जिस को अपने बस में करना था उस से ही लड़ बैठा
सीधा मन्तर पढ़ते-पढ़ते उल्टा मन्तर पढ़ बैठा
वो ऐसा तस्वीर-नवाज़ कि जिस को मैं जँचता ही
नहीं
और एक मैं, हर फ्रेम के अन्दर चित्र उसी
का जड़ बैठा
ज्ञान लुटाने निकला था और झोली में भर लाया
प्यार
मैं ऐसा रँगरेज़ हूँ जिस पे रङ्ग चुनर का चढ़
बैठा
परसों मैं बाज़ार गया था दरपन लेने की ख़ातिर
क्या बोलूँ दूकान पे ही मैं शर्म के मारे गड़
बैठा
बाकी बातें फिर कर लेङ्गे - आज ये गुत्थी सुलझा
लें
धरती कङ्कड़ पर बैठी - या फिर - उस पर कङ्कड़ बैठा
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
वाह बहुत ही मस्त है ...
जवाब देंहटाएंजय हो, साहित्यम् रंग में रंगा है।
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