25 अगस्त, 1953 को जितौरा ,पियरो,आरा , बिहार में जन्मे आदरणीय रमेश कँवल जी भी उन चुनिन्दा लोगों में शामिल हैं जिनकी कि ऊर्जा कोविड के बाद कई गुना बढ़ गयी. कोविड की त्रासदी को दरकिनार करते हुए आप ने ईसवी सन 2021 में विभिन्न शायरों द्वारा
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एक और कदम हिंदी गज़ल की ओर – एम. एल. गुप्ता आदित्य
कुछ सप्ताह
पहले हिंदी गजलों
की एक पुस्तक आई है “धानी चुनर”। इस पुस्तक के लेखक हैं नवीन सी चतुर्वेदी, जो अनेक विधाओं व भाषाओँ में सृजन
करने वाले कवि / लेखक हैं। इस पुस्तक का श्रीगणेश
गणपति, शारदे, शिव, राम, कृष्ण, जगदम्बा एवं गुरू
वन्दना जैसी ईश आराधनाओं के साथ किया गया है, जो
समीक्षा : "डाली मोंगरे की" : गज़ल संग्रह नीरज गोस्वामी - मयंक अवस्थी
समीक्षा
"डाली मोंगरे की" गज़ल संग्रह नीरज गोस्वामी
प्रकाशक शिवना प्रकाशन
पी सी लैब सम्राट काम्प्लैक्स बेसमेण्ट
बस स्टैण्ड सीहोर—466001 ( म प्र)
" डाली मोगरे की" – इसकी खुश्बू दिलकश है
ग़ज़ल किस सबब ज़िन्दा है ?!! क्या सिर्फ शायरों,
रिसालों और मुशाइरों और गायकों की बज़्ह से ?!या
यह जवाब कुछ अधूरा है ?!! दरअस्ल यह जवाब अधूरा है क्योंकि इन सभी श्रेणियों में
आर्थिक और सामाजिक परिपूरण की तवक्को भी छुपी है – एक सबसे महत्वपूर्ण वर्ग का अभी
इस परिभाषा में ज़िक्र रह गया है । गज़ल अपने दीवानों की वज़्ह से अभी भी ज़िन्दा और ताबिन्दा
है। कई कलायें लुप्त हो गई क्योंकि उनके नुमाइन्दे और पैरोकार तो थे लेकिन उनके दीवाने
नहीं थे –लेकिन गज़ल विधा भाग्यशाली है कि उसके दीवाने अभी भी हैं और बगैर किसी आर्थिक
या सामाजिक उपलब्धि की तवक्को में ये गज़ल और सिर्फ गज़ल से इतनी मुहब्बत करते हैं कि
उनकी शख़्सीयत में गज़ल इस तरह पोशीदा रहते है जैसे फूल में खुश्बू !! गज़ल किसी की भी हो कहीं भी कही जा रही हो लेकिन इसके
दीवाने इसे आसमान पर बनाये रखते हैं –ऐसे ही एक दीवाने को मैं भी जानता हूँ जिनका नाम
है नीरज गोस्वामी !!!
नीरज ग़ज़ल के दीवाने हैं और दीवानगी क्या नहीं कर सकती – एक क़ैस पूरे दश्त को आबाद कर देता है और एक फरहाद पहाड़
काट देता है !!! नीरज भी ग़ज़ल को पढते नहीं जीते हैं और इसकी निशानदेही उनका ब्लाग करता
है जो एक बागे - रिज़्वाँ का नज़ारा पेश करता है – किसी ग़ज़ल/ शाइर को उन गैर आबाद हल्कों तक पहुँचाना जहाँ अन्यथा
उसकी रसाई नहीं हो सकती थी – चाँद के दाग़ न देखना सिर्फ चाँदनी के सन्दर्भों में चाँद
को परिभाषित करना –यह उन्होंने शाइरों और उनकी
शाइरी के लिये अर्से से किया है और आज भी कर रहे हैं। लेकिन पिछले दिनों इस दीवाने
के पैकर से एक शाइर नुमाया हुआ जो शाइस्तगी और इज़हार के मुआमले में इतना प्रभावशाली
साबित हुआ कि उसके कई अशआर बरबस ही मुँह से
वाह वाह निकलवा ले गये। नीरज जी के शाइर की तबीयत और तर्बियत पर कोई सवाल इसलिये नहीं
उठता कि उनका ब्लाग और उअनके गुरु सर्वश्री
पंकज सुबीर इस सिलसिले में पहले से ही ख़्यातिलब्ध नामो में शुमार हैं ।
"डाली मोंगरे की" पहला मरहला है इस शाइर के सफर का और –निश्चित
रूप से नीरज सारी प्रशंसा और सारे प्रोत्साहन के हकदार हैं। इस संकलन में 98 गज़लें
हैं –जो अनुभूति और इज़हार के सन्योग या द्वन्द से उपजी हैं। ये गज़लें ख्याल की दृष्टि
से औसत , भाषा की दृष्टि से बड़ी हद तक निर्दोष और स्वीकार्य और
प्रयास की दृष्टि से बिना रुके ताली बजाने के इम्कान रखती हैं। तस्व्वुफ़ पिरोने की
कोशिश नहीं की गई है जिसके लिये नीरज जी को बधाई और किसी अन्य शाइर की रिप्लिका बनने
की कोशिश भी नहीं की गई है –जिसके लिये वे प्रशंसा के हकदार हैं।इसके सिवा एक बात जो
विशेष रूप से उल्लेखनीय है और हर उम्र के शाइर के लिये प्रेरणास्रोत हो सकती है वो
ये है कि जिस उम्र में नीरज जी का यह संग्रह प्रकाशित हुआ है उस उम्र तक बेशतर शाइरों में संग्रह छपवाने के हौसले
की हौसलाशिकनी हो चुकी होती है। उनका जोश उनकी उमंग और उनकी शाइरी ज़िन्दगी जीने की
कला सीखने वालों के लिये एक वृहत प्रेरणास्रोत का कार्य कर सकती है। बेशतर अश आर मश्वरे
और कहन की शक़्ल में हैं यानी शाइर का तसव्वुर्
किसी से संवाद करने के मर्कज़ पर तख़्लीक में उतरता है – इसमे आत्मालाप की शैली
बहुत कम है – जिसका अर्थ यह है कि शाइर व्रहत सामाजिक दायरों में जीता रहा है और जीने
का आदी है – लेकिन भीड़ में तनहाई का ख्याल और अपना अलग रास्ता बनाना उसके जेहन में
ज़िन्दा है --
जुदा तुम भीड़ से होकर तो देखो
अलग राहों में कितनी दिलकशी है
समन्दर पी रहा है हर नदी को
हवस बोलें इसे या तिश्नगी है
शाइर के पास एक अंतर्दृष्टि है जो सतही प्रभावशीलता से अलग हट कर देख
सकती है --
देखने में मकाँ जो कच्चा है
दर हक़ीकत बड़ा ही कच्चा है
ज़िन्दगी कैसे प्यारे जी जाये
ये सिखाता हरेक बच्चा है
नीरज जी का स्वर सामाजिक प्रवक्ता का स्वर है और उनकी नज़र से ज़ुबान तलक
जो फलसफहा उतरता है वो तस्लीम किया जाने काबिल है --
बस इसी सोच से झूठ काइम रहा
बोल कर सच भला हम बुरे क्यों बने
ज़िन्दगी खूबसूरत बने इस तरह
हम कहें तुम सुनो तुम कहो हम सुनें
प्रचलित शब्दों के विभव को उन्होंने पहचाना है और लफ़्ज़ को दायरे से आगे
के मआनी देने में वो समर्थ हैं
साँप रस्सी को समझ डरते रहे
और सारी ज़िन्दगी मरते रहे
रात भर आरी चलाई याद ने
रात भर खामोश हम चिरते रहे
छोटी बहर में कहना मुश्किल होता है लेकिन नीरज जी ने प्रभावशाली शेर कहे
हैं --
मैं राज़ी तू राज़ी है
पर गुस्से में काज़ी है
आँखें करती हैं बाते
मुँह करता लफ़्फाज़ी है
नीरज की कई गज़लों में याद रखने वाले शेर मिल जाते हैं जो अपनी तज़गी और
कहन की नवीनता के सबब खासे प्रभावित करते हैं --
कब तक रखेंगे हम भला इनको सहेज कर
रिश्ते हमारे शाम का अखबार हो गये
किसी की याद चुपके से चली आती है जब दिल में
कभी घुँघरू से बजते हैं , कभी तलवार चलती
है
तुझमें बस तू बसा है मुझमे मैं
अब के रिश्तों में हम नहीं होता
खिड़कियों से झाँकना बेकार है
बारिशों में भीग जाना सीखिये
जब दिलों में रोशनी भर जायेगी
वो दिवाली भी कभी तो आयेगी
तनहाई में गाया कर
खुद से भी बतियाया कर
हर राही उस से गुज़रे
ऐसी राह बनाया कर
नीरज का संकलन एक ऐसे समय पर आया है –जब गज़ल भाषा की सन्धि रेखा पर खड़ी
है –इस समय गज़ल की ज़ुबान को हिन्दुस्तान की सर्वस्वीकार्य ज़ुबान बनाने का आवेग ज़ोर
पकड़ रहा है –ऐसे में अदब और अवाम की शाइरी भी एक दूजे को आने वले वक़्त में हम आहंग
करेगी। अदब की वरीयता फिक्रो –फन के अरूज़ की पैरवी करती है और अवाम की चाहत सम्प्रेषणीय
भाषा में कही गई गज़ल है। गज़ल की मूल 19 बहरो में कुछ ही अधिकतर प्रयोग की जाती हैं।
अच्छी शाइरी का अर्थ है कि आप अपने समय के साथ खुद को सिंक्रोनाइज़ कर सकें। मुझे उनकी
तख़्लीक में वो अनासिर दीख पडते हैं जो दौरे हाज़िर में स्क्रीन पर बने रहने के लिये
आवश्यक होते हैं। नीरज जी के पास आश्वस्त करने वाला शब्द भंडार है – हिन्दी और उर्दू
ज़ुबान और लहजे का एक सुन्दर सम्मिश्रण उनके पास है। ग़ज़ल के व्याकरण का उनको बखूबी ज्ञान
है और उनका इज़हार दिलो जेहन तक रसाई रखने में समर्थ है। यह संकलन तस्लीम और इस पर उनको
बधाई –और एक मश्वरा मैं उनको देना चाहूँगा –तस्व्वुर में खुद को खुदा को और खला को
शाहिद बना कर कुछ गज़लें कहिये –इससे गज़ल में तस्व्वुफ़ , वुसअत और शीशागरी के इम्कान खुलेंगे। मालिक की दुआ से आपकी सिरिश्त एक ज़रख़ेज़
ज़मीन रखती है और आपके शाइर के पास बहुत कुछ ऐसा है जिस पर रश्क किया जा सकता है।
किसी पौधे में फूल का आना विधायक ऊर्जा के विभव को सकारात्मक दिशा मिलना
होता है। नीरज जी जैसे साहित्यानुरागी के संकलन का प्रकाशित होना ऐसी ही सम्भावना के
साकार हो जाने जैसा है। ये ऐवान उन्होंने खुद अपनी मेहनत से बनाया है। " डाली मोगरे की " के मंज़रे आम होने पर मुझे जितनी खुशी है मैं इसका बयान नहीं कर सकता
–उन्होंने अपनी ऊर्जा को एक बेहद सार्थक दिशा उसी दिन दे दी थी जब तब्सरा लिखने के
इलावा खुद भी शेर कहना आरम्भ कर दिया था और ख्वाब की ताबीर भी जल्द हुई जब ये संकलन
हमारे हाथों मे आ गया है। मेरा दृढ विश्वास है कि जिस व्यक्ति के संस्कार प्रबल होते
हैं जिसका मानस निष्कलुष होता है जिसमें प्रेम
, धैर्य और समकालीन समाज और सम्धर्मियों को को सम्मान और
सहारा देने जिअसे उच्च मानवीय गुण होते हैं वही अपने दौर का सच्चा और अच्छा शाइर हो
सकता है –कहने की ज़रूरत नहीं कि –नीरज जी के व्यक्तित्व में यह सभी गुण ईश्वर ने वरदान
स्वरूप बह्र दिये हैं – उन्होंने अच्छे शेर कहे हैं और भविष्य में वो बेशतर बुलन्दियों
पर हमको दिखाई देगें। माँ सरस्वती अपने इस पुत्र पर अपना आशीष बनाये रखे।
असीमित शुभ्रकामनाओं सहित
–मयंक अवस्थी
रथ इधर मोड़िये - बृजनाथ श्रीवास्तव - समीक्षा : मयंक अवस्थी
अविस्मरणीय काल से मनुष्य की अभिव्यक्ति उस की चेतना और अनुभूति के संयोग अथवा द्वंद से जन्मती हुई, संगीत और कला के विविध रूपों में प्रकट होती रही है। समय, स्थान और सुसंस्कृति अनुरूप इस अभिव्यक्ति का कलेवर बदलता रहा है। जो अभिव्यक्ति मानव अंतस की यथार्थ एवं निष्कलुष गहराइयों को उकेरने में समर्थ होती है वह कालजयी भी होती है। सामवेद की ऋचाएँ निष्कलुष और पवित्र इसीलिये हैं कि वे चेतना के सूक्ष्म धरातलों तक पहुँचती हैं। यही कारण है कि भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि मैं वेदों में सामवेद हूँ।
कोई रचनाधर्मी जब अपनी अनुभूति की पराकाष्ठा पर पहुँचता है तो बहुधा उस की अभिव्यक्ति में वह ईश्वर तत्व आ जाता है जो किसी रचना को देशकाल की परिधि से ऊपर कर देता है। अभिव्यक्ति आयाम खोजती है। छायावादोत्तर हिन्दी काव्यजगत में नवगीत स्वरूप लेने लगा था और समकालीन कविता में इस के वर्चस्व
आस्माँ होने को था - पुस्तक समीक्षा
आसमाँ होने को था –अखिलेश तिवारी
लोकायत प्रकाशन
ए-362 , श्री दादू मन्दिर , उदयपुर हाउस
एम डी रोड , जयपुर -302004 ( राजस्थान )
फोन – 0414-2600912
बेशतर शायर गज़ल को तलाश करते हैं लेकिन कभी कभी ऐसा भी होता है कि ग़ज़ल भी किसी शायर को तलाश करती है । “ आस्मां होने को था” के प्रकाशन के बाद ग़ज़ल अनिवार्य रूप से शायर अखिलेश तिवारी का और अधिक शिद्दत से इंतज़ार करेगी हर मुशायरे में, हर अदबी रिसाले में हर परिचर्चा में और जहाँ जहाँ भी ग़ज़ल की बात होगी वहाँ ।
काश्मीर के प्रति - साहित्य वारिधि डा. शंकर लाल 'सुधाकर' - एक समीक्षा
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काश्मीर के प्रति - साहित्य वारिधि डा. शंकर लाल 'सुधाकर' - एक पाठक समीक्षा
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काश्मीर के प्रति - साहित्य वारिधि डा. शंकर लाल 'सुधाकर' - एक पाठक समीक्षा
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ओ हिंद वीर के उच्च भाल, किन्नरियों के पावन, सुदेश ।
तेरी महिमा का अमित गान, कर सकते क्या सारद गणेश ।।
सौन्दर्य सलिल सरवर है तू, नर नलिन जहाँ सर्वत्र खिले ।
मधुकरी किन्नरी वार चुकी , मधु -रस लेकर मन मुक्त भले ।।
पर्वत पयस्विनि पादप गन , पुष्पावलि पावन विविध रंग ।
आभूषित कलित मृदुल मधु मय , प्रकृति वनिता के विविध रंग।।
जब मैंने इन पंक्तियों को पढ़ा तो सहसा ही मैथिलीशरण गुप्त और रामधारी सिंह दिनकर की स्मृतियाँ जाग उठीं| ऐसा सतत प्रवाह, ऐसा शब्द संयोजन और ऐसी भाव प्रवणता अक्सर इन लोगों की रचनाओं में ही पढ़ते रहे हैं हम। फिर आगे पढ़ा:-
भारत माता का तू ललाट, साहित्य,शास्त्र का सौख्य सिन्धु|
लहलही हुई है विश्व-बेलि, जिसकी लघु सी पा एक बिंदु ||
जिसका पांडित्य प्रभाकर सा, खर-प्रभा दिगंत दिखाता था |
विद्वता बनारस मागध की, हारी, मुख बंग छिपाता था ||
चाणक्य चतुर नृप नीति-विज्ञ, व्याकरण करण शालातुरीय |
उत्पन्न हुए जिन जननी से, उनका तू प्रांगण दर्शनीय ||
है विश्व विदित तव बौद्ध धर्म, ललितादित का साहस अपार |
नतमस्तक था वह चीन देश, जिसके बल सन्मुख,बन सियार ||
ऐसी विलक्षण भाषा शैली कि चित्त चकित हुए बिना न रहे सके| आप सोच रहे होंगे कि मैं आखिर बात किस बारे में कर रहा हूँ| समस्या पूर्ति मंच पर आपने शेखर को पढ़ा होगा| उनके दादा जी स्व. श्री शंकर लाल चतुर्वेदी 'सुधाकर' जी द्वारा विरचित प्रबंध खण्ड काव्य 'काश्मीर के प्रति' से उद्धृत हैं ये पंक्तियाँ|
विवेचित काव्य में कवि ने काश्मीर को केंद्र में रख कर एक वृहद अध्ययन प्रस्तुत किया है| यह एक ऐसी काव्य कृति है जो कि शोधार्थियों के लिए एक महत्वपूर्ण विषयवस्तु साबित होती है| काश्मीर के अतीत को समर्पित पंक्तियाँ:-
क्षत्रिय कुल कमल दिवाकर सा, वह काश्मीर! था सिंह गुलाब
भुज विक्रम अद्रिसुता सुत सा, जननी अवनी प्रति नेह भाव ||
रिपु गर्व रदन के भंजन को, तन मन में साहस था अपार |
तिब्बत गिलकिट तक रेख खींच, पहुँचाई सीमा चीन पार ||
कवि ने काश्मीर संधि को ले कर द्वितीय सर्ग में जो लिखा है वह भी पठनीय है| कवि की कलम पूरे खण्ड काव्य में नि:शंक चलती दिखती है जो कि कवि के काव्य के प्रति समर्पण का अप्रतिम उदाहरण है| जिन्ना के दूत का मेहरचंद से मिलना, मेहरचंद द्वारा उस प्रस्ताव को अस्वीकृत कर देना, और उस के तुरंत बाद ही मेहर चंद द्वारा भारत की राजधानी दिल्ली आ कर आगे की रणनीति हेतु विचार विमर्श का शब्दांकन कवि की समय चक्र पर पकड़ के साथ साथ कुशल प्रबंधन के अनुभव को भी दिखाता है|
अक्टूबर की छब्बिस दिनांक, तेरा भारत में विलय हुआ |
जिन्ना का, जिससे काश्मीर, पवि ह्रदय टूटकर खंड हुआ ||
काली निशि नीरव अमाख्यात, राका उजियारी के ऊपर |
काली काली घनघोर घटा, छाई आभामय नभ ऊपर ||
'ओ अल्ला ओ अकबर अल्ला’, था तुमुल घोष भू अम्बर पर |
वह्रि-विस्फोटक यन्त्र युक्त, यवनों का दल था तव उर पर ||
गृह-भवन, महल, मंदिर-मस्जिद, हो गए प्रकम्पित एक बार |
घुस गए दस्यु दल दानव से, करने को तुझ पर अना चार ||
एक रुचिकर पाठक की भाँति एक ही साँस में आगे पढ़ता चला गया मैं| काश्मीर के बारे में मैं भी कमोबेश वही सब जानता हूँ जो कि एक आम हिन्दुस्तानी जानता है, इस लिहाज से भी सोचा क्यूँ न एक बार इतिहास के पन्नों को किसी और के नज़रिए से भी पढ़ के देखा जाए| भारत पाक युद्ध बंदी के लिए रूस के हस्तक्षेप का भी वर्णन है इस पुस्तक में:-
रसिया का रुख तत्क्षण पलटा, कह दिया "करो अब युद्ध बंद" |
परिषद् से होकर साधिकार, भारत आनन को किया बंद ||
भोले शास्त्री को बहलाकर, बुलवाया उसने ताशकंद |
चव्हाण, स्वर्णसिंह गए साथ, लिख दिया पत्र वह मुहर बंद ||
लाल बहादुर शास्त्री के मन की व्यथा भी है इस में| उनके देहावसान पर ये पंक्तिया:-
जनवरी मास छासठ सन था, भारत माता का लाल उठा |
पाते ही दुखद वृत्त को तब, भारत जन-गण बौखला उठा ||
झंडे झुक गए शोक छाया, उजियाले में था अन्धकार |
हा ! लाल बहादुर चला गया, घर घर मातम था चीत्कार ||
हे काश्मीर ! तेरे कारण, खोया उस लाल-बहादुर को |
शक्ति साहस से दबा दिया, जिसने अयूब से दादुर को ||
आगे जा कर इस में बांग्ला देश मुक्ति आन्दोलन पर भी पढ़ने को मिलता है| उस दौरान की कुछ वीभत्स घटनाओं की कल्पना मात्र से ही आज भी दिल काँप उठता है, ये कुछ पंक्तियाँ:-
मार्शल-ला का हुक्म हुआ, सम्पूर्ण पूर्व बंगाले में |
जय बंगलादेश, मुजीबर जय, ये गूंज उठा बंगाले में ||
वह बंग बन्धु, वह बंग सिंह, अपने घर में था नज़र बंद |
जनता ने 'शासन को सोंपो ' की मांग ध्वनि को कर बुलंद||
नृशंस लूट खसोट हुई, लूटा सतीत्व तव अबला का|
बच्चों को लूटा जननी से, सिन्दूर भाल से महिला का ||
धन-धान्य लुटा बाज़ारों में, सुख शांति लुटी थी ग्रामों से |
कुसुमोंकी कलिता कोमलता, लुट गई सफल आरामों से||
घर-घरसे लूटी गई शांति, निर्भयता बच्चों से लूटी |
वृद्धों से अनुभव लूट लिया, ‘आ बैल मार’ विपदा टूटी ||
कन्या का शील भंग होता, यह देख पिता क्रोधित होता |
परवश था दुष्ट पठानों से, बेचारा सिर धुनकर रोता ||
ओह, कितना वीभत्स था वह सब| इस पुस्तक में शुरू से आखिर तक काश्मीर के प्रति कई सारे तथ्यों को बतियाया गया है| काव्य से जुडी बातों को सम्पादकीय में आदरणीय विष्णु विराट जी ने विस्तार से लिखा है और इस काव्य प्रस्तुति के बारे में श्री उमेश चंद (विंग कमांडर) अध्यक्ष, वायुसेना एवं केंद्रीय विद्यालय फरीदाबाद का भेजा पत्र भी पढ़ने को मिला|
आज के दौर में जहाँ लोग अपने खुद के संसार से ही ऊपर आ नहीं पाते ऐसे में शेखर का अपने दादाजी के इस प्रबंध खंड काव्य को हम लोगों तक पहुंचाने का प्रयास निस्संदेह प्रशंसनीय और वन्दनीय है| अपने दादाजी की काव्य कृति को ब्लॉग के ज़रिये अमरत्व प्रदान करने के लिए उन्हें शत शत साधुवाद|
जीवन के दो तिहाई भाग [अमूमन एक तिहाई भाग सार्वजनिक स्थलों पर व्यतीत होता है] को धोती बनियान में गुजारने वाले और समाज में मास्टर साब के नाम से विख्यात श्री सुधाकर जी को तत्कालीन वित्तमंत्री श्री मनमोहन सिंह द्वारा 'सेवा श्री' सम्मान के अतिरिक्त साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा 'साहित्य वारिधि' सम्मान, ब्रज साहित्य संगम द्वारा 'ब्रज विभूति' सम्मान, ताहत माथुर चतुर्वेद केंद्रीय विद्यालय द्वारा 'कलांकर' सम्मान प्राप्त हुआ| दर्जनों भर पुस्तकों का प्रकाशन अपने जीवन काल में ही करा चुके 'सुधाकर' जी की दर्ज़न भर से अधिक पुस्तकें अब भी अप्रकाशित हैं|
समय के इस सशक्त हस्ताक्षर से स्वयं साक्षात्कार करने के लिए उन के पोते द्वारा बनाए गये ब्लॉग पर अवश्य पधारें| उस ब्लॉग पर न केवल इन का परिचय, पुस्तकों का विवरण तथा सम्मान पत्रों की प्रतिलिपियाँ देखने को मिलेंगी वरन विवेचित पुस्तक 'काशमीर के प्रति' भी सॉफ्ट फ़ॉर्मेट में आप ऑनलाइन पढ़ सकते हैं|
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