मयंक अवस्थी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
मयंक अवस्थी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

इक शाम सरयू में स्वयं को, होम करना है तुझे

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन

आयोजन जैसे जैसे आगे बढ़ रहा है एक से एक उत्कृष्ट रचनाएँ भी सामने आ रही हैं। 2 अक्तूबर को शुरू हुआ यह आयोजन अब अपने उत्तरार्ध में प्रवेश कर चुका है।

आज की पोस्ट में हम पढ़ेंगे मयंक अवस्थी जी के हरिगीतिका छंद। लय का निर्वाह, छंद विधान का पूर्णरूपेण अनुपालन और सहज सम्प्रेषणीयता तो है ही, पर इन सब के अलावा जो ताज़गी उभारी है मयंक भाई ने, वो विशिष्ट है। आइये पढ़ते हैं इन छंदों को, धारा प्रवाह के साथ................

वातायन - मयंक अवस्थी जी की ग़ज़लें

जैसा कि पिछली पोस्ट में इंगित किया था, अब वातायन की पोस्ट्स भी यहीं ठाले-बैठे पर हीआएंगी। पुरानी पोस्ट्स की लिंक्स वातायन के पेज पर दी गई हैं।

इस नए क्रम में सबसे पहले पढ़ते हैं भाई मयंक अवस्थी जी की दो ग़ज़लें। वातायन पर मयंक जी की एक ग़ज़ल पहले भी आ चुकी है। 25 जून 1967 को हरदोई में जन्मे मयंक भाई वर्तमान में रिजर्व बैंक, नागपुर में सहायक प्रबन्धक के पद पर आसीन हैं। अदब के हलक़ों में इन की बातों को संज़ीदगी से लिया जाता है। इन की एक और विशेषता है कि यदि आप इन्हें नींद से उठा के पूछ लें तो भी आप को 25-50 शेर तो धारा प्रवाह सुना ही देंगे, अपने नहीं, दूसरों के। पुराने शायरों के साथ-साथ नए शायरों के भी कई सारे शेर इन्हें मुंह जुबानी याद रहते हैं। मुझे ताज़्ज़ुब हुआ जब साहित्यिक कुनबे के शायद सब से छोटे सदस्य मेरे जैसे व्यक्ति के भी शेर इन्होने फर्राटे के साथ सुना डाले मुझे, वो भी गाड़ी ड्राइव करते हुए। आइये पढ़ते हैं इन की ग़ज़लें:-




खुशफहमियों  में चूर ,अदाओं के साथ –साथ
भुनगे भी उड़ रहे हैं  हवाओं  के साथ –साथ

पंडित  के  पास   वेद  लिये  मौलवी क़ुरान
बीमारियाँ  लगी   हैं  दवाओं के साथ –साथ

वो  ज़िन्दगी थी  इसलिये हमने निभा  दिया
उस  बेवफा  का संग  वफ़ाओं के साथ –साथ

इस  हादसों   के शहर में सबकी  निगाह में
खामोशियाँ बसी हैं  सदाओं   के साथ –साथ

उड़ती है आज  सर   पे वही  रास्ते की धूल
जो कल थी  रहग़ुज़ार में पाँओं के साथ –साथ

जज़बात  खो  गये  मेरे  आँसू  भी  सो गये
बच्चों  को  नींद आ गयी माँओ के साथ-साथ  


******


बैठे हो जिसके ख़ौफ से छुपकर मचान पर
वो  शेर  चढ रहा है सभी की ज़बान पर

वापस  गिरेगा  तीर  तुम्हारी  कमान पर
ऐ  दोस्त  थूकना न  कभी आसमान पर

इक  अजनबी ज़बान तुम्हारी ग़ज़ल में है
किसकी  है  नेम –प्लेट तुम्हारे मकान पर

दिल से उतर के शक्ल पे बैठा हुआ है कौन
क़ाबिज़  हुआ  है कौन तुम्हारे जहान  पर

अब  आइने  में  एक  हथौड़ा  है  पत्त्थरों
बेहतर  हो  आप  ब्रेक लगा लें ज़बान  पर

तिश्नालबों  ने  आँख  झुका ली  है शर्म से
अब है नदी का जिस्म कुछ ऐसी उठान पर

सिकुड़ा  हुआ था दश्त सहमता था कोहसार
जब   इश्क का जुनूँ था किसी नौजवान पर

टी –शर्ट   डट रहे  हो  बुढापे में ऐ मयंक
क्यूँ  रंग  पोतते  हो   पुराने  मकान पर

:- मयंक अवस्थी

******


दूसरी समस्या पूर्ति - दोहा - मयंक अवस्थी, रविकान्‍त पाण्‍डेय, शेखर चतुर्वेदी [१०-११-१२]

सभी साहित्य रसिकों का पुन: सादर अभिवादन और होली की शुभकामनाएँ

दोहा छन्‍द पर आधारित दूसरी समस्या पूर्ति के पाँचवे सत्र में आप सभी का सहृदय स्वागत है|

Mayank Awasthi

रंग-भंग-हुड़दंग सँग, हास-रास-श्रिंगार|
क्या-क्या ले कर आ गया, होली का त्यौहार|१|

सब के रँग में रँग सभी, गये इस तरह डूब|
आज विविधता में हमें, दिखी एकता खूब|२|

तेरे रँग में रँग गया, आज अंग प्रत्यंग|
और पृथकता घुल गई, अपनेपन के संग|३|

भाई मयंक अवस्थी जी ने चौपाई छन्‍द पर आधारित पहली समस्या पूर्ति में भी मनभावन चौपाइयाँ प्रस्तुत की थीं और इस बार भी उन्होने अपनी कलम की जादूगरी से हमें मंत्र मुग्ध कर दिया है| ग़ज़ल में महारत रखने वाले मयंक भाई की छन्‍दों पर पकड़ उन के ज्ञान और अनुभव का जीता जागता उदाहरण है|


होली में रितुराज ने किया धरा को तंग|
अंग-अंग पर मल दिया धानी-धानी रंग|१|

नदी पार था चूमता, सूर्य धरा के गाल|
लहरों ने टोका तभी, हुआ शर्म से लाल|२|

सरसों ने पहना दिया, पीत पुष्प परिधान|
धरती दुल्हन सी सजी, कोयल गाये गान|३|

बने प्रीत खुद गोपिका, मन हो नंद-कुमार|
उर-अंतर प्रतिक्षण मने, होली का त्यौहार|४|

फागुन आया, प्रीत की, रिमझिम पड़े फ़ुहार|
नस-नस में उठने लगा, दिव्य प्रेम का ज्वार|5|

'पी' सम्मुख हैं सुंदरी, कर ले पूरन काज|
कंठहार-सी लग गले, छोड़ जगत की लाज|6|

रविकान्‍त जी ने तो होली की जो अद्भुत छटा दिखलाई है हमें, उस की जितनी तारीफ की जाए, कम ही है| प्रकृति की होली के इस बेशक़ीमती नज़ारे ने इस मंच को और भी अधिक गरिमा प्रदान की है| दिल से यही आवाज़ आ रही है दोस्त कि माँ शारदा आप पर सदा मेहरबान रहें|



भंग रंग आनंद मय, होली का त्यौहार|
ब्रज भूमि की देखिये, आनंद छटा अपार|१|

सन्मुख राजाधिराज के, ढप ढोलक की थाप|
रंगों में मन डूब के, कर मन हरि का जाप|२|

ब्रजवासिन के संग में, नटवर नन्द किशोर|
भक्ति प्रेम का अमिट रँग, बरस रहा चहुँ ओर|३|

मन के कलुष मिटाय के, जीवन कर साकार|
बड़े भाग्य से आत है, होली सा त्यौहार|४|


इस सत्र के तीसरे कवि हैं शेखर चतुर्वेदी| शेखर भाई आपने मथुरा की द्वारिकाधीश [राजाधिराज] जी के साक्षात दर्शन करा दिए| छन्‍द साहित्य के प्रति आप का रुझान इस बार भी प्रभावित करने में सक्षम रहा है| इन के जैसे और भी कवियों / कवियत्रियों को इस मंच से जुड़ना चाहिए|

अगली पोस्ट में मिलेगे कुछ और कवियों के साथ| तब तक आप इन दोहों के रंगों में सराबोर हो कर होली का आनंद लीजिए और अपने टिप्पणी रूपी पुष्पों की वर्षा कीजिए||

आप सभी को रंगों के इस महापर्व की ढेरों बधाइयाँ|

खुशियों का स्वागत करे, हर आँगन हर द्वार|
कुछ ऐसा हो इस बरस, होली का त्यौहार||

पहली समस्या पूर्ति - चौपाई - मयंक अवस्थी जी [६] और रवि कांत पाण्डेजी [७]

सम्माननीय साहित्य रसिको

पहली समस्या पूर्ति 'चौपाई' के अगले पड़ाव में इस बार दो रचनाधर्मियों को पढ़ते हैं|


भाई श्री मयंक अवस्थी जी:-

श्री मयंक अवस्थी जी रिजर्व बॅंक, नागपुर में कार्यरत हैं| शे'रो शायरी का बहुत ही जबरदस्त ज्ञान है आपको| और अब देखिए उन की अनुभवी लेखनी ने चौपाइयों के माध्यम से क्या जलवे बिखेरे हैं:-

निर्निमेष तुमको निहारती|
विरह –निशा तुमको पुकारती|
मेरी प्रणय –कथा है कोरी|
तुम चन्दा, मैं एक चकोरी|१|

खत भी तुमको भिजवाया पर|
शलभ, वर्तिका तक आया पर|
कब सुनते हो शून्य कथायें|
महाअशन में ये समिधायें|२|

तुम बादल मैं प्यासी धरती|
तुम बिन मैं सिँगार क्या करती|
बन जाते माथे पर कुमकुम|
कितने अच्छे लगते हो तुम|३|
शलभ=पतंगा, वर्तिका=शम्मा, महाअशन=यज्ञ की विकराल अग्नि



भाई श्री रविकान्त पाण्डे जी:-

भाई रवि कांत पाण्डे जी हम से पहली बार जुड़े हैं| उन के बारे में मुझे विशेष जानकारी नहीं है, परंतु उनकी लेखनी स्वयँ ही उनका परिचय दे रही है:-

मौसम के हाथों दुत्कारे|पतझड़ के कष्टों के मारे|सुमन हृदय के जब मुरझाये|
तुम वसंत बनकर प्रिय आये|१|


नूतन किसलय तुमसे पाकर|
जीर्ण-शीर्ण सब पात हटाकर|

मस्ती में होकर मतवाली|

झूम रही उपवन की डाली|२|


लोग कहें घर दूर तुम्हारा|

किंतु नहीं मैने स्वीकारा|

दिल में मेरे बसते हो तुम|

कितने अच्छे लगते हो तुम|३|


भाई श्री मयंक जी और भाई श्री रवि कांत जी को बहुत बहुत बधाई इतने सुंदर्र और स-रस चौपाइयों को पढ़ने का सु-अवसर प्रदान करने के लिए|

इस आयोजन को गति प्रदान करने हेतु सभी साहित्य सेवियों से सविनय निवेदन है कि अपना अपना यथोचित योगदान अवश्य प्रदान करें| अपनी रचनाएँ navincchaturvedi@gmail.com पर भेजने की कृपा करें|

पहले समस्या पूर्ति के बार में और अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें:- समस्या पूर्ति: पहली समस्या पूर्ति - चौपाई