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SP2/3/8 दिगम्बर नासवा जी और योगराज प्रभाकर जी के छन्द

नमस्कार

कल क़रीब एक-डेढ़ साल बाद आदरणीय श्री योगराज प्रभाकर जी की आवाज़ सुनाई पड़ी। लम्बी और अत्यधिक पीड़ादायक बीमारी के बाद आप हमारे बीच लौटे हैं। आप के परिवारी जनों के साथ-साथ आप की वापसी हमारे लिये भी सौभाग्य की बात है। सौभाग्य की बात इसलिये कि यह किरदार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से निरन्तर ही छन्द साहित्य की सेवा में लगा हुआ है। हम आप की स्वस्थ और दीर्घायु की मङ्गल-कामना करते हैं। मैं एक बार फिर से लिखना चाहूँगा कि योगराज भाई जी ने मुझे फेसबुकिया होने से बचाया और आज यह मञ्च जिस मक़ाम पर पहुँचा है उस में भी आप का महत्वपूर्ण योगदान है। मञ्च के निवेदन पर आप ने अपने छन्द भेजे हैं, आइये पहले आप के छंदों को पढ़ते हैं :-

मैं क्या हूँ? बस हूँ सिफ़र, तनहा, बे-औक़ात
साथ मिले गर 'एक' भी, 'नौ' को दे दूँ मात
'नौ' को दे दूँ मात, सिफ़र से दस हो जाऊँ
तुम जो दे दो साथ, किसी गिनती में आऊँ
इसको दोस्त कदापि न समझो विकट समस्या
लाज़िम है यह साथ, वगरना तुम क्या मैं क्या

तुम लय, सुर अरु ताल हो, ख़ुद में हो संगीत
तर्ज़ इधर बेतर्ज़ सी, तुम सुन्दरतम गीत          
तुम सुन्दरतम गीत, बिखेरो छटा बसंती
मैं भटका सा राग, मगर तुम "जै जै वंती"
मैं गरिमा से हीन, मगर हो गरिमामय तुम   
मैं हूँ कर्कश बोल, मृदुल, मनुहारी लय तुम

हम के अन्दर हैं छिपे, हिंदू-मुस्लिम नाम
भीड़ पड़ी जब देश पर, दोनों आए काम
दोनों आए काम, कहाँ से नफ़रत आई
भारत माँ हैरान, लड़ें क्यों दोनों भाई  
अपने झण्डे छोड़, उठायें क़ौमी परचम  
इक माँ की सन्तान, बताएँ दुनिया को हम

सलिल जी की तरह ही योगराज जी के साथ भी भाषा तथा छन्द वग़ैरह के विषय में लम्बी-लम्बी वार्ताएँ होती रही हैं। आप भाषाई चौधराहट के मुखर विरोधी हैं। सिफ़्र [21] को सिफ़र [12] नज़्म करते हैं, वो भी धड़ल्ले के साथ। सिफ़्र यानि शून्य। शून्य को ले कर आप ने जो छन्द कहा है उस पूरे छन्द की हर एक पंक्ति बरबस ही आगे बढ़ते क़दमों को रोकती है।  छंदों में अक्सर ही जो रूखापन दिखाई पड़ने लगा है उस के कुछ कारण हैं मसलन [1] अत्यधिक शास्त्रीयता [2] वाक्यों का स्पष्ट-सरस-सरल न होना [3] सार्थक संदेश की अनुपस्थिति  और [4] हृदय की बजाय मस्तिष्क का अधिक इस्तेमाल।  “तुम जो दे दो साथ, किसी गिनती में आऊँ” और “वगरना तुम क्या मैं क्या” जैसे वाक्य सीधे दिल से निकले हुये वाक्य हैं। गिनती वाले वाक्य में जहाँ हृदय का आर्तनाद है वहीं वगरना वाले वाक्य में सार्थक संदेश भी है। इन ही तत्वों से छन्द, छन्द बनता है।

तुम वाले छन्द को देखिये। मैं कुछ भी नहीं और तुम सब कुछ, यही सब तो कहा जाना है। बस हम लोग कैसे-कैसे इस बात को कहते हैं, वह देखने जैसा होता है। एक-एक शब्द को पढ़ना बड़ा ही सुखद अनुभव है। अरे, इतनी मनुहार सुन कर तो पत्थरों का कलेज़ा भी पिघल जाये। जीते रहिये योगराज जी।

हम वाले छन्द के हम में हिन्दू-मुस्लिमएकता का नारा बुलन्द करने के लिये, 'क़ौमी परचम' यानि 'इन्सानियत का परचम' बुलन्द करने के लिये कवि को सादर प्रणाम। यार, यहाँ आप से जलन होती है, मैं ऐसा क्यूँ नहीं सोच पाया? तुस्सी ग्रेट हो भाई जी। मालिक आप की हज़ारी उम्र करें। जीते रहिये, और यूँ ही ख़ुश होने के मौक़े देते रहिये।

इस पोस्ट के दूसरे छन्दानुरागी हैं भाई दिगम्बर नासवा जी। पिछले आयोजन के दौरान समस्या-पूर्ति मञ्च पर हम उन के दोहे पढ़ चुके हैं। एक छन्द पुष्प के साथ आप इस आयोजन में उपस्थित हो रहे हैं। आइये पढ़ते हैं आप का छन्द :-

'मैं' से 'हम' के बीच में बीते पच्चिस साल
अब क्या बोलूँ, क्या किया, इन सालों ने हाल
इन सालों ने हाल बिगाड़ा भर कर भुस्सा
माँ-बापू नाराज़, बहन-भाई भी गुस्सा
कहे दिगम्बर सास बहू का झगड़ा भारी
इस को सुलझाने में सारी दुनिया हारी

विश्वस्त सूत्रों [ J ] से पता चलता है कि यह छन्द इन का अपना अनुभव नहीं है बल्कि किसी बहुत ही ख़ास मित्र का अनुभव है। भाई हमें भी आप के उस ख़ास मित्र से बेहद हमदर्दी है। और अगर यह आप का अनुभव भी होता तो क्या हुआ, सौ में से कम से कम, एक सौ एक लोगों के साथ ये समस्या है ही। फिर भी दिगम्बर भाई आप ने कमाल किया है भाई और आप को इस कमाल के लिये बहुत-बहुत बधाई। आयोजन में हास्य-रस की कुछ कमी खल रही थी, सो शेखर के बाद आप ने भी इस कमी को भरने में अच्छा योगदान दिया है। कुछ मित्र कहते हैं कि मैं हास्य का विरोधी हूँ, ऐसा नहीं, मैं हास्य का विरोधी नहीं बल्कि चुटकुला-सम्मेलनों / गोष्ठियों को कवि-सम्मेलनों / गोष्ठियों की जगह लेता देख कर दुखी अवश्य हूँ। चुट्कुले सुन कर हँसता हूँ और कविता की बदहाली पर रोता हूँ। 

तो साथियो आप इन छंदों का आनन्द लीजियेगा, अपने बहुमूल्य विचारों से अलङ्कृत कीजियेगा और हम बढ़ते हैं अगली पोस्ट की ओर।

जितने छन्द आये सभी पोस्ट हो चुके हैं। अगर अन्य साथी इस आयोजन से ख़ुद को दूर रखने के निर्णय पर क़ायम रहते हैं तो अगली पोस्ट समापन पोस्ट होगी।


नमस्कार 

चौथी समस्या पूर्ति - घनाक्षरी - दुनिया को ताज लगे, उसे मुमताज लगे


सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन



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घनाक्षरी छंद के बारे में हम ने एक बात नोट की| पढ़ कर समझने की बजाय जब लोगों ने इस को औडियो क्लिप के जरिये सुना तो तपाक से बोल उठे अरे ये तो वो वाला है, हाँ मैंने सुना है इसे, अरे मैं तो जानता हूँ इसे| इस तरह की बातों को ध्यान में रखते हुए हम घोषणा के वक्त दी गयी औडियो क्लिप्स को दोहराना जारी रखते हैं:-




तिलक भाई द्वारा गाई गई रचना श्री चिराग जैन जी की है, और कपिल द्वारा गाई गई - मेरी|
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मुंबई में बरखा रानी की कृपा हो गयी और भाई हमने भी उस का स्वागत आलू के पराठों के साथ कर दिया है| कल गंगा दशहरा है - गंगा स्नान की प्रथा है, नाशिक जाएँगे - राम घाट पर स्नान करने| हालांकि बदलते समय के साथ नदियों का स्वरूप बदला है, पर श्रद्धा और आस्था भी अपनी जगह है भाई| पश्चिमी सभ्यता के लिए हर जगह सब कुछ एडजस्ट कर लेते हैं हम; तो अपने संस्कारों के लिए थोड़ा बहुत क्यूँ नहीं? फिर रविवार को एकादशी है तो उस दिन इच्छा है त्र्यंबकेश्वर दर्शन की|

आलू के पराठों की याद आते ही याद आ जाता है पंजाबी लहजा| तो ठेठ पंजाबी लहजे वाले और काव्य के किसी भी प्रारूप में भाषाई चौधराहट को सिरे से नकारने वाले योगराज प्रभाकर जी के घनाक्षरी कवित्तों के मजे लेते हैं आज| योगराज जी ने श्रंगार रस वाली पंक्ति को ताजमहल संदर्भित प्रेम से जोड़ कर अभिनव प्रस्तुति दी है| सामान्यत: श्रंगार रस का नाम आते ही हम लोग रीति काल की कल्पना करने लगते हैं या फिर बिहारी, सूरदास, तुलसी, केशव, सेनापति और घनानन्द जैसे तमाम कवियों द्वारा रचित काव्य का स्मरण करने लगते हैं| दरअसल श्रंगार रस का क्षेत्र काफी वृहद है और अब तो इंटरनेट पर उपलब्ध भी है, सो हम यहाँ उस विशाल शास्त्र की तरफ सिर्फ इंगित करते हुए आगे बढ़ते हैं|






हरेक दीवार तोड़, एक छत नीचे आ के ,
छोटी मोटी बातें खुद, बैठ निपटाइए|

अपना ये घर टूटे, सब इसी ताक में है,
इसे टूटने न देंगे, कसम ये खाइए |

खोलो ऑंखें समझ लो, दुशमन के मंसूबे,
उसके भुलावे में न, हरगिज़ आइए |

फूट पड़ी घर में तो, घर बच पायेगा न,
राजनीति का अखाड़ा, घर न बनाइए ||

[फूट पड़ी घर में तो............. 'मुख्य पंक्ति' को यथार्थ के काफी करीब ले गए हैं आप|
'वसुधेव कुटुम्बकम' को समर्पित इस पंक्ति पर आप ने वाकई जबर्दस्त प्रस्तुति दी है]


देख रूप रंग तेरा, सुध बुध भूले सभी,
तेरे इस रूप ने तो, जग भरमाया है |

ताब तेरी झेल पाना, आदमी के बस कहाँ,
देख तेरी सुन्दरता, चाँद भी लजाया है |

रूप का खज़ाना रख, यमुना के तीर पर,
मालिक ने प्रेमियों को, तो'फ़ा भिजवाया है |

दुनिया को ताज लगे, उसे मुमताज लगे,
जिस प्रेमी बादशा' ने, तुझको बनाया है ||

[इस छन्द ने तो 'मुख्य पंक्ति' से ऊपर चढ़ कर बात कही है भाई| और इसे ही कहते हैं कवि की
कल्पना| मुझे लगता है इस छन्द की तारीफ़ आप लोग मुझ से बेहतर करेंगे]



शरमाये काला तवा, बन्नो का दरश कर
लगे जैसे नैरोबी से आई कोई नार है |

कौवा जैसे निकला हो भींज कर चूने में से,
बन्ने की सूरत पे भी, ऐसा ही निखार है |

सीढ़ी लगवायी जब, जयमाल डालने को,
बन्नो जी को तब हुआ, बन्ने का दीदार है |

बन्नो जया भादुरी का, एक बटा तीन लगे,
बन्ने का बदन जैसे, क़ुतुब मीनार है ||

["जया भादुरी का एक बटा तीन" बाप रे बाप कैसी कैसी कल्पनाएं आ रही हैं -
यार खुश कर दित्ता|]



अंग्रेज़ियत के रंग में अमूमन रँग चुके आज के दौर में ऐसे छंदों को पढ़ने का आनंद ही और है| 'विशेष पंक्ति' वाले छन्द पर काम करने वाले कवियों की संख्या अब हो गई है तीन| आप लोग आनंद लीजिएगा योगराज जी के छंदों का, और हाँ, अपनी बहुमूल्य राय देना न भूलें प्लीज| तब तक हम तैयारी करते हैं एक और धमाकेदार पोस्ट की|

जय माँ शारदे!

तीसरी समस्या पूर्ति - कुण्डलिया - तीसरी किश्त

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन

कुण्डलिया छंद पर आयोजित तीसरी समस्या पूर्ति के तीसरे चक्र में प्रवेश कर रहे हैं हम| पिछले चक्र में हमने पढ़ा था दो नौजवान कवियों को, और आज हम पढने जा रहे हैं एक वरिष्ठ रचनाधर्मी को|

'तजुर्बे का पर्याय नहीं' कहावत को चरितार्थ करने वाले ये अग्रज साहित्य के लिए समर्पित हैं तथा साहित्य में आंचलिक शब्दों की जोरदारी से वकालत भी करते हैं| पिछले साल अंतरजाल पर आने के बाद के दिनों में इन के द्वारा कई जानकारियाँ हासिल हुई हैं इन पक्तियों के लेखक को, जिसके लिए आभार कहना अपर्याप्त होगा|

तो आइये पढ़ते हैं इन के द्वारा भेजे गए कुण्डलिया छन्दों को:-

[१]
कंप्यूटर के ज्ञान में, अपना स्थान विशेष|
अपना लोहा मानती, दुनिया सारी शेष||
दुनिया सारी शेष, करे इज्जत अफजाई|
नासा तक में यार, देश की धाक जमाई|
जग को किए प्रदान, ट्रबल के माहिर शूटर|
बेफिक्री से ताकि, चलें सारे कंप्यूटर||
[इण्डिया दा जवाब नहीं भइये, शक हो तो बिल गेट्स से पूछ कर देख लो]

[२]
सुन्दरियाँ जो आज की, करें प्रदर्शित अंग|
लोक लाज को भूल कर, कपडे पहनें तंग||
कपडे पहने तंग, देख कर लज्जा आए|
उन्नति ना ये, यार, इन्हें कोई समझाए|
लाज शर्म को भूल, अगर हो बैठी *उरियाँ|
देंगी सिर्फ़ कलंक, देश को ये सुंदरियाँ||
[* उरियाँ = निर्वस्त्र, क्या ठेठ पंजाबी लहजा है]

[३]
सुन्दरियाँ इस दौर की, हाँकें वायूयान|
देश कौम का विश्व में, ऊँचा करती मान||
ऊँचा करती मान, हरिक खित्ते में छाईं|
पूरा है विश्वास, पुरुष-साथी की नाईं|
अंदर से हैं आग, और बाहर फुलझरियाँ|
सीमा पर हथियार, चलातीं ये सुन्दरियाँ||
[सुन्दरियाँ अच्छे काम भी करती हैं, भाई मानना पड़ेगा| ये बातें कह कर आप ने सिक्के के सकारात्मक पहलू पर भी ध्यान खींचा है| और 'खित्ते' भी क्या शब्द ढूंढा है मालिक]

[४]
भारत सारे विश्व में, हीरा कोहेनूर|
कीरत अपने देश की, दुनिया में मशहूर||
दुनिया में मशहूर, राम लीला औ गीता|
मर्यादा पुरषोत्तम, लक्ष्मण जी, माँ सीता|
रहती दुनिया तलक, हमेशा रहे सलामत|
अमन चैन का दूत, देश ये अपना भारत||
[वाह क्या देश भक्ति है, अमन चैन का दूत........भाई इस पंक्ति को तो सेल्यूट मारना पड़ेगा]

[५]
कंप्यूटर भार्या-सखा, कंप्यूटर पित-मात|
युवा वर्ग को ये मिली, सुन्दर सी सौगात||
सुन्दर सी सौगात, नज़र हटने ना पावे|
भोजन बिन रह जाय, रहा इस बिन ना जावे|
मिले न पोकिट खर्च, भले बाईक, स्कूटर|
सर्वप्रथम दरकार, सभी को ही कंप्यूटर||
[सही कह रहे हैं योगराज जी, यही कहानी है आज घर घर की]
:- योगराज प्रभाकर

'कंप्यूटर' शब्द पर दो, 'सुन्दरियाँ' शब्द पर दो और 'भारत' शब्द पर एक इस तरह इन कुल 'पांच' कुण्डलियों पर आप लोग अपनी-अपनी राय जाहिर कीजिये तब तक हम तयारी करते हैं अगली पोस्ट की|

इस बार नए प्रस्तुतिकर्त्ताओं का तांता लगा हुआ है पर साथ ही पुराने प्रस्तुतिकर्त्ताओं में से कई सारे शायद किसी काम में व्यस्त हैं| कुछ रचनाधर्मियों की जिन रचनाओं पर सुधार की प्रार्थना की गयी है, उन की भी प्रतीक्षा है| आप सभी के सहयोग से यह आयोजन नए प्रतिमान गढ़ रहा है| आप सभी के सहयोग के लिए पुन: सविनय निवेदन करते हैं हम|

जो व्यक्ति यहाँ पहली बार पधारे हैं, उन के लिए घोषणा तथा कुण्डलिया छन्द सम्बंधित लिंक एक बार फिर से :-
कुंडली उर्फ कुण्डलिया छन्द - समस्या पूर्ति की घोषणा
कुण्डलिया छन्द का विधान उदाहरण सहित