मुश्क़िलों का प्रलाप क्या करना|
बेहतर है मुकाबला करना|१|
वो ही मेंढक कुएं से बाहर हैं|
जिनको आता है फैसला करना|२|
जिस की बुनियाद ही मुहब्बत हो|
उस की तारीफ़ और क्या करना|३|
जब वो खुद को तलाश लें, खुद में|
बेटियों को तभी विदा करना|४|
हम वो बुनकर जो बुनते हैं चादर|
हमको भाए न चीथड़ा करना|५|
हम तो खुद ही निसार हैं तुम पर|
चाँद-तारे निसार क्या करना|६|
बातें करते हुए - हुई मुद्दत|
आओ सोचें, कि अब है क्या करना|७|
फाएलातुन मुफ़ाएलुन फालुन
2122 1212 22
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मखबून
फाएलातुन मुफ़ाएलुन फालुन
2122 1212 22
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मखबून
१. 'प्रलाप' शुद्ध हिन्दी का शब्द / लफ़्ज़ है, जिस का अर्थ / मायना होता है रोना धोना| मुझे लगता है पूरी गजल में एक आध ऐसा शब्द आने से गजल का सौदर्य बाधित नहीं होना चाहिए| रही बात शब्द के अर्थ समझने की, तो ग़ज़ल के दीवाने लोग शब्द कोषों [लुगत], या अपने इर्द-गिर्द के जानकारों से अर्थ समझने के एफर्ट्स करते ही हैं| ईवन अरबी और फ़ारसी के लफ़्ज़ों को समझने का भी।
२. 'बेहतर' को हालांकि गुणी जन २२ वाले वज़्न [बहतर] से जोड़ कर देखते हैं| परंतु मैं समझता हूँ कि, हमेशा नहीं तो कभी कभार, जैसा लिखा जा रहा है वैसा ही बोला भी जा सकता है| खास कर जो जिव्हा / ज़ुबान, 'चट्टान' [२२१] को 'चटान' [१२१] और 'नदी' [१२] को 'नद्दी' [२२] बोल सकती है, उसे 'बेहतर' [२१२] को 'बे ह तर' [२१२] बोलते हुए कोई व्यवधान नहीं होना चाहिए! जो लिखा जा रहा है, वही बोला भी जा रहा है!! ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं और मैं समझता हूँ कि सब सहमत हों, जरूरी नहीं है|
३. फिर भी जिन गुणीजनों को 'प्रलाप' शब्द का इस्तेमाल पसन्द न आये तथा उन्हें 'बेहतर' को 212 की बजाय 22 [बहतर] के वज़्न में ही पढ़ना हो, उन के लिए:-
३. फिर भी जिन गुणीजनों को 'प्रलाप' शब्द का इस्तेमाल पसन्द न आये तथा उन्हें 'बेहतर' को 212 की बजाय 22 [बहतर] के वज़्न में ही पढ़ना हो, उन के लिए:-
मुश्किलों पे वबाल क्या करना
आओ सीखें मुक़ाबला करना
खूबसूरत ग़ज़ल... तकनीक तो नही जानता लेकिन हर शेर दिल को छू गया...खास तौर पर दूसरा शेर....
जवाब देंहटाएं"वो ही मेंढक कुएं से बाहर हैं|
जिनको आता है फैसला करना|२|"
वाह के सिवाय क्या! वाह! वाह और फ़िर एक बार वाह!
जवाब देंहटाएंवो ही मेंढक कुएं से बाहर हैं|
जवाब देंहटाएंजिनको आता है फैसला करना..... ye sher bhaut achcha laga....
मुश्क़िलों का प्रलाप क्या करना|
जवाब देंहटाएंबेहतर है मुकाबला करना|१|
यह रचना हमें नवचेतना प्रदान करती है और नकारात्मक सोच से दूर सकारात्मक सोच के क़रीब ले जाती है।
जब वो खुद को तलाश लें, खुद में|
जवाब देंहटाएंबेटियों को तभी विदा करना|४|
हम वो बुनकर जो बुनते हैं चादर|
हमको भाए न चीथड़ा करना|५
बहुत सुंदर भाव लिए ग़ज़ल.... उम्दा पंक्तियाँ रची हैं....बधाई
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है नवीन भाई, बेहद परिपक्व। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत एवं अर्थपूर्ण है हर शेर नवीन जी !
जवाब देंहटाएंहम तो खुद ही निसार हैं तुम पर|
चाँद-तारे निसार क्या करना|
ख्यालात की मासूमियत आकर्षित करती है ! बेहद सुन्दर और लाजवाब !
मुश्किलों की तलाश क्या करना "
जवाब देंहटाएंबहुत खूब किखा है बधाई |
आशा
मुश्क़िलों का प्रलाप क्या करना बेहतर है मुकाबला करना
जवाब देंहटाएंवो ही मेंढक कुएं से बाहर हैं जिनको आता है फैसला करना...
सरल शब्दों में गहन चिंतन !
बेहतरीन ग़ज़ल नवीन भाई , इस ग़ज़ल पर विस्तार पूर्वक टिप्पणी फ़ेस बुक में किया हूं , बधाई।
जवाब देंहटाएंatyant saral shabdon mein atyant gahre bhaaw, kahne ke behtareen salike mein. Badhai.
जवाब देंहटाएंजिस की बुनियाद ही मुहब्बत हो,
जवाब देंहटाएंउस की तारीफ़ यार क्या करना ||
हर शेर एक कहानी है |||
बधाई ||
जिभ्या को सुकून मिलता है--
पढ़कर, और मन को स्वाद ||
उम्दा ग़ज़ल ....हर शेर अर्थपूर्ण
जवाब देंहटाएंमुश्क़िलों का प्रलाप क्या करना,
जवाब देंहटाएंबेहतर है मुकाबला करना।
ख़ूबसूरत मतला, प्रलाप शब्द का उपयोग इसकी ख़ूबसूरती में इज़ाफा कर रहा है।
बहुत बढ़िया ग़ज़ल।
मुश्क़िलों का प्रलाप क्या करना|
जवाब देंहटाएंबेहतर है मुकाबला करना|१|
kya baat kahi hai ....
जब वो खुद को तलाश लें, खुद में|
जवाब देंहटाएंबेटियों को तभी विदा करना|४|
बहुत सुन्दर...
सधी हुयी ... मायने लिए .. जबरदस्त गज़ल है नवीन भाई ...
जवाब देंहटाएंआपका जवाब नहीं ... हर फन के माहिर हैं आप ...
नवीन भाई, आप एक आंदोलन के अगुवा हैं और हम आपके साथ हैं. लोगों ने तो दुष्यंत को भी स्वीकार नहीं किया था पर क्या उन्होंने लिखना बंद कर दिया था. हम गज़लों में यदि एक हिंदी का शब्द ले लेते हैं तो हाय तौबा और ब्राह्मण को बिरहमन कह कर लिख लेना उचित. इसे क्या कहेंगे? ये बिरहमन शब्द तो उर्दू की डिक्शनरी में भी नहीं है. अब जरा सोचिये की बिरहमन का हिंदी अर्थ क्या होगा?
जवाब देंहटाएंइस लिए बिंदास लिखिए, आप प्रलाप लिखिए और जिसे पसंद न हो वो प्रलाप करता रहे. जब ब्राह्मण बिरहमन तो बेह तर बे ह तर क्यों नहीं? गज़लों का व्याकरण किसी किसी बेद पुराण या ..... में लिख कर नहीं आया था फिर भी है बहुत अच्छा और हम उसे निभाने की कोशिश करते हैं पर व्याकरण जब भाव सम्प्रेषण में अड़चन पैदा करता है तो छूट तो हमारे बुजुर्ग शायरों ने भी ली है.
सादर
बातें करते हुए - हुई मुद्दत|
जवाब देंहटाएंआओ सोचें, कि अब है क्या करना|७|
bahut umda Naveen ji...prashansneey..
बातें करते हुए - हुई मुद्दत|
जवाब देंहटाएंआओ सोचें, कि अब है क्या करना
मेरा मानना है कि रचना में वह शब्द ही प्रयोग करने चाहिए जो आपके दिल से निकल रहे हों | शायद आपका ब्लॉग पहली बार देखा और देखता राह गया ...
नवीन जी .. आप कि रचना बेहद उम्दा , सार्थक और मात्राओ के विचारों से भी उत्कृष्ट..
जवाब देंहटाएंनए अंदाज़ और अलफ़ाज़ की खूबसूरत ग़ज़ल ."जब वो खुद को तलाश लें खुद में ,बेटियों को तभी विदा करना ."वो ही मेंढक कुँए से बाहर हैं जिनको आता है फैसला करना .
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर और लाजवाब शेर| सरल शब्दों में गहन चिंतन|
जवाब देंहटाएंवो ही मेंढक कुएं से बाहर हैं|
जवाब देंहटाएंजिनको आता है फैसला करना|२|
...बहुत गहन भाव समाये लाज़वाब गज़ल..बहुत उत्कृष्ट..बधाई
वाकई, क्या कहना, क्या कहना?
जवाब देंहटाएंबातें करते हुए - हुई मुद्दत|
जवाब देंहटाएंआओ सोचें, कि अब है क्या करना
इस खूबसूरत शेर के हवाले से ये कहना
ना-मुनासिब नहीं लगता कि पूरी ग़ज़ल
अपनी मिसाल आप बन गयी है ... वाह !
आपकी भावनाएं हैं,,, आपकी अपनी अभ्व्यक्ति है
मेरे ख़याल से किसी को आपत्ति है भी नहीं.....
सार्थक आन्दोलन चलाना
सार्थक सोच को उजागर करने में सहायक ही होता है !!