नवगीत - शर्त है पर - सीमा अग्रवाल


हम  लहर पर आज ही

दीपक सिराना छोड़ देंगे 

शर्त है, पर,

तुम तमस से

आँख डाले आँख में

बातें करोगे

 

नीर के हों फ़ैसले जब

आग के दरबार में

मौन के अतिरिक्त तब

कुछ और चारा है कहाँ

 

बाग़ के क़ानून हों जब

पतझडों के हाथ में

तब दुआओं के सिवा

कोई हमारा है कहाँ

 

हम भटक कर चौखटों पर

सर झुकाना छोड़ देंगे

शर्त है, पर,

तुम अनय के दंभ मर्दक बन

जयति के स्वर रचोगे

 

साधनाएँ साध्य से

ज़्यादा बड़ी होने लगीं

साधकों के कद हुए हैं

साधना से भी बड़े

 

विशद मीमांसा

कुकर्मों की सहेजी जा रहीं

पर सुकर्मी भाष्य सारे

हाशिए पर हैं पड़े

 

भीतियों की भीत पर

पत्थर सजाना छोड़ देंगे

शर्त है, पर,

तुम अभय के मंत्र

अंतर में हमारे फूँक दोगे

 

पीर का व्यवसाय कर अब

काल जीता है यहाँ

सांत्वना भुगतान के बिन

अब कहीं मिलती नहीं

 

देवता छोटे बड़े

हो कर खड़े हैं पंक्ति में

हो गए आशीष भी

सस्ते  कहीं महँगे कहीं

 

हम फ़लाना या ढिकाना

हर ठिकाना छोड़ देंगें

शर्त है, पर,

तुम अमिट विश्वास बन कर

रक्त में अविरल बहोगे 

3 टिप्‍पणियां:

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