

छंदों में मात्रा की गिनती

*अ इ उ क पि तु ------------------की एक [1] मात्रा
*आ ई ऊ ए ऐ ओ औ अं अः का पी तू को-----------की दो [2] मात्रा

*
सत्य में '' की 1 आधे '' की 1 और '' की भी एक मात्रा = कुल मात्रा 3
*अंत में 'अं' की 2 और '' की 1 मात्रा = कुल मात्रा 3
*समर्पण में '' की 1 'म+र' की 2 '' की 1 और '' की 1 मात्रा = कुल मात्रा 5
*अतः में '' की 1 और 'तः' की 2 मात्रा = कुल मात्रा 3
*
रास्ता में 'रा' की 2 आधे '' की कोई नहीं और 'ता' की 2 मात्रा = कुल 4 मात्रा|
परंतु यदि इसी 'रास्ता' को 'रासता' की तरह बोला / लिखा जाये तो बीच वाले '' की 1 मात्रा जोड़ कर कुल 5 मात्रा| सामान्यतः इस से बचा जाता है|


छंदों में गण प्रकार और उनकी गणना
सूत्र :- य मा ता रा ज भा न स ल गा

गण 1 = ''गण = य मा ता = लघु गुरु गुरु = 1 2 2
गण 2 = ''गण = मा ता रा = गुरु गुरु गुरु = 2 2 2
गण 3 = ''गण = ता रा ज = गुरु गुरु लघु = 2 2 1
गण 4 = ''गण = रा ज भा = गुरु लघु गुरु = 2 1 2
गण 5 = ''गण = ज भा न = लघु गुरु लघु = 1 2 1
गण 6 = ''गण = भा न स = गुरु लघु लघु = 2 1 1
गण 7 = ''गण = न स ल = लघु लघु लघु = 1 1 1
गण 8 = ''गण = स ल गा = लघु लघु गुरु = 1 1 2
'' का लतलब लघु यानि 1 मात्रा
'गा' का मतलब गुरु यानि 2 मात्रा


रस




छन्द 

चौपाई छन्द
दोहा छन्द
रोला छन्द
कुण्डलिया छन्द
घनाक्षरी छन्द
हरिगीतिका छन्द
साङ्गोपांग सिंहावलोकन छन्द
अमृत ध्वनि छन्द



अलंकार

फिल्मी गानों में अनुप्रास अलंकार
श्लेष और यमक अलंकार

चौथी समस्या पूर्ति - घनाक्षरी - पढ़ें और सुनें भी - लोग हमें कहते थे इश्क़ का बीमार है

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन

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इस पोस्ट में एक विशेष घोषणा भी है, जिसे पढ़ना न भूलें
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यह पोस्ट दो दिन लेट है| इस बार हम औडियो क्लिप्स भी देना चाह रहे थे, इसलिए देरी हो गयी| इस बार की पोस्ट में आप घनाक्षरी छंदों को सुन भी सकते हैं| हम सब के चहेते तिलक राज कपूर जी ने अपनी आवाज में उन के छंदों को रिकार्ड कर के भेजा है और रविकान्त भाई के छंदों को मैंने अपनी आवाज में रिकार्ड किया है| अंतर्जाल पर यह मेरा पहला प्रयास है, और इस प्रयास पर आप लोगों के सुझावों का सहृदय स्वागत है|

तो आइये पहले हम पढ़ते हुए सुनते हैं तिलक राज जी के छंदों को|





तेरा-मेरा, मेरा-तेरा, बातें हैं बेकार की ये,
आप भी समझिये, उसे भी समझाइये|

वाद औ विवाद से, न सुलझा है कभी कुछ,
प्यार को बनाये रखे, 'हल' अपनाइये|

छोटी छोटी बातें बनें, बड़े-बड़े मतभेद,
छोड़ इन्हें पीछे, कहीं, आगे बढ़ जाइये|

ज्ञानीजन-गुणीजन, सभी ने बताया हमें,
राजनीति का अखाड़ा, घर न बनाइये||

[शायरी करने वाले लोग बखूबी जानते हैं ऊला और सानी का क्या और क्यों महत्व होता है|
थोड़ा स्पष्ट कर दें, घनाक्षरी के पहले दो चरण विषय को उपस्थित करते हैं, फिर तीसरा
चरण विषय को तान देता है और चौथा वाला चरण 'सटाक' की आवाज के साथ
न सिर्फ छन्द समापन करता है बल्कि उक्त विषय पर निष्कर्ष भी दे देता है|
यहाँ गिरह बाँधने वाली बात भी खास महत्व रखती है]

=====


तिलक भाई के आदेशानुसार इस छन्द के साथ फोटो भी जोड़ा गया है


image.png


नयना हैं कजरारे, केश घटा ने सँवारे,
वक्ष कटि से कटा रे, कलियों सी काया है|

गोरे गाल तिल धारे, अधर गुलाब प्यारे,
इन्द्र की सभा से तुझे कौन खींच लाया है|

अधर अधीर कहें, बड़े ही जतन कर,
काम के लिए रति ने तुझको सजाया है|

बदली की ओट से निहारता कनखियों से,
देख तेरी सुंदरता, चाँद भी लजाया है||

['कनखियों से'............... नीरज भाई की स्टाइल में बोले तो आप तो उस जमाने में
पहुँचे ही, हम सभी को भी दशकों पीछे ले गए हो भाई साब| हाए हाए हाए,
वो कनखियों वाला किस्सा आप के साथ भी रहा है,
पता नहीं था हमें!!!!!!!!!!]


=====


हमने भी सोचा, चलो - उस से ही शादी करें,
जिस पे फिदा ये सारा, नगर-बाज़ार है|

अम्मा-बापू-भाई-भाभी, कोई नहीं माना कभी,
सब को लगा कि छोटा-मोटा ये बुखार है|

उस को निहारते थे, खिड़की के तले खड़े,
लोग हमें कहते थे इश्क़ का बीमार है|

घोड़ी पर चढ़ कर, उसे देखा, जाना तभी,
बन्नो का बदन जैसे क़ुतुब मीनार है||

[क्या बात करते हैं............. आप भी.........!!!!! फिर क्या हुआ? कैसे पिण्ड छूटा?
या अभी भी उस रोग से ग्रस्त हैं आप भाई साब? चलो अब इस घनाक्षरी
को जो एक बार भी पढ़ लेगा, खिड़की के अंदर जा कर डिटेल में
जरूर देखेगा, मान्यवर]




और अब पढ़ते हैं उन्हें - जो छंदों से प्राणों से भी अधिक प्यार करते हैं| श्लेष अलंकार वाली विशेष पंक्ति पर आपने एक नहीं दो-दो छन्द, और वो भी दो प्रकार के प्रयोगों के साथ प्रस्तुत किए हैं| मैंने इन छंदों को अपनी आवाज में रिकार्ड किया है, आशा है आप लोग मेरी आवाज की खराश को नज़र अंदाज़ कर देंगे|


:- रविकान्त पाण्डेय‍‍


पहला प्रयोग - अभंग श्लेष अलंकार



निज-निज प्रकृति के, सब अनुसार चलें,
विषम का किए प्रतिकार बिन चले ना|

बिन पुरुषार्थ कुछ, प्राप्त नहीं होता कभी,
ध्रुव सत्य बात ये स्वीकार बिन चले ना|

कुछ नहीं पूर्ण यहाँ, सब को तलाश कुछ,
नाव कोई जैसे पतवार बिन चले ना|

शिष्य को न नींद आए, मछली को शोक भारी,
पुरुष संताप ग्रस्त - 'नार' बिन चले ना||

[इस छन्द में रवि जी ने 'नार' शब्द के तीन अर्थ लिए हैं [१] ज्ञान [२] पानी और [३] स्त्री|
अभंग श्लेष का अर्थ होता है कि दिये / लिए गए शब्द को जैसे का तैसे ही लेना]


दूसरा प्रयोग - सभंग श्लेष अलंकार


प्रेम बिन रिश्तों वाली, गाड़ी नहीं चलती है,
घनघोर युद्ध, हथियार बिन चले ना|

वन-वन डोल-डोल मृग यही कहता है,
लगे प्यास जब, जलधार बिन चले ना|

आभूषण कितने भी सुंदर हों बंधु, पर,
स्वर्ण की दुकान तो 'सु-नार' बिन चले ना|

लाख हों हसीन मोड, इस की कहानी बीच,
जीवन का मंच सूत्रधार बिन चले ना||

[इस प्रयोग में रवि जी ने 'नार' शब्द को 'सु' से जोड़ कर दो भिन्न अर्थ उत्पन्न किए गए
हैं| यही होता है सभंग श्लेष अलंकार| यहाँ एक पंक्ति में कवि कह रहा है दो बातें-
जैसे कि [१] स्वर्ण की दुकान सुनार के बिना नहीं चलती| दूसरे अर्थ के साथ
[२] स्वर्ण की दुकान सुंदर नारी के बिना नहीं चलती| यही होती है कवि
की कल्पना| रवि भाई आप बीच बीच में गायब हो जाते हैं|
सो गाँठ बाँध लें, इस तरह से चलने वाला नहीं|
भाई साहित्य सेवा का मामला है]


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विशेष घोषणा
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ये सेकंड लास्ट पोस्ट है, अगली पोस्ट होगी 'समापन वाली पोस्ट'| आदरणीय आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जी के परामर्श के अनुसार उस पोस्ट को 'विषय मुक्त' किया जा रहा है| कई सारे कवि / कवियात्रियों ने रचनाएँ भेजी हैं, कुछ परिष्कृत जैसी हैं, कुछ अलग विषय पर हैं और कुछ प्रथम प्रयास वाली हैं| आज के दौर में जिन लोगों ने बढ़ कर छन्द सृजन में रुचि दर्शाई है, मंच उन सभी को प्रस्तुत करना चाहता है| तो ये सारे रचनाधर्मी उस पोस्ट में आएंगे|

सिवाय इस के - इस समापन पोस्ट के लिए -
अन्य रचनाधर्मी भी विषय से इतर अपना कोई एक घनाक्षरी छन्द भेज सकते हैं| हिन्दी के अलावा यदि कोई साथी भोजपुरी, मैथिली, राजस्थानी, पंजाबी, सिंधी, ब्रजभाषा, गुजराती, मराठी जैसी अन्य भाषाओं के अतिरिक्त आंचलिक भाषाओं में भी छन्द भेजना चाहें तो उन का सहर्ष स्वागत है| भाषा संदर्भ के साथ साथ शब्दों के अर्थ अवश्य दें| आप अपनी औडियो क्लिप भी भेज सकते हैं| हमारी अपेक्षा रहेगी कि पाठक उस छन्द को सब से पहली बार यहीं पढ़ें| कारण स्पष्ट है कि हम जब पहले पहले कुछ पढ़ते हैं, तब हमारी स्वाभाविक प्रतिक्रिया अपने आप आती है| बाद में फोर्मेलिटी अधिक लगती है|

ये रचनाएँ जल्द से जल्द मंच तक [navincchaturvedi@gmail.com] पहुँच जाएँ, तो समापन पोस्ट को रुचिकर बनाने के लिए पर्याप्त समय मिल सकेगा|

इन छंदों के प्रकाशन के संबंध में एक और विशेष योजना भी है - जिस के बारे में समापन पोस्ट में बताया जाएगा, और आप सभी के सुझाव भी आमंत्रित किए जाएँगे|

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छंदों के प्रेमियो - कैसे लगे ये छन्द और कैसा चल रहा है आयोजन, लिखिएगा अवश्य|
हमें इंतज़ार है समापन पोस्ट के लिए आने वाली घनाक्षरियों का|

जय माँ शारदे!

जब वो खुद को तलाश लें, खुद में - नवीन

मुश्क़िलों का प्रलाप क्या करना|
बेहतर है मुकाबला करना|१|

वो ही मेंढक कुएं से बाहर हैं|
जिनको आता है फैसला करना|२|

जिस की बुनियाद ही मुहब्बत हो|
उस की तारीफ़ और क्या करना|३|

जब वो खुद को तलाश लें, खुद में|
बेटियों को तभी विदा करना|४|

हम वो बुनकर जो बुनते हैं चादर|
हमको भाए न चीथड़ा  करना|५|

हम तो खुद ही निसार हैं तुम पर|
चाँद-तारे निसार क्या करना|६|

बातें करते हुए - हुई मुद्दत|
आओ सोचें, कि अब है क्या करना|७|


फालातुन मुफ़ाएलुन फालुन
2122 1212 22 
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मखबून





१. 'प्रलाप' शुद्ध हिन्दी का शब्द / लफ़्ज़ है, जिस का अर्थ / मायना होता है रोना धोना| मुझे लगता है पूरी गजल में एक आध ऐसा शब्द आने से गजल का सौदर्य बाधित नहीं होना चाहिए| रही बात शब्द के अर्थ समझने की, तो ग़ज़ल के दीवाने लोग शब्द कोषों [लुगत], या अपने इर्द-गिर्द के जानकारों से अर्थ समझने के एफर्ट्स करते ही हैं| ईवन अरबी और फ़ारसी के लफ़्ज़ों को समझने का भी।

२. 'बेहतर' को हालांकि गुणी जन २२ वाले वज़्न [बहतर] से जोड़ कर देखते हैं| परंतु मैं समझता हूँ कि, हमेशा नहीं तो कभी कभार, जैसा लिखा जा रहा है वैसा ही बोला भी जा सकता है| खास कर जो जिव्हा / ज़ुबान, 'चट्टान' [२२१] को 'चटान' [१२१] और 'नदी' [१२] को 'नद्दी' [२२] बोल सकती है, उसे 'बेहतर' [२१२] को 'बे ह तर' [२१२] बोलते हुए कोई व्यवधान नहीं होना चाहिए! जो लिखा जा रहा है, वही बोला भी जा रहा है!! ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं और मैं समझता हूँ कि सब सहमत हों, जरूरी नहीं है|

३. फिर भी जिन गुणीजनों को 'प्रलाप' शब्द का इस्तेमाल पसन्द न आये तथा उन्हें 'बेहतर' को 212 की बजाय 22 [बहतर] के वज़्न में ही पढ़ना हो, उन के लिए:-

मुश्किलों पे वबाल क्या करना
आओ सीखें मुक़ाबला करना

चौथी समस्या पूर्ति - घनाक्षरी - स. पा. सोहे साले जी को, सरहज ब. स. पा. ई


सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन 

छंदों में स्वाभाविक और रचनात्मक रुझान जगाने के बाद मंच के सामने दूसरा लक्ष्य था छंदों में विशिष्टता के प्रति आकर्षण उत्पन्न करना| कठिन था, पर असंभव नहीं| घनाक्षरी छन्द ने इस अवसर को और भी आसान  कर दिया| मंच ने तीन कवियों को टार्गेट किया, उन से व्यक्तिगत स्तर पर विशेष अनुरोध किया गया, और खुशी की बात है कि तीनों सरस्वती पुत्रों ने मंच को निराश नहीं किया|

पहले क्रम पर धर्मेन्द्र भाई ने श्लेष वाले छन्द में जादू बिखेरा| दूसरे नंबर पर शेखर ने गिरह बांधने के लिए 16 अक्षर वाली उस पंक्ति को ८ बार लिखा और अब अम्बरीष भाई ने भी अपना सर्वोत्तम प्रस्तुत किया है| इस की चर्चा उस विशेष छन्द के साथ करेंगे|

घनाक्षरी छन्द पर आयोजित समस्या पूर्ति के इस ११ वें चक्र में आज हम पढ़ते हैं दो कवियों को| पहले पढ़ते हैं अम्बरीष भाई को| हम इन्हें पहले भी पढ़ चुके हैं|  अम्बरीष भाई सीतापुर [उत्तर प्रदेश] में रहते हैं और टेक्नोलोजी के साथ साथ काव्य में भी विशेष रुचि रखते हैं|| 



गैरों से निबाहते हैं, अपनों को भूल-भूल,
दिल में जो प्यार भरा, कभी तो जताइये|

गैर से जो मान मिले, अपनों से मिले घाव, 
छोटी-मोटी चोट लगे, सुधि बिसराइये|

पूजें संध्याकाल नित्य, ताका-झांकी जांय भूल,
घरवाली के समक्ष, माथा भी नवाइये|

फूट डाले घर-घर, गंदी देखो राजनीति,
राजनीति का आखाडा, घर न बनाइये||

[हाये हाये हाये, क्या बात कही है 'गैरों से निबाहते हैं'............ और साथ में
वो भी 'अपनों से मिले घाव', क्या करे भाई 'रघुकुल रीति सदा चल आई'
 जैसी व्यथा है| जो समझे वही समझे]

और अब वो छन्द जो मंच के अनुरोध से जुड़ा हुआ है| यदि आप को याद हो तो 'फिल्मी गानों में अनुप्रास अलंकार' और 'नवरस ग़ज़ल' के जरिये हमने अंत्यानुप्रास अलंकार पर प्रकाश डालने का प्रयास किया था| पढे-सुने मुताबिक यह अलंकार चरणान्त के संदर्भ में है| परंतु आज के दौर में हमें यह शब्दांत और पदांत में अधिक प्रासंगिक लगता है| अंबरीष भाई से इसी के लिए पिछले हफ्ते अनुरोध किया गया था, और उन्होने हमारी प्रार्थना पर अमल भी किया है| मंच इस तरह के प्रयास आगे भी करने के लिए उद्यत है|


गोरी-गोरी देखो छोरी, लागे चंदा की चकोरी,
धन्यवाद सासू मोरी, तोहफा पठाया है|

पीछे-पीछे भागें गोरी, खेलन को तो से होरी, 
माया-जाल देख ओ री, जग भरमाया है|

धक-धक दिल क्यों री, सूरत सुहानी तोरी,    
दिल का भुलावा जो री, खुद को भुलाया है| 

कंचन सी काया तोरी, काहे करे जोरा जोरी,    
देख तेरी सुन्दरता, चाँद भी लजाया है||

[गोरी, छोरी, चकोरी, मोरी, होरी, ओ री, तोरी, जो री और जोरा जोरी  जैसे
 शब्दों के साथ अंत्यानुप्रास अलंकार से अलंकृत किया गया यह छन्द
है ना अद्भुत छन्द!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
बाकी तारीफ करने की ज़िम्मेदारी आप लोगों की]


गोल-गोल ढोल जैसा, अँखियाँ नचावे गोल, 
मूँछ हो या पूँछ मोहै, भाया सरदार है|

चाचा-चाची डेढ़ फुटी, मामा-मामी तीन फुटी, 
सरकस लागे ऐसा भारी परिवार है|

पड़े जयमाल देखो, काँधे पे सवार बन्ना, 
अकड़ी खड़ी जो बन्नी, बनी होशियार है|

जल्दी ले के सीढ़ी आओ, बन्ना साढ़े एक फुटी,   
बन्नो का बदन जैसे, क़ुतुब मीनार है||

[लो भाई घनाक्षरी में सरकस को ले आये अम्बरीष जी| सरकसी परिवार 
वाली ये शादी तो बहुत जोरदार हुई होगी वाकई में]



इस चक्र के दूसरे, घनाक्षरी आयोजन के १४ वें और इस मंच के २९ वें कवि हैं वीनस केशरी| पंकज सुबीर जी के अनुसार ग़ज़ल के विशेष प्रेमी वीनस भाई इलाहाबाद की फिजा को रोशन कर रहे हैं, पुस्तकों से जुड़े हुए हैं - बतौर शौक़ और बतौर बिजनेस भी| शायर बनने का बोझ तो पहले से उठा ही रहे थे, अब इन्हें कवि होने की जिम्मेदारी भी निभानी है| वीनस का ये पहला पहला घनाक्षरी छन्द है, और माशाअल्लाह इस ने गज़ब किया है - यदि आप को यकीन न आये तो खुद पढ़ लें| वीनस में आप को भी अपना छोटा भाई दिखाई पड़ेगा - दिखाई पड़े - तो आप भी चुहल कर सकते हैं इस के साथ|




चाहे जब आईये जी, चाहे जब जाईये जी, 
आपका ही घर है, ये, काहे को लजाइये|

मन मुखरित मेरा, अभिननदन  करे, 
मीत बन आईये औ, प्रीत गीत गाइये|

स. पा. सोहे साले जी को, सरहज ब. स. पा. ई, 
रोज आ के बोलें - जीजा - रार निपटाइये| 

घर से भगा न सकूं,  उन्हें समझा न सकूं -
राजनीति का अखाड़ा, घर न बनाइये||

[अरे वीनस भैया ये तो उत्तर भारत में बोले तो 'कहानी घर घर की' है| न जाने 
बिचारे कितने सारे जीजाओं को साले और साले की बीबी यानि सरहजों
के बीच सुलह करवानी पड़ती होंगी| अभिनन्दन को बोलते समय
अभिननदन करने की रियायतें लेते रहे हैं पुराने कवि भी|
गिरह बांधने का इनका तरीका भी विशिष्ट लगा]


कवियों ने अपनी कल्पनाओं के घोड़ों को क्या खूब दौड़ाया है भाई!!!! भाई मयंक अवस्थी जी ने सही कहा था कि "यह  सभी विधाएँ [छन्द] किसी काल खण्ड विशेष में सुषुप्तावस्था में तो जा सकती हैं; परन्तु उपयुक्त संवाहक और प्रेरक मिलने पर इन्हें पुनर्जीवित होने में देर नहीं लगती""| ये सारी प्रतिभाएं कहीं गुम नहीं हो गयीं थीं - बस वो एक सही मौके की तलाश में थीं| मौका मिलते ही सब आ गए मैदान में और चौकों-छक्कों की झड़ी लगा दी|

अम्बरीष भाई और वीनस भाई के छंदों पर अपनी टिप्पणियों की वर्षा करना न भूलें, हम जल्द ही फिर से हाजिर होते हैं एक और पोस्ट के साथ| एक बार फिर से दोहराना होगा कि ये अग्रजों के बरसों से जारी अनवरत प्रयास ही थे / हैं जिनके बूते पर आज हम इस आयोजन का आनंद उठा रहे हैं| कुछ अग्रज अभी भी मंच से दूरी बनाए हुए हैं, पर हमें उम्मीद है और भाई उम्मीद पे ही तो दुनिया कायम है|

जय माँ शारदे!

चौथी समस्या पूर्ति - घनाक्षरी - रात भर बदली की ओट से निहारता है

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन 

समस्या पूर्ति मंच द्वारा घनाक्षरी छन्द पर आयोजित इस चौथी समस्या पूर्ति के दसवें चक्र में एक बार फिर से एक नौजवान कवि को पढ़ते हैं हम लोग| मूल रूप से मथुरा के परन्तु वर्तमान में अहमदाबाद में रहने वाले शेखर चतुर्वेदी को काव्य विरासत में मिला है|



:- शेखर चतुर्वेदी 


प्यार-त्याग- विश्वास का,  सदा ही बसेरा यहाँ,
आतमीयता की फुलवारी ये बचाइए|

मिल जुल कर साथ-साथ प्यार बाँटिये जी,
अहम का मैल कभी, दिल में न लाइए|

छोटों को दुलार और, बड़ों का सम्मान करें,
होकर सजग रिश्ते-नातों को निभाइए|

कहीं अनमोल रिश्ते-नाते नहीं छुट जाएँ,
राजनीति का अखाडा, घर न बनाइये||

[संसार को देखने और समझने की उम्र में इस तरह का छन्द कवि के संस्कारी 
होने का पुख्ता सुबूत है|  'आत्मीयता की फुलवारी' के माध्यम से 
कवि अपनी बात कहने में सफल है]


नयना कटार जैसे, अधर अंगार जैसे,
कंचन बदन  तेरी कामिनी सी काया है|

मिसरी की डली जैसी बातें मीठी मीठी करे,
शब्द जाल फ़ेंक तूने मन भरमाया है|

मुसकान दामिनी की तरह प्रहार करे,
हाय दिल घायल ने जग बिसराया है|

रात भर बदली की ओट से निहारता है,
देख तेरी सुन्दरता चाँद भी लजाया है||

["रात भर बदली की ओट से" वाह वाह वाह क्या कल्पना है भाई!!!!! समस्या पूर्ति
 की पंक्ति को पूर्ण रूप से सार्थक करता हुआ यह  पूर्वार्ध भाग तो कमाल
 का है भाई| छन्द के इस हिस्से ने तो आपके दादाजी और हमारे
 गुरूजी वाले दिनों की याद दिला दी]


लिलिपुट की हाईट, कोयला बदन तेरा,
परियों का फिर भी तुझे तो इंतज़ार है|

नज़र से बचने को आटे का लगाए टीका,
बच्चे डर जाएँ ऐसा मुख पे निखार है|

कैसी घड़ी आज आई, बना है तू भी जमाई,
बन्नो से नैना मिलाने को तू बेकरार है|

नज़र मिलेगी कैसे ? पिद्दी सा बदन तेरा,
बन्नो का बदन जैसे क़ुतुब मीनार है||

['गुलिवर्स में लिलिपुट' को ढूँढने चला गया था मैं तो, पर, बाद में पल्ले पडा -
लिलिपुट के लोगों के बीच फंसे गुलिवर्स की नहीं, फिल्मों-सीरियलों में
 काम करने वाले सज्जन 'लिलिपुट' की बात कर रहे हैं आप| पिद्दी से 
बदन वाले आप के बन्ने को वाकई आटे के टीके की जरुरत है]

ये घनाक्षरी / कवित्त छन्द वाला आयोजन तो आप लोगों ने जबरदस्त पोपुलर कर दिया भाई| सुनने में आया है कि अंतरजाल पर छंदों को ले कर कुछ और भी जगहों पर रचनात्मक कार्य शुरू होने वाले हैं| ये तो बड़ी ही खुशी की बात है भाई :० | अग्रजों द्वारा बरसों से की जा रही कठिन तपस्या के सुपरिणाम सामने आने लगे हैं - जय हो|

रस-छन्द-अलंकार के सागर में गोते लगाने के रसिक - आप लोग, शेखर के छन्दों का आनंद लें, अपनी राय जाहिर करें तब तक हम हम अगली पोस्ट की तैयारी करते हैं| दरअसल जरुरत हफ्ते में तीन पोस्ट डालने की महसूस हो रही है, परन्तु अन्य कार्यों की व्यस्तातावश दो ही हो पा रही हैं|


जय माँ शारदे!