वो जो दिखता है तयशुदा जैसा - नवीन

वो जो दिखता है तयशुदा जैसा
उस में ही ढूँढें कुछ नया जैसा

भीड़ में भी तलाश लूँगा उसे
उस का चेहरा है चंद्रमा जैसा

कुछ नया रँग उभर ही आता है
चाहूँ कितना भी तयशुदा जैसा

क्यों नहीं खोलते दरीचों को 
हमको लगता है दम-घुटा जैसा

जुट गया होता काश जीते-जी
वक़्तेरुखसत हुजूम था जैसा  

लिख मुहब्बत के बोल कागज़ पर 
शेर बन जायेगा दुआ जैसा

दम निकलने पे भी न छोड़े साथ 
कोई हमदम नहीं ख़ुदा जैसा  

हर समय हर जगह वो है मौजूद
उस का किरदार है हवा जैसा

इस के बिन प्यार भी है बेमानी
कोई ज़ज़्बा नहीं वफा जैसा 

:- नवीन सी. चतुर्वेदी 

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मखबून
फाएलातुन मुफ़ाएलुन फालुन

2122 1212 22

सभी गुनाह कर के भी वो बेगुनाह बन गयी - नवीन

सभी गुनाह कर के भी वो बेगुनाह बन गयी
अदालत उस के हक़ में ख़ुद-ब-ख़ुद गवाह बन गयी १

क़दम-क़दम पे मुश्किलें खड़ी हैं सीना तान कर 
ये ज़िन्दगी तो आँसुओं की सैरगाह बन गयी २

हमारे हक़ में उस ने तो चमन उतारे थे मगर
हमारी भूख ही हमारी क़ब्रगाह बन गयी ३

क़लम की रोशनाई रोशनी को जिस पे नाज़ था 
न जाने क्यूँ अँधेरों की पनाहगाह बन गयी ४

अदब की अज़मतों की इक मिसाल देखिये हुजूर
अदीब जिस पे चल पड़े वो शाहराह बन गयी ५

:- नवीन सी. चतुर्वेदी

बहरे हजज मुसम्मन मजबूज
मुफ़ाएलुन मुफ़ाएलुन मुफ़ाएलुन मुफ़ाएलुन

1212 1212 1212 1212

अगर हम भी मगज़ को द्वेष का दफ़्तर बना लेते - नवीन

नया काम


अगर हम भी मगज़ को द्वेष का दफ़्तर बना लेते
यक़ीनन एक दिन ख़ुद को अजायबघर बना लेते


हमें अपने इलाक़ों से मुहब्बत हो नहीं पायी
वगरना ज़िन्दगी को और भी बेहतर बना लेते

समय से लड़ रहे थे और लमहे कर दिये बरबाद
हमें करना ये था लमहात का लश्कर बना लेते

किसी सहरा में कोई भी बशर प्यासा नहीं रहता
अगर हम ख़्वाहिशों को प्यार का सागर बना लेते

बिना प्रेक्टिस 'नवीन' अशआर कह पाना तो मुश्किल था
भले ही छप-छपा कर ख़ुद को हम शायर बना लेते







-----

हम इस दिल को अगर ज़ज़्बात का दफ़्तर बना लेते।
मुनाफ़ा छोड़िये जी, खुद को भी पत्थर बना लेते।१।

हवा के साथ पत्ता दूर तक जाता नहीं अक्सर ।
तो फिर वो हमको अपना हमसफ़र क्यूँ कर बना लेते।२।

न यूँ मज़बूर होते शह्र में घुट घुट के मरने को।
जो अपने गाँव या कस्बे में भी इक घर बना लेते।३।

अगर ये फीस दे कर सीखने वाला हुनर होता।
कई शहज़ादे अपने आप को शायर बना लेते ।४।

दिलों में फ़स्ल उगा लेते अगर रोशनख़याली की।
तो मुस्तक़बिल वतन का और भी बेहतर बना लेते ||

:- नवीन सी. चतुर्वेदी

बहरे हजज मुसम्मन सालिम
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२

किस तरह कह दें कि माली थक गया है साहिबान - नवीन

किस तरह कह दें कि माली थक गया है साहिबान। 
हमको अन्देशा खिज़ां का हो रहा है साहिबान।।

पेड़-पौधेफूल-पत्तेगुंचा-ओ-बुलबुल उदास। 
ग़मज़दा हैं सब - चमन सबका लुटा है साहिबान।।

फिर न दीवारें उठेंफिर से न टूटे दिल कोई। 
कुछ बरस पहले ही अपना घर बँटा है साहिबान।।

खुल गये पन्ने तो सारा भेद ही खुल जायेगा। 
अब समझ आया कि सेंसर क्यों लगा है साहिबान।।

ग़म भुलाने के बहाने कुछ न कुछ पीते हैं सब। 
हमने भी साहित्य का अमृत पिया है साहिबान।। 


:- नवीन सी. चतुर्वेदी


बहरे रमल मुसमन महजूफ
फाएलातुन फाएलातुन फाएलातुन फाएलुन

2122 2122 2122 212

बुलबुलों से तितलियों से जुगनुओं से हो लगाव - नवीन

बुलबुलों से तितलियों से जुगनुओं से हो लगाव
बागवाँ तो वो है जिसको ख़ुश्बुओं से हो लगाव १

जब कोई गुलशन उजड़ता है तो खिल उठते हैं वो
है बहुत मुमकिन कि उनको उल्लुओं से हो लगाव २ 

दे के सब तालीम बेटी से कहा माँ-बाप ने
उस से रहना दूर जिसको घुँघरुओं से हो लगाव ३

हसरतों के आशियाँ को बस उसी की है तलाश
जिसको खुशियों से ज़ियादा आँसुओं से हो लगाव ४

लोग दानिशमंद इशारा भाँप लेते हैं तुरंत
उनसे क्या कहिये जिन्हें पिछलग्गुओं से हो लगाव ५

:- नवीन सी. चतुर्वेदी

बहरे रमल मुसमन महजूफ
फाएलातुन फाएलातुन फाएलातुन फाएलुन
2122 2122 2122 212

जब तुम बसंत बन थीं आयीं - आ. संजीव वर्मा 'सलिल'



स्मृति गीत :
जब तुम बसंत बन थीं आयीं...
मेरा जीवन वन प्रांतर सा
उजड़ा, नीरस, सूना-सूना.
हो गया अचानक मधुर-सरस
आशा-उछाह लेकर दूना.
उमगा-उछला बन मृग-छौना
जब तुम बसंत बन थीं आयीं..

गोया चूमा हो तसल्ली ने हरिक चहरे को - नवीन

सच्ची श्रद्धा व सबूरी की सदारत देखी
मैं जो शिर्डी को गया मैंने ये जन्नत देखी
उस के दर पे जो गया मैंने ये जन्नत देखी

कोई मुज़रिम न सिपाही न वक़ीलों की बहस
ऐसी तो एक ही साहिब की अदालत देखी

गोया चूमा हो तसल्ली ने हरिक चहरे को
उस के दरबार में साकार मुहब्बत देखी

बीसियों श़क्लों में हर और से मिट्टी की तरह
उस के चरणों से लिपटती हुयी दौलत देखी

मैंने जैसे ही ये सोचा कि फिर आना है यहाँ
उस की नज़रों में भी फिर मिलने की चाहत देखी

बहरे रमल मुसम्मन मखबून मुसक्कन
फाएलातुन फ़एलातुन फ़एलातुन फालुन

२१२२ ११२२ ११२२ २२

मौसम हुआ कोंपल - कुमार रवीन्द्र

कुमार रवीन्द्र
नए साल में वरिष्ट विद्वतजन का आशीर्वाद मिले,  इस से बड़े सौभाग्य की बात और हो भी क्या सकती है| इस साल की पहली पोस्ट के लिए आदरणीय कुमार रवीन्द्र जी ने अपना नया नवेला नवगीत भेज कर हमें अनुग्रहीत किया है| आइये पढ़ते हैं उन का नवगीत - नववर्ष के सन्दर्भों तथा आदरणीय की शुभेच्छाओं के साथ:-