बड़ी मस्ती से जीता
है, दिलों पे राज करता है
मसर्रत बाँटने वाले
के दिल में ग़म नहीं होता
बुजुर्गों की नसीहत
आज़ भी सौ फ़ीसदी सच है
मुहब्बत का ख़ज़ाना बाँटने
से कम नहीं होता
सभा में शोर था - तहज़ीब
को आख़िर हुआ है क्या
जहाँ भी जाओ बेशर्मी
हमारा मुँह चिढाती है
तभी सब लड़कियों ने एक
सुर में उठ के यूँ बोला
कि जो इनसान होते हैं उन्हीं को शर्म आती है
सादगी होती है मङ्गलसूत्र
में
बन्दगी होती है मंगलसूत्र
में
हर सुहागिन का यही कहना
है बस
ज़िन्दगी होती है मङ्गलसूत्र
में
जन्म के समय से ही नाजुक
व नर्म-जान
सख़्त-जान दुनिया में
ख़ामुशी के साथ है
दादा, नाना, पापा, भैया, अंकलों की लाड़ली ये
अगम अनादि काल से सभी
के साथ है
सुनिये ‘नवीन’ मित्र
प्रीत-रीत सहचरी
ख़ुशियों की धारा, ग़म की नदी के साथ है
अपनी हथेलियों में दुनिया
समेटे हुये
आसमान वाली परी धरती
के साथ है
नारी नर से यूँ बोली
सुनें मेरे हमजोली
तन को नहीं तनिक मन
को झुकाइये
हमने हमेशा आप की ख़ुशी
को मान दिया
आप भी हमारे सङ्ग-सङ्ग
मुस्कुराइये
नारी का हृदय तो है
लबालब भरा हुआ -
अमृत कलश जब चाहे छलकाइये
यानि कि ‘नवीन’ शुद्ध-शास्वत
सनेह-रस
बूँद भर डाल कर घूँट
भर पाइये
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तन की मटुकिया में मन
की मथनिया से
प्रीत नवनीत हेतु बतियाँ
बिलो गया
प्यारी प्यारी बातें
बोल ऐसा किया डाँवाडोल
पता ही नहीं चला कि
दिल कब खो गया
रङ्ग नहीं पानी नहीं
हाथ भी लगाया नहीं
फिर भी ‘नवीन’ अङ्ग-अङ्ग
को भिगो गया
मेरी स्नेह सरिता में
मुझी को ढकेल कर
ख़ुद तो उबर गया मुझ
को डुबो गया
नवीन सी. चतुर्वेदी
वाह मज़ा आ गया नवीन जी ...
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग का नया अवतार भा रहा है।
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