25 अगस्त, 1953 को जितौरा ,पियरो,आरा , बिहार में जन्मे आदरणीय रमेश कँवल जी भी उन चुनिन्दा लोगों में शामिल हैं जिनकी कि ऊर्जा कोविड के बाद कई गुना बढ़ गयी. कोविड की त्रासदी को दरकिनार करते हुए आप ने ईसवी सन 2021 में विभिन्न शायरों द्वारा सृजित 2020 की 600 नुमाइंदा ग़ज़लों का सफलता पूर्वक संकलन एवं सम्पादन कर के शायरी के आसमान में एक नक्षत्र टाँक दिया था.
आप यहीं नहीं रुके, सन 2022 में आप ने 21 वीं सदी के 21 वें साल की बेहतरीन ग़ज़लों का संकलन
एवं सम्पादन कर के अदब के चाहने वालों को एक अनमोल भेंट प्रदान दी. 2022 में ही
आपने अपनी तरह का एक और अनूठा संकलन पेश किया जिसे विभिन्न शायर-शायरात की एक
रुक्नी ग़ज़लों से सजाया गया.
जब सन 2023 का वर्ष समग्र भारतवर्ष में अमृत महोत्सव के रूप
में मनाया गया तो आपने भी इस स्वर्णिम अवसर पर अदब की ख़िदमत में देश भर के अनेक
शायर-शायरात से सम्पर्क कर भिन्न-भिन्न ७५ रदीफ़ों की ग़ज़लें एकत्रित कर उनका संकलन
एवं सम्पादन कर के राष्ट्रीय उत्सव के आनन्द में अभिवृद्धि की. 2023 में आपने जो
अन्य महत्कर्म किये उनमें उनके काव्यगुरू आदरणीय हफ़ीज़ बनारसी जी की ग़ज़लों के “क्या
सुनाएँ हाले-दिल” एवं “आज फूलों में ताज़गी कम है” नामक दो संग्रहों के प्रकाशन के
साथ-साथ “वंदन!शुभ अभिवन्दन” शीर्षक के अन्तर्गत देव-स्तुति विषयक काव्य संग्रह भी
सम्मिलित है.
जिस उम्र में लोग लेटने-बैठने या बहुत से बहुत टहलने में
अपना समय ख़र्च कर देते हैं उस आयु में आदरणीय रमेश कँवल जी एक के बाद एक धमाके
करते जा रहे हैं. शायद ही शायरी से जुड़ा कोई इलाका होगा जहाँ के लोग रमेश जी के
प्रयासों से परिचित न हों. सन 2024 प्रत्येक भारतीय के लिए आल्हाद वर्धक रहा. 500
वर्षों के घोर संघर्ष के बाद अयोध्या में राम लला की पुनः विधिवत प्राण-प्रतिष्ठा
हुई. 22 जनवरी, 2024 का दिन इतिहास में एक अद्भुत दिन की
तरह याद किया जायेगा. अपवाद स्वरुप कुछ विघ्न-संतोषियों को भुला दिया जाए तो
प्रत्येक भारतवासी ने उस दिन उल्लास का प्रत्यक्ष अनुभव किया. सभी को लगा कि उनके
अपने घर में कुछ अच्छा हो रहा है. यह धर्म से अधिक आस्था का विषय है और शायद
इसीलिए रमेश जी को भी पुनः कुछ अभिनव करने की प्रेरणा मिली. आपने एक और ऐतिहासिक
कार्य करने की ठान ली और बस जी जान से जुट गये.
देश-विदेश के अनेकानेक शायर-शायरात से सम्पर्क कर के 24
अलग-अलग बह्रों में ग़ज़लें भेजने का अनुरोध किया. विशेषकर सभी से आग्रह किया कि ये
ग़ज़लें 2024 में ही सृजित हों. इस तरह 95 शायर-शायरात की 24 बहरों में 876 ग़ज़लों का
अभूतपूर्व संकलन-सम्पादन कर के आपने एक और इतिहास रच दिया. 710 पन्नों की यह
पुस्तक किसी पुराण की तरह प्रतीत होती है. ग़ज़ल के चाहने वालों के लिए यह किसी
पुराण से कम है भी नहीं. प्रशासनिक सेवाओं के अनुभवों का सदुपयोग करते हुए रमेश जी
ने इस संकलन की साज-सज्जा में अपना सर्वस्व लगा दिया है. अनुक्रमाणिका ही देखें तो
पोएट वाइज, ग़ज़ल वाइज, बह्रवाइज
है. सभी के परिचय अलग से दिये गये हैं. उसके अलावे सभी के फ़ोन नम्बर की अलग से
सूची है. किस शायर-शायरा की कितनी ग़ज़लें सम्मिलित हैं उसकी एक सूची अलग से है.
पुस्तक के फ़्लैप्स में पतियों द्वारा पत्नियों एवं पत्नियों द्वारा पतियों के लिए
लिखे गये 24 शेर प्रस्तुत किये गये हैं. एक खण्ड में शायर-शायरात के रंगीन फोटो
हैं और दूसरे खण्ड में उनके जीवनसाथी के साथ के रंगीन फोटो हैं. हर बह्र के अरकान
दिये गये हैं साथ में प्रचलित फ़िल्मी गीतों के सन्दर्भ भी प्रस्तुत किये गये हैं.
पुस्तक की शुरुआत में ही भारतीय जन-मन के आराध्य रामलला के मनोहारी दर्शन हैं. इस
संग्रह के आरम्भ में ही आपने वसुधैव कुटुम्बकम को प्रणाम करते हुए अपने दादा जी
एवं दादी जी को भी याद किया है. एक और अद्भुत बात कि यह संकलन आपने अपने मित्रों
को समर्पित कर के एक और अद्भुत आत्मीयता का परिचय दिया है.
श्वेतवर्णा प्रकाशन, दिल्ली द्वारा प्रकाशित 710 पन्नों की इस अद्भुत पुस्तक और इस पुस्तक के सृजक आदरणीय रमेश जी के बारे में जितना लिखा
जाय कम ही लग रहा है. लेखनी की अपनी सीमा है इसलिए इसी निवेदन के साथ बात को अल्प
विराम देता हूँ कि पुस्तकों का संग्रह करने वालों के रैक्स में ऐसी पुस्तक अवश्य
होनी चाहिए.
पुस्तक का नाम - 2024 की दिलकश ग़ज़लें
संकलन एवं सम्पादन – रमेश 'कँवल', फ़ोन नम्बर 8789761287
प्रकाशन – श्वेतवर्णा प्रकाशन, दिल्ली, फोन नम्बर 8447540078
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