मैं वहम हूँ कि हक़ीक़त ये हाल देखने को
गिरफ़्त होता हूँ अपना विसाल देखने को
चराग़ करता हूँ अपना हर एक अज़्वे-बदन
तरस गया हूँ ग़मे-ला-ज़वाल देखने को
अज़्वे-बदन - शरीर का भाग, ग़मे-ला-ज़वाल - अमर दुख
मैं आदमी हूँ कि पत्थर जवाब देते नहीं
चले हैं कोहे-निदा से सवाल देखने को
कोहे-निदा - आवाज़ का पहाड़
न शेर हैं न सताइश अजब ज़माना है
कहीं पे मिलता नहीं अब कमाल देखने को
सताइश - प्रशंसा
मैं ‘तूर‘ आख़िरी साअत का एक मंज़र हूँ
वो आ रहा है मुझे बे मिसाल देखने
को
साअत - घड़ी, मंज़र - दृश्य
:- कृष्ण कुमार 'तूर'
साअत - घड़ी, मंज़र - दृश्य
:- कृष्ण कुमार 'तूर'
बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ
मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
1212 1122 1212 22
वाह ... खूबसूरत अशार से सजी गज़ल ...
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